Saturday

चीफ की दावत समीक्षा


                          चीफ की दावत समीक्षा 

चीफ की दावत कला की दृष्टि से भीष्म साहनी की प्रसिद्ध कहानी है। ‘चीफ की दावत’ एक ऐसी ही कहानी है, जिसमें स्वार्थी बेटे शामनाथ को अपनी विधवा बूढ़ी माँ का बलिदान फर्ज ही नजर आता है। भीष्म साहनी ने शामनाथ के माध्यम से शिक्षित युवा पीढ़ी पर करारा व्यंग्य किया है। आज के शिक्षित युवा वर्ग अपने माता पिता को बोझ समझते हैं। व्यक्ति अपनी सुख सुविधा के लिए अपने माता पिता को छोड़ देते हैं।

वे यह तक भूल जाते हैं कि आज जिस समाज मे तुम रह रहे हो उनकी बदौलत है। अपने बच्चो को काबिल बनाने के लिए माता पिता अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं। उनका पूरा जीवन अपने बच्चों की खुशी के लिए बलिदान में व्यतीत हो जाता है।

चीफ की दावत समीक्षा – 

कथानक

कहानी के नायक सामनाथ अपने मध्यवर्गीय परिवार को आधुनिक बोध से जकड़े हुए है। नए पन का ढोंग उन्हें मां और पत्नी के मध्य चमकीले पर्दे की भांति लटकाए हुए हैं या आधुनिकता की गंध सामान्य माध्यम परिवारों में देखी जा सकती है। पुरानी मान्यताओं और परंपराओं के ढांचे से निकले माता-पिता जब अपनी संतानों को नए रंग में पाते हैं तो उन्हें आशय मिश्रित असंतोष के कारण भीतर ही भीतर गोटन का अनुभव होता है।

शामनाथ नौकरी पेशा व्यक्ति है- इनकी पदोन्नति की संभावनाएं संबंधित चीफ साहब पर निर्भर करती है चीफ साहब है कि बड़े ही फैशनेबल और संपन्न व्यक्ति व अमेरिकन है। सामनाथ अपनी हैसियत और परिस्थिति को ध्यान में रखकर जीना कबूल नहीं करते। वे चीफ साहब को दावत देते हैं की खुशामद करने से हमारी पदोन्नति मैं उनका सहयोग मिलेगा अपनी आय के हिसाब से ना रहकर दिखावे की जिंदगी जीना शामनाथ को बेहतर लगने लगा था। परिणामत: हर प्रकार की भौतिकसुख सुविधाएं जुटाने में आर्थिक टूटन आ जाती है। किंतु शामनाथ अपनी उन्नति के लिए सब कुछ करने को तैयार है।

शामनाथ ने घर को खूब सजाया-संवारा है कमरे की सफाई घर के सामान की यथा स्थान व्यवस्था, भोजन-सामग्री की समय से तैयारी आज सब कुछ कर ली है। अब समस्या यह है कि मकान में सब नया आधुनिकता से ओतप्रोत होते हुए भी मां पुरानी है। इस पुराने पन से छुटकारा पाने का सामना को कोई उपाय नहीं सुजाता कभी वह सोचते हैं। आप चीफ की दावत समीक्षा पढ़ रहे हैं।

कि पड़ोसी के घर भेज दिया जाए और कभी कमरे में बंद कर दिया जाए। वरना कहीं चीफ साहब के सामने ना पड़ जाए और उसकी शान में धब्बा लग जाए अथवा उनके व्यवहार से चीफ साहब पर्सन हो जाए। अंत में उन्होंने या निर्णय लिया कि मां को अच्छे ढंग से पहना उड़ा कर रखा जाए कि संयोगवश चीफ साहब की नजर पड़ ही जाए तो उनकी स्थिति बिगड़ने ना पावे मां को बताया गया। कि उनके आने पर वह कैसी रहेंगी और कैसे बोलेंगे मां असमंजस में एक नई दुनिया के घेरे में स्वयं को बंधा अनुभव करने लगी है।

किंतु इस स्थिति में भी वह अपने पुत्र को पदोन्नति के लिए सब कुछ करने को तैयार हैं। साहब के आने पर मां को अंधेरे में बैठाया गया है किंतु पार्टी का पहला दौर समाप्त होता है और लोग भोजन पर जाने लगते हैं। तो चीफ साहब के दस्त सामनाथ की मां पर जाती है। कि बड़े प्रेम से मिलकर मां का आदर करते हैं और उन्हें भारतीय संस्कृति की प्रतीक रूप मानते हैं।

उन्होंने मां से लोक कला के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की और फिर एक गीत सुनाने का प्रस्ताव रखा वह मासी लोक कला का प्रतीक फुलकारी मांगते थे। और उससे लोकगीत सुनकरबहुत प्रसन्न होते हैं। जबकि पुत्र के संतुष्ट होने पर मां हरिद्वार जाने की इच्छा प्रकट करती है। पुत्र का पूजा व्यवहार होने पर भी आजमा उनके लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं। नई पीढ़ी की व अनैतिक और अब व्यावहारिक मान्यताएं व महत्वकांक्षी आएं हमारे पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन के लिए घातक दिखाई देती है।प्रेम के मूल्य को ही नैतिक आधार मिलना चाहिए। आप चीफ की दावत समीक्षा पढ़ रहे हैं।

चीफ की दावत समीक्षा – कथोपकथन

कहानी के संवाद छुट्टी ले और व्यंग्यात्मक है। कहानीकार के नई कहानी के संवाद शैली को मानव मनोविश्लेषण के समायोजन में प्रयुक्त किया है।मन की गहरी चाल मनुष्य की छवि को धूमिल भी कर लेती है।पात्रों की संभावित विकास व मुख भावना आधुनिकता की चौखट से टकराकर चोट खा जाती है।संवादों के द्वारा कथानक को खींचने का प्रयास नहीं तो सार्थक है और कहीं महंगा साबित होने लगता है। छोटे-छोटे वाक्यों द्वारा कथन तो पैन आपन सिद्ध होता है।शब्दों और वाक्यों विन्यास की ध्वनियों में अर्थ की व्यंजना होती है।

मुहावरे आदि के प्रयोगों में कहानीकार की कोई विशेष रूचि नहीं है।तथ्य के विकास और चरित्रों के उद्देश्य पर निर्माण में संवाद योजना उपयुक्त है तथा तो इन्हें कह देंगे कि अंदर से दरवाजा बंद कर ले मैं बाहर से ताला लगा दूंगा और जो सो गई। तो डिनर का क्या मालूम कब तक चले 11:11 बजे तक तो तुम लोग ड्रिंक ही करते रहते हो। अच्छी वाली या भाई के पास जा रही थी। तुमने यूं ही कुछ अच्छा बनने के लिए बीच में टांग अड़ा दी। आप चीफ की दावत समीक्षा पढ़ रहे हैं।

चीफ की दावत कहानी का चरित्र चित्रण

कहानी के पात्र वर्तमान परिस्थितियों के है। आज का परिवारिक जीवन इन्हीं यथा स्थितियों में स्थित है या विसंगति अतिशय स्वार्थपरता और स्थिर बुद्धि का परिणाम है सामना इस कहानी का केंद्र बिंदु है। जो अपनी पदोन्नति और भौतिक जीवन के सुख क्षेत्रों की प्राप्ति से 100 पदों हेतु आर्थिक लाभ देखता है। उसके या नहीं जाना कि मां के निस्वार्थ प्रेम और भारतीय आदर्श को खोदकर हम पश्चिमी सभ्यता की होल फ्रांस में फसने जा रहे हैं। आप चीफ की दावत समीक्षा पढ़ रहे हैं।

शाम नाथ के प्रतिनिधि आज के भारतीय परिवारों में बहुसंख्यक है या दो एकात्मक स्थिति मनुष्य के चरित्र का खंडन करती जा रही है।शामनाथ की पत्नी पति के शौक से गांठ बांधे हुए हैं। उनकी मान्यता भी ऐसी है कि शामनाथ की मां है कि बुढ़ापे में एक युग बिताकर नए युग की धरती को मां जालपा ले बैठी हैं। पुत्र का विवाह मूवी उन्हें यहां तक खींच लाया की घुंघट में जीने वाली भारतीय महिला अमेरिकन जीत के समक्ष लोकप्रिय सुनने को बाध्य हो जाती है। चीफ है कि भारतीय जीवन दर्शन की पहचान करने में तत्पर है।

चीफ की दावत समीक्षा – कहानी का उद्देश्य

मध्यवर्ती आर्थिक टूटन कुंडा ग्रस्त जीवन शैली भोग विलास कि कृष्णा और अंतर्विरोध से उत्पन्न चुनावी कहानी में सामाजिक विषमताओं के परिणाम है।भारतीय संस्कृति और आदर्शों को तोड़कर पाश्चात्य मान्यताओं की ललक व्यक्ति की मानसिक पीड़ा को बढ़ावा ही देगी।मां के अस्तित्व पर खतरे की घंटी बजने ही लगी है और पुत्र के प्रति समर्पण का भाव भी नित्या होने की आशंका है।इन तथ्यों की खोज और समाधान के लिए इस कहानी को हम सफलतम कर सकते हैं।

Sunday

गणतन्त्र दिवस


                सब के अधिकारों का रक्षक 

                अपना यह यह गणतंत्र पर्व है

                लोकतंत्र ही मंत्र हमारा

                हम सबको इस पर गर्व है!"

जैसा कि हम सभी जानते हैं काल तो प्रवाहमय होता है! इसमें कुछ भी स्थिर नहीं होता! यहां पर हमेशा बदलाव तो होता रहता है! परंतु पुरानी यादों को भुलाया नहीं जा सकता! मुझे इतिहास कि वह स्वर्णिम घटनाएं याद आ रही हैं! जब हर भारतीय अपने हाथों में आजादी की मशाल लिए हुए और सब की जबान पर बस एक ही नारा गूंज रहा था कि भारत माता की जय महात्मा गांधी की जय इंकलाब जिंदाबाद तभी गोलियों की आवाज गूंजते हुए आती हैं और सीने पर गोलियां खाते हुए लहूलुहान देशभक्त जमीन पर गिर पड़ते हैं! परंतु कोई आह नहीं कोई पश्चाताप नहीं दिख रहा, दिख रहा है तॊ बस एक अलौकिक देश और उस देश में एक अटल विश्वास कि हमारा भारत अवश्य स्वतंत्र होगा!15 अगस्त 1947 को यह विश्वास प्रतिफलित भी हुआ क्योंकि-

                     "यह देश महापुरुषों का है!

                      यह देश वीर बलवा बलवानो का

                      यह देश साधको संतों का 

                      यह देश गुड़ी विद्वानों का

                      यह देश गुड़ी विद्वानों का"

महापुरुषों की उपस्थिति में हमारे देश की स्वतंत्रता तब तक अधूरी रहती जब तक यहां का संविधान ना रचा जाए!अतः राष्ट्र निर्माताओं की अधीनता में इस देश का संविधान 20 जनवरी 1950 को लागू किया गया! संविधान तो लागू हो गया पर यह बात अब भी जहन में रखनी शेष थी कि-

              "गौरव गाथा बार-बार दोहरानी है

       प्यारा भारत देश हमारा हम सब हिंदुस्तानी हैं!"

परंतु अभी भी भारत के सामने ऐसी विषम परिस्थितियां थी! जो मनुष्य के सपनों को खंडित कर देती है, तब मन में बस यही भाव जगने लगता है कि-

          "सोचा था अपने देश को खुशियों से सजाएंगे

          क्षमता और सद्गुणों से भारत में बहारें लाएंगे!"

 गणतंत्र की स्वतंत्रता के लिए यह अति आवश्यक है कि हम अपनी सभ्यता संस्कृति मौलिक चिंतन और वैचारिक स्वतंत्रता को बनाए रखें! लेकिन आज ऐसा लगता है,कि मिली राजनैतिक स्वतंत्रता पर विचार परतंत्र है-

           "पाश्चात्य चिंतन चरित्र से कहां हुए स्वतंत्र हैं,

           अभी स्वदेशी तंत्र अपेक्षित मिला कहां सम्मान है,

            और किसी कोने में बैठा रो रहा संविधान है,

           और किसी कोने में बैठा रो रहा संविधान है!"

इस रोते हुए संविधान को प्रबल, सशक्त, सफल और प्रभावशाली बनाने का अधिकार अगर किसी को है तो वह सिर्फ हम देशवासियों को है,क्योंकि चुनाव के माध्यम से एक मजबूत नेतृत्व का चयन करके अपने संविधान को और परी परिपुष्ट बनाते हैं!74 वें गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई देते अंत में बस इतना कहना है कि-

           "इस देश की कीमत जब जब हमने पहचानी है

            हमारे देश का बच्चा-बच्ची बना देश सेनानी है

            जाति-पाती और भाषा का द्वेष पनपने ना देंगे

           अब इन आधारों पर हिंदुस्तान को बटने ना देंगे

            एकता के सतरंगों से सजाएंगे संसार को

            गणतंत्र उपासक बनकर सच्चे 

            उपहार देंगे राष्ट्र को

             उपहार देंगे राष्ट्र को"







आधुनिकता की अवधारणा


 आधुनिकता एक सापेक्षिक अवधारणा है !प्राचीन मूल्यों के सापेक्षता में वर्तमान नवीन मूल्यों का निर्धारण ही आधुनिकता है!

समीक्षक डॉ जगदीश गुप्त के अनुसार आधुनिकता का मूल आधार मानवतावादी दृष्टि है!यह दृष्टि ही आधुनिक दृष्टिकोण है!

आधुनिकता के लक्षण 

1. आधुनिकता एक सापेक्षिक अवधारणा है!

2. आधुनिकता की व्याख्या अतीत की समकक्षता एवं सापेक्षता में ही संभव है!

3. जो भी आज आधुनिक है वह भविष्य में पुरातन है!

4. अनुभूति और संवेदना का नयापन ही आधुनिकता कहलाता है!

5. आधुनिकता अतीत से जुड़कर सुरक्षित रह सकती है! 6.आधुनिकता का मूल आधार मानवतावादी दृष्टि है!

7. साहित्य, धर्म व दर्शन सभी के प्रति दृष्टिकोण का आविर्भाव ही आधुनिकता है!

8. साहित्य की सभी विधाओं में आधुनिकता स्पष्ट दिखाई देती है!

9. आधुनिकता ज्ञान विज्ञान और टेक्नोलॉजी के कारण संभव है!

10. आधुनिक ज्ञान विज्ञान ने मनुष्य को बहुत कुछ बुद्धि सम्मत बना दिया था नीत्शे की इस घोषणा से कि ईश्वर मर गया है भौतिक जगत में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया

Saturday

कम समय में परीक्षा के लिए कैसे पढ़े

 


आने वाले है एक्जाम और आप सभी हो रहे है परेशान तो बिल्कुल भी परेशान होने की जरूरत नहीं हैं, बस पढिए इस ब्लॉग से जानिए कैसे करनी हैं तैयारी । 

दोस्तों एग्जाम पास आते ही हम सभी परेशान होने लगते हैं और परीक्षा का डर मन पर हावी होने लगता हैं, लेकिन मैं आपको बताऊंगा कि आपको कैसे पढ़ना हैं, कैसे तैयारी शुरू करनी हैं. 

1. सोचो कम, करो ज्यादा 

हम सभी जिस उम्र में है उस उम्र में करने से पहले सोचते हद से ज्यादा है जो की सही नहीं हैं। सिर्फ उतना ही सोचे जितने की जरूरत हैं। सोच आते ही उस पर वर्क करना शुरू कर देना चाहिए। ये ट्रिक सिर्फ परीक्षा के समय ही नहीं जिंदगी में भी काम आएगा। इसलिए सोचो कम और पढ़िए ज्यादा। मान लीजिए कि आपने सोचा की मुझे पढ़ना है न तो उसके बाद ज्यादा सोचिए मत बस पढ़ना शुरू कर दीजिए । 

2. पढ़ना कैसे शुरू करें 

सबसे पहले अपने पाठ्यक्रम को देखे और फिर उसके हिसाब से पढ़ना शुरू कर दें ।आप सभी कॉलेज में हैं तो टीचर पढ़ाएगा या नहीं, कैसे पढ़े सब छोड़ कर पाठ्यक्रम देखे और पाठ्यक्रम यूनिट के हिसाब से जहां से वो यूनिट मिलती है वहाँ से उसको पढ़ना शुरू कर दें, सिर्फ पढ़े, रट्टा न मारे। पढ़ने के समय हाथ में एक पेन , एक नोटबुक जरूर रखे और जो जरूरी लगे उसको साथ साथ नोट करते जाएं। आमतौर पर ऐसा होता है कि पढ़ाई के दौरान अपना मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट होता हैं जिससे लगातार ध्यान बंटता है! पढ़ाई के दौरान कभी भी ऐसे उपकरण नहीं रखने चाहिए, इससे आपकी एकाग्रता प्रभावित होती है और आप अपना समय बर्बाद करते हैं। आपको केवल वही चीजें लेनी चाहिए जो आपको वास्तव में पढ़ने के लिए चाहिए जैसे नोटबुक, सिलेबस, प्रश्न पत्र और स्टेशनरी आदि। साथ ही, अपनी जरूरत की चीजें एक जगह पर रखें ताकि आपको उठने या अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने की जरूरत न पड़े। अगर ऑनलाइन पढ़ रहे हैं तो सोशल मीडिया एप्प की सूचना बंद कर दें या अगर ऑफलाइन पढ़ रहे है तो फोन को उल्टा करके रख दें । 

3. पढ़ाई के दौरान लंबे ब्रेक न लें 

पढ़ने के समय ज्यादा देर का ब्रेक न लें और 45 मिनट से ज्यादा देर न बैठे एक बार में। अगर 45 मिनट लगातार पढ़ रहे हैं तो 15 मिनट का ब्रेक लें और उसके बाद फिर से पढाई शुरू करें। अच्छी नींद लें और अच्छा खाएं ...

4. याद रखने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात 

यह है कि पढ़ाई के दौरान खुद को चौकस रखने के लिए आपको स्वस्थ खाना चाहिए और आराम करना चाहिए। इसके लिए, आपको 6-7 घंटे सोना चाहिए। फल, सब्जी, फलों का रस जैसे स्वस्थ खाएं। कुछ शारीरिक व्यायाम और ध्यान करने के लिए समय निकालें, इससे आपको शारीरिक और मानसिक फिटनेस में सुधार करने में मदद मिलती है। इसके अलावा, कृपया जंक फूड, चीनी लेपित उत्पादों और कैफीन से बचें क्योंकि ये चीजें आपके शरीर को अधिक थका देती हैं और आप पढ़ाई के दौरान ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते।

5 . पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों का विश्लेषण करें 

आपके पास प्रत्येक चीज़ का अध्ययन करने के लिए पहले से ही कम समय बचा है, इसलिए परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए, आपको अपने समय का कुशलतापूर्वक उपयोग करने की आवश्यकता है। आपको अपनी आगामी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम के अनुसार पिछले वर्षों के प्रश्न पत्र के विश्लेषण के साथ शुरुआत करनी होगी। पिछले वर्षों के 'कम से कम 5-10 वर्षों के प्रश्न पत्र' एकत्र करें। विभिन्न अध्यायों के प्रश्नों के वेटेज को क्रॉस-चेक करें, ताकि अधिक वेटेज और कम महत्वपूर्ण अध्यायों वाले अध्यायों की पहचान की जा सके। आपको कठिन, औसत और आसान स्तर के प्रश्नों और अध्यायों के बारे में पता चल जाएगा। इससे आपको हर अध्याय से महत्वपूर्ण विषयों को समझने में मदद मिलेगी, जिनका आपको परीक्षा के लिए अध्ययन करना चाहिए..

6 . प्राथमिकता के अनुसार अध्ययन करें 

अब आपको प्रश्नों की संख्या, अंक भार और कठिनाई स्तर के अनुसार महत्वपूर्ण अध्यायों के लिए प्राथमिकता निर्धारित करने की आवश्यकता है। प्राथमिकता सूची के अनुसार प्रत्येक अध्याय के लिए समय निर्धारित करें और अधिक वेटेज या आसान अध्यायों वाले अध्यायों से शुरू करें, ताकि आप कठिन अध्यायों की तैयारी के लिए अपना समय और प्रयास बचा सकें। सबसे महत्वपूर्ण बात, अपने टाइम टेबल स्टडी प्लान में बार-बार बदलाव न करें। बस प्राथमिकता सूची के अनुसार एक अध्ययन कार्यक्रम निर्धारित करें और बेहतर परिणामों के लिए उसका पालन करें।।

7. यात्रा के समय का उपयोग करे 

आज कल हम सोशल मीडिया यानि इंस्टाग्राम, स्नैपचैट,फेसबुक के बिना नहीं रह सकते। कई बार हमारे दोस्तों को शिकायत रहती हैं कि आप उनसे आप बात नहीं करते तो अपने यात्रा के समय का उपयोग दोस्तों से बात करने में लगाए या सोशल मीडिया का उपयोग करें। इससे आपका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि आपको अलग से इसके लिए समय नहीं निकालना पड़ेगा।  

सुभाष चन्द्र बोस....


आओ मिलकर याद करें जन-जन ह्रदय विजेता को 


उस सुभाष बलिदानी को नेताओं के नेता को


 था अलग ही बॉस का ओरा, 


माने लोहा दुश्मन भी गोरा


घूमा रूस जर्मनी जापान 


स्वतंत्र हो भारत यही ध्येय प्रधान


 फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया


हिंद फौज का संचालन किया


कहा खून के बदले आजादी दूंगा 


कीमत लेस ना मैं कम लूंगा,


है रोष लहू में तो आ जाओ


 खाकर कसम यह दिखलाओ 


अब सिंहासन दूर नहीं


सुनते ही लहू की नदी वही 


तन-मन-धन समर्पण भारत को किया 


जब तक जिया देशहित जिया


 है अमर सुभाष सदा क्रांतिकारी विचारों में


समय-समय पर आती है 


विभूतियां अलग-अलग किरदारों में 


आओ मिलकर याद करें


करें जन-जन ह्रदय विजेता


उस सुभाष बलिदानी को नेताओं के नेता को.......




Sunday

"हमारा गौरवशाली अतीत और आधुनिकता का आवरण ओढ़े वर्तमान' विषय पर दो मित्रो के बीच संवाद (वर्तालाप)

 रमेश- सुरेश! क्या तुमने आज की खबर पढ़ी

सुरेश- हाँ पढ़ी

रमेश- हमारे भारतीय समाज को ना जाने क्या हो गया है, जहाँ देखा साम्प्रदायिक दंगे, चोरी लूटपाट तथा जातिगत भेदभाव नजर आता है.. 

सुरेश- हाँ, तुम ठीक कह रहे हो, हमारा अतीत वर्तमान से अधिक गौरवशाली था, हमारी भारतीय संस्कृति और एकता का उदाहरण पूरे संसार में दिया जाता था.. 

रमेश- लेकिन सुरेश! आज हम जिस अधुनिकता की बात करते हैं, वह हमारे अतीत के गौरव को नस्ट करती जा रही है|हम जितने आधुनिक हो रहे हैं, उतने ही संवेदनहीन व धर्म जाति के नाम पर बट रहे हैं.

सुरेश- हाँ, रमेश तुम ठीक कहते हो.. 



Friday

इश्क़

 



                           इश्क़ किया था

               हमने भी हम भी रातों को जागे थे

                               था कोई

             जिसके पीछे हम भी नंगे पाँव भागे थे। 








परीक्षा के एक दिन पूर्व दो मित्रों की बातचीत का संवाद लेखन कीजिए-

संवाद लेखन किसे कहते हैं  संवाद लेखन -  वह लेखनी है जिसमें दो या अधिक व्यक्तियों के बीच होने वाली बातचीत को लिखित रूप में व्यक्त किया जाता ह...