कहानी की समीक्षा के तत्व
समीक्षा का क्या अर्थ है?
समीक्षा का अर्थ है-परीक्षण,गुण,दोष,विवेचन,समालोचना,विश्लेषण करना,छानबीन या जांच पड़ताल की क्रिया समालोचना आदि।
समीक्षा किसे कहते हैं?
किसी भी लेखन को पढ़कर उसके बारे में बताना समीक्षा कहलाता है।
समीक्षा की परिभाषा
किसी भी लेखन को पढ़ कर उसके बारें में बताना समीक्षा कहलाता है। समीक्षक द्वारा की गई टिप्पणी पाठकों को पुस्तक पढ़ने या ना पढ़ने के लिए प्रेरित करती है। किसी किताब, लेख, कहानी पर आपकी प्रतिक्रिया होती है जो अच्छी या बुरी हो सकती है। समीक्षा से पाठकों को लेखन के विभिन्न पहलुओं की जानकारी मिलती है। समीक्षा मतलब समालोचना, किसी भी लेखन की समीक्षा व्यवहारिक आलोचना का एक सशक्त रूप होती है। लेकिन लगता है कि आज यह काम कुछ व्यवहारिक बन है, आजकल रचना और लेखों की समीक्षा निजी संबंधों को निभाने के तौर पर की जाती है, मतलब लेखक को खुश करने का ज़रिया। समीक्षा की स्थिति आज दायित्वहीनता की परकाष्ठा तक पहुंच चुकी है। समीक्षाएं आज विशुद्ध लेन-देन का जरिया बन चुकी है।
कहानी की समीक्षा करते समय हम उसके कथानक पत्र भाषा शैली उद्देश्य संवाद आदि तथ्यों पर प्रकाश डालते हैं किसी भी कहानी की समीक्षा करते समय आवश्यक नहीं है कि हम उसके सकारात्मक तथ्यों का ही प्रगठन करें बल्कि हम किसी भी ऐसी बात के विषय में जो हमें पसंद नहीं आए लिख सकते हैं।
हिंदी कहानी के मूलत 6 तत्व होते हैं।
1.विषय वस्तु अथवा कथानक
2. चरित्र चित्रण
3. संवाद
4. भाषा शैली
5. वातावरण
6. उद्देश्य
इन तत्वों के आधार पर हिंदी कहानी की समीक्षा की जा सकती है।
1. विषय वस्तु अथवा कथानक-प्रत्येक कहानी में कोई ना कोई घटनाक्रम आवश्यक होता है कहानी में वर्णित घटनाओं के समूह को कथा न कहते हैं कथानक किसी भी कहानी की आत्मा है इसलिए कथा ना की योजना इस प्रकार होनी चाहिए कि सभी घटनाएं और प्रसंग परस्पर संबंध हो उनमें बिखराव या परस्पर विरोध नहीं होना चाहिए।
मौलिकता रोचक ता जिज्ञासा कोतवाल की सृष्टि अच्छे कथानक के गुण है। साधारण से साधारण कथानक को भी कहानीकार कल्पना एवं मर्मस्पर्शीय अनुभूतियों के सहारे एक विचित्र और आकर्षण प्रदान कर सकता है।
2. चरित्र चित्रण-प्रत्येक कहानी में कुछ पात्र होते हैं जो कथानक के संजीव संचालक होते हैं इनमें एक और कथानक का आरंभ विकास और अंत होता है तो दूसरी ओर हम कहानी से इनमें आत्मीयता प्राप्त करते हैं। कहानी में मुख्य रूप से दो पात्र होते हैं पहले वर्ग्गत अर्थात जो अपनी वर्ग की विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है दूसरा व्यक्तित्व वे पात्र जिनकी निजी विशेषताएं होती है।
3. संवाद-कहानी का आवश्यक अंग है कहानी में पात्रों के बीच वार्तालाप को संवाद कहते हैं यह संवाद कहानी को सजीव और प्रभावशाली बनाते हैं कहानी में संवाद कथानक को गति प्रदान करते हैं पत्रों का चरित्र चित्रण करते हैं कहानी के स्वाभाविकता प्रदान करते हैं इसका उद्देश्य स्पष्ट करते हैं संवाद का सबसे बड़ा गुण है जिज्ञासा और कुतूहल उत्पन्न करना। इन सब कार्यों का संपादन तभी हो सकता है जब कहानी के संवाद पत्र स्थिति एवं घटना के अनुकूल हो चित्रों को उभारने वाले सरल एवं स्पष्ट हो।
4. भाषा शैली-कहानी की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि उसमें मूल संवेदना को व्यक्त करने की पूरी क्षमता हो कहानीकार का दायित्व और उसकी रचना शक्ति का सच्चा परिचय उसकी भाषा से ही मिलता है भाषा की सृष्टि से सफल कहानी वही मानी जाती है जिसकी भाषा सरल स्पष्ट प्रभाव में और विषय एवं पात्र अनुकूल हो वह ओज माधुर्य गुणों से युक्त हो।
जहां तक शैली का संबंध है उसमें सजीवता रोचकता संवेदात्मकता तथा प्रभावात्मकता आदि का होना आवश्यक है शैली का संबंध कहानी के पूर्ण तत्वों से रहता है कहानीकार इन शैलियों में कहानी लिख सकता है वर्णन प्रधान शैली आत्मकथात्मक शैली पत्रक शैली नाथ की असीली भावात्मक शैली आदि कहानी के लिए सरस संवादात्मक शैली अधिक उपयुक्त होती है।
5. वातावरण-वातावरण का अर्थ है उन सभी परिस्थितियों का चित्रण करना जिम कहानी के पात्र सांस ले रहे हैं सफल कहानी में देशकाल प्रकृति परिवेश आदि का प्रभाव सृष्टि के लिए अनिवार्य तत्व के रूप में स्वीकार किया जाता है वातावरण की सृष्टि से कहानी हृदय पर मार्मिक प्रभाव की अभिव्यंजना करती है कहानीकार पूरे संदर्भ में सामाजिक परिवेश को देखा है उसका यथार्थ वर्णन करता है वातावरण के माध्यम से वह कहानी में एकांतिक प्रभाव लाने की स्थिति उत्पन्न करता है सही वातावरण किसी भी कहानी को विश्वसनीय बनता है।
6. उद्देश्य-कहानी की रचना का उद्देश्य मनोरंजन माना जाता है किंतु मनोरंजन ही कहानी का एकमात्र उद्देश्य नहीं होता कहानी में जीवन के किसी एक पक्ष के प्रति दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता है।आज की कहानी मानव जीवन के किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को उजागर करती है कहानी द्वारा जीवन सत्य की व्याख्या एवं मानवीय आदर्शों की स्थापना भी की जाती है आकर में लघु होने के उपरांत भी कहानी महान विचारों का वहन करती है।
उदाहरण-भारतेंदु युग की कहानियों का मुख्य स्वर सामाजिक सुधारवादी एवं धार्मिक दृष्टिकोण से प्रेरित था प्रेमचंद की कहानी मध्यम वर्ग के सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण है।
अतः स्पष्ट है की कहानी का उद्देश्य कहानीकार के दृष्टिकोण एवं विषय वस्तु के अनुकूल होता है।