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Friday

महादेवी वर्मा और उनका साहित्य

                                                                             महादेवी वर्मा और उनका साहित्य

                                                                                विस्तृत नभ का कोई कोना
                                                                                मेरा न कभी अपना होना,
                                                                                परिचय इतना, इतिहास यही-
                                                                                उमड़ी कल थी, मिट आज चली।



भारतीय साहित्य जगत को अपनी लेखनी से समृद्ध करने वाली लेखिका महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) हिंदी साहित्य के छायावाद काल के प्रमुख 4 स्तम्भों में से एक के रूप में अमर हैं। हिंदी साहित्य में उनकी एक सशक्त हस्ताक्षार के रूप में पहचान है और छायावादी काव्य के विकास में इनका अविस्मरणीय योगदान रहा है। साहित्य और संगीत का अद्भुत संयोजन करके गीत विधा को विकास की चरम सीमा पर पहुंचा देने का श्रेय महादेवी को ही है।




कवि निराला, ने उन्हें ‘हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती‘ की उपमा से भी सम्मानित किया है। वह हिंदी साहित्य में वेदना की कवयित्री के नाम से जानी जाती हैं एवं आधुनिक हिंदी साहित्य में रहस्यवाद की प्रवर्तक भी मानी जाती हैं।
महादेवी वर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में गोविंद प्रसाद वर्मा और हेम रानी देवी के घर हुआ था। जबकि उनके पिता, भागलपुर के एक कॉलेज में एक अंग्रेजी प्रोफेसर, ने उन्हें पश्चिमी शिक्षाओं और अंग्रेजी साहित्य से परिचित कराया, उनकी माँ ने उनके भीतर हिंदी और संस्कृत साहित्य में एक स्वाभाविक रुचि का आह्वान किया।
एक साहित्य से भरपूर, वातावरण में पली बढ़ी युवा महादेवी वर्मा ने बहुत ही कम उम्र में काव्य लेखन की ओर स्वाभाविक रूप से एक जुनून विकसित किया। हालाँकि महादेवी ने अपनी पहली कविता 7 साल की उम्र में लिखी थी, लेकिन वह अपनी कविता और अन्य लेखन को छिपा कर रखती थीं। जब उनकी सहेली और सुप्रसिद्ध कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान को उनके लेखन का पता चला, तब महादेवी की प्रतिभा सामने आई।

जैसा कि उस समय का चलन था, 9 साल की उम्र में महादेवी की शादी एक डॉक्टर स्वरूप नारायण वर्मा से कर दी गई थी, जिसकी स्मृति कुछ इन शब्दों में वह दर्ज़ करती हैं:‘बारात आई तो बाहर भागकर हम सबके बीच खड़े होकर बारात देखने लगे। व्रत रखने को कहा गया तो मिठाई कमरे में बैठकर खूब मिठाई खाई। रात को सोते समय नाउन ने गोद में लेकर फेरे दिलवाए होंगे, हमें कुछ ध्यान नहीं है। प्रातः आंख खुली तो कपड़े में गांठ लगी देखी तो उसे खोलकर भाग गए।
अब इसे महादेवी का विद्रोही मन कहा जाए या अति-संवेदनशील हृदय, महादेवी पिंजड़े की नहीं रेगिस्तान की चिड़िया थीं और सांसारिक जीवन से विरक्ति के कारण उन्होंने शादी के बंधन में बंधना मंज़ूर नहीं किया।
हिंदी के विशाल मंदिर की सरस्वती
महादेवी जी का गद्य और पद्य दोनों पर ही समानाधिकार था । नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा, दीपशिखा उनके प्रसिद्ध गीत सग्रह हैं । अतीत की स्मृतियां, शृंखला की कड़ियां, पथ के साथी आदि उनके रेखाचित्र संस्मरण निबन्ध से सम्बन्धित संग्रह हैं । वहीं महादेवीजी ने श्रेष्ठ कहानियां भी लिखीं । पशु-पक्षी जगत् पर उनकी मार्मिक कहानियां अत्यन्त जीवन्त हैं।


                                                                        कितनी करूणा कितने संदेश
                                                                        पथ में बिछ जाते बन पराग
                                                                        गाता प्राणों का तार तार
                                                                        अनुराग भरा उन्माद राग
                                                                        आँसू लेते वे पथ पखार
                                                                         जो तुम आ जाते एक बार।
वेदना के स्वरों की अमर गायिका महादेवी वर्मा ने हिंदी-साहित्य की जो अनवरत सेवा की है उसका समर्थन दूसरे लेखक भी करते हैं। कवितामय हृदय लेकर और कल्पना के सप्तरंगी आकाश में बैठकर जिस काव्य का उन्होंने सृजन किया, वह हिंदी साहित्य की अमूल्य निधि है।
जीवन के अंतिम समय तक साहित्य-साधना में लीन रहते हुए 80 वर्ष की अवस्था में 11 सितंबर, 1987 को प्रयाग में वेदना की महान कवयित्री महादेवी वर्मा ने अपनी आंखें सदा-सदा के लिए बंद कर ली।
महादेवी वर्मा का साहित्य
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने गीति-काव्य की विशिष्टता बताते हुए कहा है कि “गीति-काव्य उस नई कविता का नाम है, जिसमें प्रकृत्ति के साधारण-असाधारण सब रूपों पर प्रेम-दृष्टि डालकर, उसके रहस्य भरे सच्चे संकेतों को परखकर, भाषा को चित्रमय, सजीव और मार्मिक रूप देकर कविता का एक कृत्रिम, स्वच्छंद मार्ग निकाला गया है। यह सर्वाधिक अन्तर्भाव व्यंजक होता है।”
वेदना, प्रकृति के सुंदर दृश्य चित्र, दिव्य प्रेम, विरह, हर्ष, विषाद, सुख-दुख की अनुभूतियाँ, आत्मा-परमात्मा के मधुर संबंध के साथ ही उनकी कविताओं में संवेदना का प्रबल भाव देखने को मिलता है।


महादेवी जी की गद्य कृतियाँ इस प्रकार हैं :
रेखाचित्र : अतीत के चलचित्र और स्मृति की रेखाएँ
ललित निबंध : क्षणदा
संस्मरण : पथ के साथी और मेरा परिवार और संस्मरण
चुने हुए भाषणों का संकलन : संभाषण
निबंध : श्रृंखला की कड़ियाँ, विवेचनात्मक गद्य, साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध एवं संकल्पिता
संस्मरण, रेखाचित्र और निबंधों का संग्रह : हिमालय
संपादन : चाँद, आधुनिक कवि काव्यमाला आदि।
आलोचना : विभिन्न काव्य संग्रहों की भूमिकाएँ, हिंदी का विवेचनात्मक गद्य।
महादेवी जी ने कोई उपन्यास, कहानी या नाटक नहीं लिखा तो भी उन्होंने जो गद्य लिखा है, वह गद्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। उसमें जीवन का संपूर्ण वैविध्य समाया है। बिना कल्पना का सहारा लिए महादेवी जी ने जो सामाजिक जीवन को छूने वाले गद्य लिखे हैं वे उन्हें पढ़कर ही जाना जा सकता है।
महादेवी जी के जीवन पर महात्मा गाँधी का तथा कला-साहित्य साधना पर रविंद्रनाथ टैगोर का गहरा प्रभाव पड़ा और इसलिए उनके रचित साहित्य में करुणा और भावुकता का गहरा प्रभाव रहा। उनके पात्रों में कथात्मकता से अधिक संवेदनशीलता है और उनकी यही खूबी पाठक को रचना के साथ-साथ चलने पर मजबूर कर देती है।
महादेवी जी की गद्य शैली चित्रात्मक एवं प्रभावपूर्ण है। महादेवी वर्मा जी के गद्य साहित्य में समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण देखने को मिलता है। समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं भेदभाव को आईना दिखाते हुए, उनका समाज से परिचय कराया है।
महादेवी वर्मा जी ने गद्य साहित्य में समाज के पिछड़े समाज के पात्रों का भी अत्यंत सजीव एवं मार्मिक चित्रण है। वह पशु पक्षियों से भी बहुत प्रेम करती थी और उनकी रचनाओं में उन्होंने बहुत ही सुंदरता से उन सभी का वर्णन किया है। उन्होंने अपने घर में भी कुत्ते, बिल्ली, गाय, गिलहरी, नेवला आदि को पाला हुआ था।
उन्होंने लिखा है, “मेरे शब्दचित्रों का आरम्भ बहुत गद्यात्मक और बचपन का है। मेरा पशु-पक्षियों का प्रेम तो जन्मजात था, अतः क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज के छात्रावास में मुझे उन्हीं का अभाव कष्ट देता था। हमारे स्कूल के आम के बाग़ में रहने वाली खटकिन ने कुछ मुर्गि़यां पाल रखी थीं। जिनके छोटे बच्चों को मैं प्रतिदिन दाना देती और गिनती थी। एक दिन एक बच्चा कम निकला और पूछने पर ज्ञात हुआ कि हमारी नई अध्यापिका उसे मारकर खाने के लिए ले गई है। अन्त में मेरे रोने-धोने और कुछ न खाने के कारण वह मुझे वापस मिल गया। तब मेरे बालकपन ने सोचा कि सब मुर्गी के बच्चों की पहचान रखी जावे, अन्यथा कोई और उठा ले जाएगा। तब मैंने पंजों का, चोंच का और आंखों का रंग, पंखों की संख्या आदि एक पुस्तिका में लिखी। फिर सबके नाम रखे और प्रतिदिन सबको गिनना आरम्भ किया। इस प्रकार मेरे रेखाचित्रों का आरम्भ हुआ, जो मेरे पशु-पक्षियों के परिवार में पल्लवित हुआ है। फिर एक ऐसे नौकर को देखा जिसे उसकी स्वामिनी ने निकाल दिया था। पर वह बच्चों के प्रेम के कारण कभी बताशे, कभी फल लेकर बाहर बच्चों की प्रतीक्षा में बैठा रहता था। उसे देखकर मुझे अपना बचपन का सेवक रामा याद आ गया और उसका शब्दचित्र लिखा।”
कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि महादेवी वर्मा के बिना आधुनिक हिन्दी साहित्य का उल्लेख हमेशा अधूरा ही होगा और हिन्दी साहित्य जगत में महादेवी जी ध्रुव तारे की भाँति सदा ही चमकती रहेंगी।

 



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