स्वन्त्रता प्राप्ति
के बाद भारत में रेडियो का विकास
रेडियो का अविष्कार:-
विज्ञान
के नए अविष्कारों का मानव जीवन को सुखमय बनाने में महत्वपूर्ण योगदान है । रेडियो का
अविष्कार भी इनमें से एक है। रेडियो सेट पर जब भी हम कोई समाचार या संगीत का कार्यक्रम
सुनते है तो हमारे मन में यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि रेडियो सेट पर यह आवाज हम
तक कैसे पहुचती है। शुरुआती दौर में रेडियो के संकेतो का उपयोग नौका चालको की सुरक्षा
के लिए किया जाता था जब नाविक किसी समुद्री तूफान में फंस जाते थे जो वे दूसरे तट पर रहने वालों तक अपनी पुकार
को पहुँचाने के लिए इसका उपयोग किया करते थे, ताकि उन्हें सुरक्षा प्राप्त हो सके।
भारत में रेडियो का चलन वर्षो पुराना है। प्राचीन समय में रेडियो एक ऐसा यंत्र था जिसे
लोग बहुत चाव से सुना करते थे क्योंकि इसके माध्यम से लोगो तक देश और दुनिया की खबरे
पहुँचाई जाती थी साथ ही यह उस समय के लोगो के लिए मनोरंजन का साधन भी था।आज के समय
मे यह रेडियो लोगों के जीवान का एक हिस्सा बना हुआ है।
भारत में रेडियो प्रसारण
की शुरुआत
भारत में रेडियो प्रसारण की शूरूआत मुम्बई और
कोलकत्ता में साल 1927 में दो निजी ट्रांसमीटरों से हुई ।1930 में इसका राष्ट्रीयकरण
हुआ और तब इसका नाम भारतीय प्रसारण सेवा रखा
गया था ।
स्वन्त्रता प्राप्ति के पूर्व
1944 में ऑल इंडिया रेडियो के महानिदेशक अहमदशाह बुखारी के कार्यकाल के दौरान प्रसारण
के विस्तार की योजना बनाई गई। स्वतन्त्र भारत का पहला रेडियो स्टेशन 1 नवंबर 1947 को
जालंधर में खोला गया । पहली जुलाई 1948 को श्रीनगर में रेडियो स्टेशन रेडियो स्टेशन
से प्रसारण आरम्भ हुआ।देश की सांस्कृतिक और
राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में रेडियो की भूमिका को समझा गया । स्वाधीनता प्राप्ती
के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री ।उन्होंने भारतीय
संदर्भ में प्रसारण को आगे बढ़ाने में नयी दिशा दी।
जब भारत का बंटवारा हुआ था उस समय भारत में कुल छह
रेडियो स्टेशन थे जो दिल्ली, बम्बई,कलकत्ता,मद्रास,तिरुचि,और लखनऊ भारत में रह गए और
तीन रेडियो स्टेशन लाहौर ,पेशावर और ढाका तत्कालीन पाकिस्तान में चले गए। भारत में
आजादी के बाद देश में जब स्थितियां रेडियो के अनुकूल बनी तब इसके प्रसारण की योजना
और विस्तार पर अधिक ध्यान दिया गया,रेडियो के प्रसारण केंद्रों का विस्तार हुआ।
"बहुजन हिताय बहुजन सुखाय"
की भावना को ध्यान में रखते हुए देश के कोने-कोने में ट्रांसमीटर लगाने के काम को प्राथमिकता
दी गयी। इसी कड़ी में ऑल इंडिया रेडियो का नाम बदल कर 1957 आकाशवाणी कर दिया गया।
स्वन्त्रता के पश्चात
भारत मे रेडियो एक बेहद प्रबल माध्यम के रूप में विकसित हुआ। धर्मनिरपेक्ष,लोकहितकारी,राष्ट्र
के जन माध्यम के रूप में देश के नव निर्माण में आकशवाणी की अहम भूमिका रही है।आज आकशवाणी
देश की 24 भाषाओं एवं 146 बोलियों में कार्यक्रम पेश करती है।
1993 में एफएम(फ्रीक्वनसी
मॉड्यूलेशन) की शुरुआत के साथ रेडियो के क्षेत्र में निजी कंपनीयां भी आगे आई।अतः आकाशवाणी
के अतिरिक्त सैकड़ो निजी एफएम स्टेशनों तथा बीबीसी वॉइस,मास्को रेडियो,रेडियो ऑस्ट्रेलिया
जैसे अनेक विदेशी प्रसारण एवं रेडियो क्लबो का जाल बिछा हुआ है।
समय के साथ साथ रेडियो द्वारा जी जाने वाली
सेवाओ में भी कई परिवर्तन आए है,जैसे अब रेडियो ब्रॉडबैंड,मोबाइल और टेबलेट के जरिये
भी आसानी से उपलब्ध है,रेडियो की इन विशिष्टताओं
के चलते पूरे विश्व मे 13 फरवरी के
दिन वर्ल्ड रेडियो दिवस का ऐलान किया गया है।