कैफ़ी आज़मी का जीवन परिचय
अतहर हुसैन रिज़वी का जन्म 19 जनव 1919 को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले में मजमा गाँव में हुआ। अदब की दुनिया में आगे चलकर वे कैफ़ी आज़मी नाम से मशहूर हुए। कैफ़ी आज़मी की गणना प्रगतिशील उर्दू कवियों की पहली पंक्ति में की जाती है। कैफ़ी की कविताओं में एक ओर सामाजिक और राजनैतिक जागरूकता का समावेश है तो दूसरी ओर हृदय की कोमलता भी है। अपनी युवावस्था में मुशायरों में वाह-वाही पाने वाले कैफ़ी आज़मी ने फ़िल्मों के लिए सैकड़ों बेहतरीन गीत भी लिखे हैं।
10 मई 2002 को इस दुनिया से रुखसत हुए कैफ़ी के पाँच कविता संग्रह झंकार, आखिर-ए-शब, आवारा सज़दे, सरमाया और फ़िल्मी गीतों का संग्रह मेरी आवाज़ सुनो प्रकाशित हुए। अपने रचनाकर्म के लिए कैफ़ी को साहित्य अकादेमी पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया। कैफ़ी कलाकारों के परिवार से थे। इनके तीनों बड़े भाई भी शायर थे। पत्नी शौकत आज़मी, बेटी शबाना आज़मी मशहूर अभिनेत्रियाँ हैं।
10 मई 2002 को इस दुनिया से रुखसत हुए कैफ़ी के पाँच कविता संग्रह झंकार, आखिर-ए-शब, आवारा सज़दे, सरमाया और फ़िल्मी गीतों का संग्रह मेरी आवाज़ सुनो प्रकाशित हुए। अपने रचनाकर्म के लिए कैफ़ी को साहित्य अकादेमी पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया। कैफ़ी कलाकारों के परिवार से थे। इनके तीनों बड़े भाई भी शायर थे। पत्नी शौकत आज़मी, बेटी शबाना आज़मी मशहूर अभिनेत्रियाँ हैं।
कैफ़ी आज़मी की बीवी शौकत आजमी को बच्चा होने वाला था। कम्युनिस्ट पार्टी की हमदर्द और 'प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन' की मेंबर थीं इस्मत चुगतई। उन्होंने अपने शौहर शाहिर लतीफ से कहा कि तुम अपनीफ़िल्म के लिए कैफ़ी से क्यों नहीं गाने लिखवाते हो? कैफ़ी साहब ने उस वक्त तक कोई गाना नहीं लिखा था। उन्होंने लतीफ साहब से कहा कि मुझे गाना लिखना नहीं आता है। उन्होंने कहा कि तुम फ़िक्र मत करो। तुम इस बात की फ़िक्र करो कि तुम्हारी बीवी बच्चे से है और उस बच्चे की सेहत ठीक होनी चाहिए। उस वक्त शौकत आजमी के पेट में जो बच्चा था, वह बड़ा होकर शबाना आजमी बना। कैफ़ी आज़मी ने 1951 में पहला गीत 'बुझदिल फ़िल्म' के लिए लिखा- 'रोते-रोते बदल गई रात'। कैफ़ी आज़मी ट्रेडीशनल बिल्कुल नहीं थे। शिया घराने में एक जमींदार के घर में उनकी पैदाइश हुई थी। मर्सिहा शिया के रग-रग में बसा हुआ है। मुहर्रम में मातम के दौरान हजरत अली को जिन अल्फाजों में याद करते हैं, वह शायरी में है। वे जिस माहौल में पले-बढ़े, वहां शायरी का बोल-बाला था। गयारह साल की उम्र में उन्होंने लिखा था, ‘‘इतना तो जिंदगी में किसी की खलल पड़े, हंसने से हो सुकूं, न रोने से कल पड़े.’ भारत-पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर जितनी फ़िल्में आज तक बनी हैं, उनमें ‘गरम हवा’ को आज भी सर्वोत्कृष्ट फ़िल्म का दर्जा हासिल है। ‘गरम हवा’ फ़िल्म की कहानी, पटकथा, संवाद कैफ़ी आजमी ने लिखे। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि ‘गरम हवा’ पर कैफ़ी आजमी को तीन-तीन फ़िल्म फेयर अवार्ड दिए गए। पटकथा, संवाद पर बेस्ट फ़िल्म फेयर अवार्ड के साथ ही कैफ़ी को ‘गरम हवा’ पर राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
कर चले हम फिदा पाठ का सार
प्रस्तुत कविता में देश के सैनिकों की भावनाओं का वर्णन है। सैनिक कभी भी देश के मानसम्मान को बचाने से पीछे नहीं हटेगा। फिर चाहे उसे अपनी जान से ही हाथ क्यों ना गवाना पड़े। भारत – चीन युद्ध के दौरान सैनिकों को गोलियाँ लगने के कारण उनकी साँसें रुकने वाली थी ,ठण्ड के कारण उनकी नाड़ियों में खून जम रहा था परन्तु उन्होंने किसी चीज़ की परवाह न करते हुए दुश्मनों का बहदुरी से मुकाबला किया और दुश्मनों को आगे नहीं बढ़ने दिया। सैनिक गर्व से कहते है कि हमें अपने सर भी कटवाने पड़े तो हम ख़ुशी ख़ुशी कटवा देंगे पर हमारे गौरव के प्रतिक हिमालय को नहीं झुकने देंगे अर्थात हिमालय पर दुश्मनों के कदम नहीं पड़ने देंगे। लेकिन देश के लिए प्राण न्योछावर करने की ख़ुशी कभी कभी किसी किसी को ही मिल पाती है अर्थात सैनिक देश पर मर मिटने का एक भी मौका नई खोना चाहते। जिस तरह से दुल्हन को लाल जोड़े में सजाया जाता है उसी तरह सैनिकों ने भी अपने प्राणों का बलिदान दे कर धरती को खून से लाल कर दिया है सैनिक कहते हैं कि हम तो देश के लिए बलिदान दे रहे हैं परन्तु हमारे बाद भी ये सिलसिला चलते रहना चाहिए। जब भी जरुरत हो तो इसी तरह देश की रक्षा के लिए एकजुट होकर आगे आना चाहिए। सैनिक अपने देश की धरती को सीता के आँचल की तरह मानते हैं और कहते हैं कि अगर कोई हाथ आँचल को छूने के लिए आगे बड़े तो उसे तोड़ दो।अपने वतन की रक्षा के लिए तुम ही राम हो और तुम ही लक्ष्मण हो अब इस देश की रक्षा का दायित्व तुम पर है।
कर चले हम फ़िदा पाठ की व्याख्या
काव्यांश 1
कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
काव्यांश 1
कर चले हम फ़िदा जानो-तन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
साँस थमती गई, नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गए सर हमारे तो कुछ गम नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते-मरते रहा बाँकपन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
प्रसंग -: प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘ स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई हैं। इसके कवि कैफ़ी आज़मी हैं। इन पंक्तियों में कवि एक वीर सैनिक का अपने देशवासियों को दिए आखरी सन्देश का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – कवि कहते हैं कि सैनिक अपने आखिरी सन्देश में कह रहें है कि वो अपने प्राणों को देश हित के लिए न्योछावर कर रहें है ,अब यह देश हम जाते जाते आप देशवासियों को सौंप रहें हैं। सैनिक उस दृश्य का वर्णन कर रहें है जब दुश्मनों ने देश पर हमला किया था। सैनिक कहते है कि जब हमारी साँसे हमारा साथ नहीं दे रही थी और हमारी नाड़ियों में खून जमता जा रहा ,फिर भी हमने अपने बढ़ते क़दमों को जारी रखा अर्थात दुश्मनों को पीछे धकेलते गए। सैनिक गर्व से कहते है कि हमें अपने सर भी कटवाने पड़े तो हम ख़ुशी ख़ुशी कटवा देंगे पर हमारे गौरव के प्रतिक हिमालय को नहीं झुकने देंगे अर्थात हिमालय पर दुश्मनों के कदम नहीं पड़ने देंगे। हम मरते दम तक वीरता के साथ दुश्मनों का मुकाबला करते रहे अब इस देश की रक्षा का भार आप देशवासियों को सौंप रहे हैं।
काव्यांश 2
जिंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज आती नहीं
हुस्न और इश्क दोनों को रुस्वा करे
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुलहन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘ स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई हैं। इसके कवि कैफ़ी आज़मी हैं। इन पंक्तियों में कवि सैनिक के बलिदान का भावनात्मक रूप से वर्णन कर रहा।
व्याख्या – सैनिक कहते हैं कि हमारे पूरे जीवन में हमें जिन्दा रहने के कई अवसर मिलते हैं लेकिन देश के लिए प्राण न्योछावर करने की ख़ुशी कभी कभी किसी किसी को ही मिल पाती है अर्थात सैनिक देश पर मर मिटने का एक भी मौका नई खोना चाहते। सैनिक देश के नौजवानों को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि सुंदरता और प्रेम का त्याग करना सीखो क्योंकि वो सुंदरता और प्रेम ही क्या ,जवानी ही क्या जो देश के लिए अपना खून न बहा सके। सैनिक देश की धरती को दुल्हन की तरह मानते है और कहते है कि जिस तरह दुल्हन को स्वयंवर में हासिल करने के लिए राजा किसी भी मुश्किल को पार कर जाते थे उसी तरह तुम भी अपनी इस दुल्हन को दुश्मनों से बचा कर रखना। क्योंकि अब हम देश की रक्षा का दायित्व आप देशवासियों पर छोड़ कर जा रहे हैं।
काव्यांश 3
राह कुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नए काफ़िले
फतह का जश्न इस जश्न के बाद है
जिंदगी मौत से मिल रही है गले
बाँध लो अपने सर से कफन साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘ स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई हैं। इसके कवि कैफ़ी आज़मी हैं। इन पंक्तियों में सैनिक देशवासियों को देश के लिए बलिदान करने के लिए तैयार रहने को कहते हैं।
व्याख्या – सैनिक कहते हैं कि हम तो देश के लिए बलिदान दे रहे हैं परन्तु हमारे बाद भी ये सिलसिला चलते रहना चाहिए। जब भी जरुरत हो तो इसी तरह देश की रक्षा के लिए एकजुट होकर आगे आना चाहिए। जीत की ख़ुशी तो देश पर प्राण न्योछावर करने की ख़ुशी के बाद दोगुनी हो जाती है। उस स्थिति में ऐसा लगता है मनो जिंदगी मौत से गले मिल रही हो। अब ये देश आप देशवासियों को सौंप रहे हैं अब आप अपने सर पर मौत की चुनरी बांध लो अर्थात अब आप देश की रक्षा के लिए तैयार हो जाओ।
काव्यांश 4
खींच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
इस तरफ आने पाए न रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
खींच दो अपने खूँ से जमीं पर लकीर
इस तरफ आने पाए न रावन कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छू न पाए सीता का दामन कोई
राम भी तुम, तुम्हीं लक्ष्मण साथियो
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी पाठ्य पुस्तक ‘ स्पर्श भाग -2 ‘ से ली गई हैं। इसके कवि कैफ़ी आज़मी हैं। इन पंक्तियों में सैनिक देशवासियों को प्रेरित कर रहे हैं।
व्याख्या – सैनिक कहते हैं कि अपने खून से लक्ष्मण रेखा के समान एक रेखा तुम भी खींच लो और ये तय कर लो कि उस रेखा को पार करके कोई रावण रूपी दुश्मन इस पार ना आ पाय। सैनिक अपने देश की धरती को सीता के आँचल की तरह मानते हैं और कहते हैं कि अगर कोई हाथ आँचल को छूने के लिए आगे बड़े तो उसे तोड़ दो। अपने वतन की रक्षा के लिए तुम ही राम हो और तुम ही लक्ष्मण हो ।अब इस देश की रक्षा का दायित्व तुम पर है।