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सूचना का अधिकार

                  सूचना का अधिकार 

किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में आमलोगों को सूचना का अधिकार प्रदान करने से तात्पर्य होता है, जनभागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में उठाया गया सराहनीय कदम, क्योंकि किसी भी संवैधानिक सत्ता से समुचित सूचना पाने का जो अधिकार पहले सिर्फ जनप्रतिनिधियों के पास होता है, वही कमोबेश इस कानून के माध्यम से जनता में भी हस्तांतरित कर दिया गया है।

यदि आम लोगों द्वारा इसका सदुपयोग किया जाए तो सत्ता संरक्षित भ्रष्टाचार में काफी कमी सकती है।इससे विकास और सुशासन की अवधारणा परिपुष्ट होती है। लेकिन यदि इसका किसी भी प्रकार से दुरुपयोग किया जाए अथवा दुश्मन देशों से एकत्रित आँकड़े और जानकारियां सांझा की जाने लगे तो किसी भी शासन द्वारा स्थापित व्यस्था की स्वाभाविक गति भी अवरुद्ध हो सकती है। शायद यही वजह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता अखंडता जैसे कतिपय अहम पहलुओं के मद्देनजर कुछ सूचनाओं को मांगने का जनता का अधिकार ही इस कानून में कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया है।


वर्ष 2005 में भारत में अस्तित्व में आया सूचना का अधिकार कानून-:

15 जून 2005 को भारत में सूचना का अधिकार कानून को अधिनियमित किया गया और 12 अक्टूबर 2005 को सम्पूर्ण धाराओं के साथ लागू कर दिया गया। सूचना का अधिकार को अंग्रेजी में राइट टू इनफार्मेशन कहा जाता है, जिसका तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार। जो सूचना का अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को अधिकार प्रदान करता है। सूचना के अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य प्रणाली और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है।

किसी भी लोकतांत्रिक देश में देश की जनता अपने चुने हुए व्यक्ति को शासन करने का अवसर प्रदान करती है, और उनसे यह अपेक्षा करती है कि सरकार पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ अपने सभी दायित्वों का पालन करेगी। लेकिन बदलती परिस्थितियों में अधिकांश राष्ट्रों ने अपने दायित्वो का गला घोंटते हुए पारदर्शिता और ईमानदारी की बोटियां नोंचने में कोई कसर नही छोड़ी , लगे हाथ भ्रष्टाचार के बड़े -बड़े कीर्तिमान कायम करने के लिए एक भी मौका अपने हाथ से गवांना नही भूले, तब जाकर सूचना का अधिकार कानून की अहमियत समझी गई और इसे लागू करने के लिए एक सार्थक मुहिम चलाई गई।

दरअसल भ्रष्टाचार के विभिन्न कीर्तिमानों को स्थापित करने के लिए सत्ताधारी पार्टी द्वारा हर वो काम किया जाता है, जो जनविरोधी और अलोकतांत्रिक है।क्योंकि तब सरकारें यह भूल जाती हैं कि जनता ने उन्हें चुना है।जो देश की असली मालिक है, और सरकार उनकी द्वारा चुनी हुई नौकर। इसलिए मालिक होने के नाते जनता को यह जानने का पूरा अधिकार है कि जो सरकार उनकी सेवा में है, वह क्या कर रही है? आमतौर पर प्रत्येक नागरिक सरकार को किसी किसी माध्यम से कर देती है। यह कर देश के विकास और व्यस्था की आधारशिला को निरंतर स्थिर रखता है, इसलिए जनता को यह जानने का पूरा हक है कि उसके द्वारा दिया गया पैसा कब,कहाँ और किस प्रकार खर्च किया जा रहा है? इसके लिए यह जरूरी है कि सूचना को जनता के समक्ष रखने एवं उसको यह प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया जाए, जो कि एक कानून के द्वारा ही संभव है।



सूचना का अधिकार (संशोधन) विधयेक,2019

हाल ही में लोकसभा ने सूचना का अधिकार संशोधन विधयेक 2019 पारित किया।इसमें सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 को संशोधित करने का प्रस्ताव किया गया है।

संशोधन के प्रमुख बिंदु-:

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त(चीफ इनफार्मेशन कमिश्नर) और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, परंतु संशोधन के तहत अब इसे केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

नए विधेयक के तहत केंद्र और राज्य स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त एवं इनके वेतन भत्ते तथा अन्य रोजगार की शर्तें भी केंद्र सरकार द्वारा ही तय की जाएगी।

सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 यह प्रावधान करता है कि यदि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त पद पर नियुक्त होते समय उम्मीदवार किसी अन्य सरकारी नौकरी की पेंशन या अन्य सेवानिवृत्त लाभ प्राप्त करता है तो उस लाभ के बराबर राशि को उसके वेतन से हटा दिया जाएगा, लेकिन इसमें संशोधन विधेयक में इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।

प्रमुख प्रावधान-:

इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है, यह सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गईं है ।यदि माँगी गई सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वन्त्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घण्टे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है।

इस अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेजो का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे।

प्राप्त सूचना की विषय वस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त ना होने आदि जैसी स्थिति में स्थानीय से लेकर राज्य और केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है।

इस अधिनियम के माध्यम से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री संसद राज्य विधानमंडल के साथ ही सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक और निर्वाचन आयोग जैसी संवैधानिक निकायों उनसे संबंधित पदों को भी सूचना का अधिकार अधिनियम के दायरे में लाया गया है

इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र स्तर पर एक मुख्य सूचना आयुक्त और 10 या 10 से कम सूचना आयुक्ततो की सदस्यता वाले एक केंद्रीय सूचना आयोग के गठन का प्रावधान किया गया है।इसी के आधार पर राज्य में भी एक राज्य सूचना आयोग का गठन किया जाएगा।

यह अधिनियम जम्मू और कश्मीर को छोड़ कर अन्य सभी राज्यों पर लागू होता है।

इसके अंतर्गत सभी संवैधानिक निकाय संसद अथवा राज्य विधानसभा के अधिनियमो द्वारा गठित  संस्थान और निकाय शामिल हैं।

ऐसे कौन से मामलें हैं जिनमेँ सूचना देने से इनकार किया जा सकता है?

राष्ट्र की सम्प्रभुता, एकता अखंडता सामरिक हितों आदि पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली सूचनाएं प्रकट करने की बाध्यता से मुक्ति प्रदान की गई है।

सूचना के अधिकार के समक्ष चुनौतियाँ

 सूचना के अधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने से सबसे बड़ा खतरा आरटीआई कार्यकर्ताओं को है, इन्हें कई तरीके से उत्पीड़ित किया जाता है।औपनिवेशिक हितों के अनुरूप निर्मित वर्ष 1923 का सरकारी गोपनीयता अधिनियम आरटीआई की राह में प्रमुख बाधा है। द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने इस अधिनियम को खत्म करने की सिफारिश की है, जिस पर पारदर्शिता के लिहाज से अमल करना आवश्यक है। इसके अलावा कुछ अन्य चुनौतियाँ भी विद्यमान है जैसे-नौकरशाही में अभिलेखों के रखने उनके संरक्षण की व्यस्था बहुत कमजोर है। सूचना आयोग को चलाने के लिए प्राप्त अवसंरचना और कर्मचारियों का अभाव है सूचना का अधिकार कानून के पूरक कानूनों जैसे -व्हिसल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम का कुशल क्रियान्वयन नहीं हो पाया है।

 केंद्रीय सूचना आयोग की संरचना

सूचना का अधिकार,2005 के अध्याय-3 में केंद्रीय सूचना आयोग तथा अध्याय-4 में राज्य सूचना आयोगों के गठन का प्रावधान है। इस कानून की धारा-12 में केंद्रीय सूचना आयोग के गठन ,धारा-13 में सूचना आयुक्तों की पदावधि एवं सेवा शर्ते धारा-14 में उन्हें पद से हटाने संबंधित प्रावधान किए गए हैं।केंद्रीय सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त तथा अधिकतम 10 केंद्रीय सूचना आयुक्त का प्रावधान है, और इनकी नियुक्ति रास्ट्रपति द्वारा की जाती है।ये नियुक्तियां प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में बनी समिति की अनुशन्सा पर की जाती है, जिसमे लोकसभा में विपक्ष का नेता और प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत मंत्री सदस्य होते हैं।

DOPT है इसका नोडल मंत्रालय

-कार्मिक और प्रशिक्षण् विभाग सूचना का अधिकार और केंद्रीय सूचना आयोग का नोडल विभाग है, अधिकांश सार्वजनिक उपक्रमों और प्राधिकरणों को आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत लाया गया है।आधुनिक तकनीक के उपयोग से आरटीआई दाखिल करने के लिए अब एक बोटल और एप्पलीकेशन भी उपलब्ध है, जिसकी सहायता से कोई भी नागरिक अपने मोबाइल फ़ोन से किसी भी समय किसी भी स्थान से आरटीआई के लिए आवेदन कर सकता है। केंद्र सरकार के 2200 सरकारी कार्यालयो और उपक्रमों में ऑनलाइन आरटीआई दाखिल करने और उसका जवाब देने की व्यवस्था है। ऐसा आम संस्थानों के कामकाज में अधिकतम पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए किया गया है।राज्य सरकारों को भी आरटीआई पोर्टल शुरू करने की व्यावहारिकता पर विचार करने को कहा गया है।राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल बनाने मे राज्य सरकारो की सहायता करने को कहा गया है।



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