Sunday

गणतन्त्र दिवस


                सब के अधिकारों का रक्षक 

                अपना यह यह गणतंत्र पर्व है

                लोकतंत्र ही मंत्र हमारा

                हम सबको इस पर गर्व है!"

जैसा कि हम सभी जानते हैं काल तो प्रवाहमय होता है! इसमें कुछ भी स्थिर नहीं होता! यहां पर हमेशा बदलाव तो होता रहता है! परंतु पुरानी यादों को भुलाया नहीं जा सकता! मुझे इतिहास कि वह स्वर्णिम घटनाएं याद आ रही हैं! जब हर भारतीय अपने हाथों में आजादी की मशाल लिए हुए और सब की जबान पर बस एक ही नारा गूंज रहा था कि भारत माता की जय महात्मा गांधी की जय इंकलाब जिंदाबाद तभी गोलियों की आवाज गूंजते हुए आती हैं और सीने पर गोलियां खाते हुए लहूलुहान देशभक्त जमीन पर गिर पड़ते हैं! परंतु कोई आह नहीं कोई पश्चाताप नहीं दिख रहा, दिख रहा है तॊ बस एक अलौकिक देश और उस देश में एक अटल विश्वास कि हमारा भारत अवश्य स्वतंत्र होगा!15 अगस्त 1947 को यह विश्वास प्रतिफलित भी हुआ क्योंकि-

                     "यह देश महापुरुषों का है!

                      यह देश वीर बलवा बलवानो का

                      यह देश साधको संतों का 

                      यह देश गुड़ी विद्वानों का

                      यह देश गुड़ी विद्वानों का"

महापुरुषों की उपस्थिति में हमारे देश की स्वतंत्रता तब तक अधूरी रहती जब तक यहां का संविधान ना रचा जाए!अतः राष्ट्र निर्माताओं की अधीनता में इस देश का संविधान 20 जनवरी 1950 को लागू किया गया! संविधान तो लागू हो गया पर यह बात अब भी जहन में रखनी शेष थी कि-

              "गौरव गाथा बार-बार दोहरानी है

       प्यारा भारत देश हमारा हम सब हिंदुस्तानी हैं!"

परंतु अभी भी भारत के सामने ऐसी विषम परिस्थितियां थी! जो मनुष्य के सपनों को खंडित कर देती है, तब मन में बस यही भाव जगने लगता है कि-

          "सोचा था अपने देश को खुशियों से सजाएंगे

          क्षमता और सद्गुणों से भारत में बहारें लाएंगे!"

 गणतंत्र की स्वतंत्रता के लिए यह अति आवश्यक है कि हम अपनी सभ्यता संस्कृति मौलिक चिंतन और वैचारिक स्वतंत्रता को बनाए रखें! लेकिन आज ऐसा लगता है,कि मिली राजनैतिक स्वतंत्रता पर विचार परतंत्र है-

           "पाश्चात्य चिंतन चरित्र से कहां हुए स्वतंत्र हैं,

           अभी स्वदेशी तंत्र अपेक्षित मिला कहां सम्मान है,

            और किसी कोने में बैठा रो रहा संविधान है,

           और किसी कोने में बैठा रो रहा संविधान है!"

इस रोते हुए संविधान को प्रबल, सशक्त, सफल और प्रभावशाली बनाने का अधिकार अगर किसी को है तो वह सिर्फ हम देशवासियों को है,क्योंकि चुनाव के माध्यम से एक मजबूत नेतृत्व का चयन करके अपने संविधान को और परी परिपुष्ट बनाते हैं!74 वें गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई देते अंत में बस इतना कहना है कि-

           "इस देश की कीमत जब जब हमने पहचानी है

            हमारे देश का बच्चा-बच्ची बना देश सेनानी है

            जाति-पाती और भाषा का द्वेष पनपने ना देंगे

           अब इन आधारों पर हिंदुस्तान को बटने ना देंगे

            एकता के सतरंगों से सजाएंगे संसार को

            गणतंत्र उपासक बनकर सच्चे 

            उपहार देंगे राष्ट्र को

             उपहार देंगे राष्ट्र को"







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