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गोदान उपन्यास की मूल समस्या

                            गोदान की मूल समस्या 

गोदान की मूल समस्या शहरी उत्तर – गोदान प्रेमचंद की सर्वाधिक लोकप्रिय व कालजयी उपन्यास है इस उपन्यास को कृषकों का महाकाव्य भी कहा गया है। सभी आलोचकों ने प्रेमचंद को कृषक और सामाजिक जीवन का कथाकार कहा है। उसके सभी उपन्यासों में ग्रामीण जीवन तथा ग्रामवासियों विशेषतः किसानों शोषित वर्गों की समस्याओं पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया गया है उनकी समस्या का मूल कारण ढूंढने का प्रयत्न किया है।इस कारण प्रेमचंद को ग्रामीण जीवन तथा कृषि – संस्कृति का कथाकार कहा गया है।

डॉक्टर महेंद्र भटनागर के अनुसार –‘प्रेमचंद के सभी उपन्यास सामाजिक है , और उनकी सामाजिकता किसी न किसी समस्या पर ही आधारित है , प्रेमचंद का कोई भी उपन्यास ऐसा नहीं है जिसमें किसी समस्या को न उठाया गया हो। वस्तुतः वह समस्यामूलक उपन्यासकार ही थे।’

आचार्य शुक्ल के अनुसार –‘ प्रेमचंद कहानी और उपन्यास में वही कार्य कर रहे थे जो कविता के क्षेत्र में छायावादी लेखक।

डॉक्टर नगेंद्र के अनुसार – ‘ प्रेमचंद के कथा का मूल स्वर लोकमंगल था उनकी कहानी अथवा उपन्यास में किसी न किसी समस्या को उजागर किया गया था और उससे बचने का एक मार्ग भी सुझाया गया था। ‘ गोदान को भी ग्राम जीवन तथा कृषि जीवन संस्कृति का महाकाव्य माना गया है। भारतीय किसान के संघर्ष की सम्पूर्ण गाथा तथा उसकी त्रासदी की कहानी इस उपन्यास में निहित है।अतः उसमें ग्रामीण जीवन से संबंध अनेक समस्याएं हैं गोदान की आधिकारिक कथा होरी और उसके परिवार से संबंध होने के कारण यह ग्राम जीवन और कृषक समाज से स्वतः जुड़ी है और उसकी प्रासंगिक कथा का संबंध नगर में रहने वाले पात्रों – ‘ राय साहब ‘ , ‘मालती ‘ , ‘मेहता ‘ , ‘ खन्ना ‘ आदि समस्याओं से है। अतः गोदान में चित्रित समस्याओं पर हम तीन दृष्टियों या प्रकार से विचार कर सकते हैं।

                         

                                पहला स्थान की दृष्टि (शहर और ग्राम) से दूसरा विषय (मूल स्वर)की दृष्टि से तथा तीसरा समस्या के लिए उत्तरदाई व्यक्तियों या संस्थाओं की दृष्टि से। ग्राम तथा नगर की कुछ समस्याएं विषय की दृष्टि से समान है – जैसे ऋण की समस्या , शोषण की समस्या , प्रेम और विवाह की समस्या आदि। अतः हम पहले और दूसरी दृष्टि मिलाकर गोदान में प्रस्तुत समस्याओं पर विचार कर रहे हैं। विषय की दृष्टि से गोदान में चित्रित समस्याओं को तीन वर्गों में रखा जा सकता है सामाजिक , धर्म , परंपरागत विश्वासों , जीवन मूल्यों , रूढ़ियों , अंधविश्वासों के कारण उत्पन्न समस्याएं तथा आर्थिक समस्याएं।

नारी की समस्या – गोदान में नारी की समस्या एक मुख्य समस्या है गांव में लोग परंपरा प्रेमी है तथा प्राचीन जीवन मूल्यों विश्वासों रूढ़ियों से चिपके हुए हैं। अतः नारी के प्रति उनका दृष्टिकोण वही है जो पुरुष प्रधान समाज का रहा है। चाहे नारी शहर की हो या ग्रामीण क्षेत्र की नारी की स्थिति दोनों जगह एक ही प्रकार की है जहाँ ग्रामीण में -झुनिया , सिलिया ,सोना ,रूपा आदि का वर्णन है वही शहर में – मालती , आदि नारी पात्र की स्थिति है। लोग नारी को अपना गुलाम समझते हैं उससे उस गाय की तरह मानते हैं। जिसे किसी भी खूंटे से उसकी इच्छा के विरुद्ध भी बांधा जा सकता है। मेहता मालती से कहता है ‘ प्रेम खुखार शेर की भाटी होता है जो अपने शिकार पर किसी की दृष्टि नहीं पड़ने देता है। ‘ गाँव में होरी , धनिया जैसा उग्र स्वभाव का निर्भय स्त्री पात्र को भी दबा कर रखना चाहता है। भोला अधेड़ होकर भी नवयुवती से विवाह करके उसको दासी की तरह रखना चाहता है। बड़ी जाति का मातादीन चमार जाति की स्त्री सिलिया से यौन संबंध होते हुए भी उसे पत्नी नहीं बनाना चाहता। केवल रखेल के रूप में रखना चाहता है। सोना का पति मथुरा विवाहित और घर में सुंदर पत्नी होते हुए भी सिलिया पर डोरे डालता है। शहर नगर में खन्ना पत्नी होते हुए भी मालती के चक्कर में फंसा हुआ है। गोविंदी के साथ उसका व्यवहार उपेक्षा , उदासीनता तथा क्रूरता का है। मीनाक्षी का पति शराबी वेश्यागामी तथा विलासी है। अतः वह भी मीनाक्षी के साथ पति का धर्म नहीं निभाता। इस प्रकार प्रेमचंद ने नारी की दयनीय स्थिति का चित्रण कर के नारी संबंधी समस्याओं पर प्रकाश डाला है। प्रेमचंद की विशेषता यह है कि उन्होंने धनिया , मीनाक्षी जैसे उग्र स्वभाव वाली स्त्रियों का चित्रण करके तथा ‘ विमेंस लीग ‘ जैसी संस्था की स्थापना करके वहां होने वाले कार्यक्रमों का परिचय देकर यह स्पष्ट संकेत दिया है कि नारी जाति में अपने अधिकारों के प्रति बोध जागृत रहा है। वह पुरुष के अत्याचारों को मौन रहकर चुपचाप सहन करने के बजाए विद्रोह करने लगी है। स्वच्छंद प्रेम – प्रेम की समस्या आज ही नहीं पूर्व काल से ही चलती आरही है। कालिदास , तुलसी , सुर , पद्माकर , आदि कविओं की कविता साहित्य को ध्यान से पढ़ने पर स्पस्ट होता है। आज भी अधिकांश विवाह माता – पिता के द्वारा तय किए जाते हैं। पौराणिक कथा में भी यही रीती थी। कभी कभी कन्या गंधर्व विवाह भी किया करती थी। यह नौबत माता – पिता के राजी न होने के कारण ही हुआ करता था। स्वतंत्र प्रेम को अच्छा नहीं माना जाता परंतु युवक – युवती के बीच परस्पर आकर्षण सहज स्वाभाविक है। दोनों चाहते हैं कि उनका प्रथम प्रेम आकर्षण विवाह में परिणत हो।

                          



गोदान में भी स्वच्छंद प्रेम की परिणति को उजागर किया है। प्रेमचंद भी इस समस्या को अनुभव कर चुके थे। गोदान में दो प्रकार से स्वछंद प्रेम को दिखाया गया है। स्वच्छंद प्रेम की परिणति विवाह में झुनिया विधवा है दूसरी जाति की है , पर गोबर प्रथम दृष्टि में ही उस से प्रेम करने लगता है। दोनों के बीच यौन संबंध भी है हो जाता है। गोबर गांव वालों की पंचायत और माता – पिता सब से डरता है। उसे आशंका है कि उसकी विवाह को कोई स्वीकार नहीं करेगा , फिर भी वह साहसपूर्वक झुनिया को घर ले आता हैधनिया ( जो गोबर की माँ है ) की उदारता के कारण दोनों का विवाह हो जाता है। परंतु गांव के लोगों को यह सहन नहीं होता और पंचायत करके उस विवाह को नकार दिया जाता है और होरी को दंडस्वरूप अपने घर में रखा सारा अनाज और नगद ₹30 देने पड़ते हैं। इन सभी के लिए होरी को अपना घर तक गिरवी रखना पड़ता है। जिसका विरोध गोरी करता है और शहर की और प्रस्थान कर जाता है।

गांव में स्वच्छंद प्रेम का दूसरा उदाहरण मातादीन –सिलिया प्रसंग है। मातादीन जात का ब्राह्मण है सिलिया चमारिन है दोनों के बीच परस्पर आकर्षण होता है दोनों एक दूसरे के परम् में पद जाते है और यौन संबंध स्थापित हो जाता है। किन्तु दोनों को जाती का भय बराबर है मातादीन उतना साहसी नहीं है जितना कि गोबर। अतः मातादीन , सीलिया से विवाह करने को तैयार नहीं होता। गांव के नवयुवकों द्वारा विवश किए जाने पर उसके मुंह में हड्डी डालकर उसे चमार बनाने के दुस्साहस के बाद ही वह सिलिया को पत्नी के रुप में अपना आता है। इस प्रसंग द्वारा लेखक गांव में अभिजात्य वर्ग कहे जाने वाले लोगों से पंचों की भेदभाव पूर्ण नीति तथा आचरण पर भी कटाक्ष करते हैं। जहां गोबर तथा होरी गरीब होने के कारण झुनिया को घर पर बहु बनाने के लिए तड़पाते हैं। वही मातादीन और उसके पिता दातादीन से कोई कुछ नहीं कहता उसके सौ खून भी माफ कर दिए जाते हैं। विवाह संबंधी – विवाह की समस्याएं गोदान की एक मुख्य समस्या है जिसका चित्रण गोदान में हुआ है।
दहेज के कारण विवाह होने में बाधा , बाल विवाह तथा विधवा की समस्या अनमेल विवाह या वृद्ध विवाह का उदाहरण इस उपन्यास में देखा जा सकता है। होरी की बेटी सोना के विवाह में दहेज की समस्या के कारण बढ़ा बनता है। परंतु मथुरा का सोना के प्रति प्रबल आकर्षण सोना का साहस और स्पष्ट ऐलान की दहेज की मांग पर अड़े रहने के कारण वह विवाह नहीं करेगी। इस बाधा को समाप्त कर देता है छोटी बेटी रूपा का विवाह भी दहेज न दे सकने के कारण अधेड़ उम्र के रामसेवक से करना पड़ता है , जो रूपा के पिता की उम्र का है।झुनिया बाल विधवा है अतः उसे सारी उम्र अकेले अपनी इच्छाओं का दमन करते हुए यही काटनी है। गोबर द्वारा अपनाए जाने पर भी भी पंचायत और गांव के लोग विरोध करते हैं स्पष्ट है कि विधवा को समाज की रुचियों तथा अनीति के कारण अपना जीवन शारीरिक तथा मानसिक कष्टों के बीच बिताना पड़ता है। 
विघटन की समस्या – परिवार के विघटन की समस्या आदि काल से चली आ रही है यही समस्या को गोदान में प्रेमचंद जी ने उठाया है। जीवन मूल्यों में परिवर्तन तथा आर्थिक दबाव के कारण सम्मिलित परिवार टूटने लगे थे। प्रेमचंद ने स्वयं अपने परिवार मैं सास बहू के झगड़े थे। उनकी सौतेली मां कि कभी उनकी पत्नी से नहीं बनी थी माता के पुत्रों अपने सौतेले भाइयों के लिए सब कुछ करने के बाद भी उन्हें बदले में मिले केवल उपेक्षा अनादर ही मिला। उपन्या में पहले उन्होंने होरी तथा उनके दो भाइयों हीरा तथा शोभा को उनसे अलग अलग होते दिखाया है। तथा उसके बाद में पिता-पुत्र होरी तथा गोबर के बीच विचार विमर्श से के कारण जो दरार पड़ती है। वह बढ़ती जाती है और गोबर अपनी पत्नी झुनिया के साथ गांव छोड़कर शहर चला जाता है ,वहां मजदूरी करता है और अपनी बहन की शादी के अवसर पर भी गांव नहीं लौटता। नगर में राय साहब तथा उनके बेटे रूद्र पाल में मतभेद है। सरोज को लेकर बाप-बेटे के संबंधों में दरार पड़ गई है। बेटी मीनाक्षी पिता के लाख समझाने पर भी अपने वेश्यागामी माय शराबी पति से समझौता करने को तैयार नहीं होती। उधर खन्ना तथा उसकी पत्नी गोविंदी के साथ भी नहीं है। इन चित्रों के द्वारा लेखक ने सम्मिलित परिवारों के टूटने बिखरने तथा दांपत्य जीवन में कटुता आने की समस्या की ओर संकेत किया है। दिखावा,प्रदर्शनीयता की समस्या- प्रदर्शन प्रियता की समस्या या थोथी मर्यादा की समस्या गांव में ही नहीं शहर में भी यही समस्या है। गांव में होरी अपनी प्रतिष्ठा के लिए ही द्वार पर गाय पालना चाहता है। लोग महतो कहेंगे यही चाह में गाय खरीदता है जिसके लिए वह कितने यत्न करता है। भाई जहर देकर गाय को मर देता है। महत्व कहलाने के लालच में गोबर के लाख समझाने पर भी खेती छोड़कर मजदूरी करने को तैयार नहीं होता। धनिया , मथुरा के घरवालों के मना करने पर भी दहेज में अपने सामर्थ्य के बाहर सम्मान देती है और परिवार कर्ज में डूब जाता है।पंच गोबर – झुनिया के विवाह में जो दंड देता है उससे होरी और टूट जाता है। जाति से बहिष्कृत ना हो इसलिए होरी डाँड़ भरता है , जिसके कारण वह कर्ज में डूब जाता है और अंत में उसके पास ना गाय होती है ना बैल और ना खेती करने के लिए खेत। शहर में भी यही हाल है राय साहब अपनी मिथ्या शाख बनाए रखने के लिए कभी इलेक्शन लड़ते हैं तथा कभी पुत्रियों के विवाह के लिए ऋण लेते हैं,और दिन प्रतिदिन कर्ज में डूब कर अपना सुख चैन मानसिक शांति गवा बैठते है।
अंधविश्वास – रूढ़ि पालन परंपरागत आस्था विश्वास के कारण उत्पन्न समस्याएं गांव के लोग परंपरा प्रिय रूढ़िवादियों में जकड़े धर्म के रूप तथा लकीर के फकीर होते हैं। नगर के लोग विशेषतः धनवान तथा अभिजात्य वर्ग के लोग इन रूढ़ियों से मुक्त होते हैं। अतः गोदान में प्रेमचंद ने इन समस्याओं का अंकन गांव के संदर्भ में ही किया है। अपने इन अंधविश्वासों परंपरागत जीवनमूल्यों रूढ़ियों के कारण ही गोरी अनेक कष्ट उठाता है। यदि वह इन से मुक्त होता है तो पंच का कहना मान कर इनके पचड़े में ना पढ़ता तो कदाचित उसका जीवन इतना यातनापूर्ण ना होता गांव की हत्या होने पर प्रायश्चित करना चाहिए जाति से बहिष्कृत ना होने के लिए शांति के बाहर ऋण लेकर भी पंचों को प्रसन्न रखना चाहिए। घर की इज्जत बचाने के लिए घर की तलाशी नहीं होनी चाहिए थी। भले ही रिश्वत देनी पड़े यह जानते हुए भी कि ऋण लेता है। दातादीन धूर्त है बेईमान है ब्याज के लिए मूल का तिगुना वसूल कर चुका है रसीद नहीं देता और वसूल हुई धनराशि को दुबारा मांग रहा है , और दातादीन नोखेराम की पाई-पाई चुकाने पर बल देता है क्योंकि वह धर्मगुरु है। उसका विश्वास है कि ब्राह्मण की एक एक पाई चुकानी होनी चाहिए वरना शरीर के मैं कोढ फूट पड़ता है। अपनी मान्यताओं के कारण ही वह गांव में पैसा ना रहते हुए भी सत्यनारायण की कथा की थाली में पैसे डालता है। तीर्थ यात्रा से लौटने पर गांव वालों को प्रसाद बांटता है धनिया पत्नी की मृत्यु के समय गोदान के बदले दिन रात सुतली बांटकर कमाए हुए ₹20 दातादीन को दान में देती है ईश्वरीय न्याय में विश्वास ईश्वर जो करता है ठीक करता है ईश्वर जी बड़े छोटे अमीर गरीब बनाकर भेजता है। पिछले जन्मों के कर्मों का फल इस जीवन में भोक्ता है। भाग्य के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता यह अंधविश्वास ही हो रही को यातना की भट्टी में झोंक देते हैं और उसे यमराज के हाथों में धकेल देते हैं। इस प्रकार होरी के कष्टों का एक कारण उसकी धर्म भी रूढ़िवादिता तथा ज्योतिष होती मर्यादा बनाए रखने की।

गोदान 1936 में प्रकाशित हुआ था प्रेमचंद जीवन भर संघर्ष करते रहे थे और जैनेंद्र को लिखे पत्र से स्पष्ट होता है कि वह आर्थिक कठिनाइयों से जूते – जूते तथा एड़ी चोटी का पसीना बहाकर भी उन कठिनाइयों पर विजय पाने में असमर्थ रहे थे। गांधी के असहयोग आंदोलन में आह्वान पर सरकारी नौकरी को छोड़ चुके थे। घर – परिवार चलाना भी काफी मुश्किल हो गई थी। वह शरीर और मन दोनों से हार गए थे इस समय वह मार्क्सवादी विचारधारा से परिचित हुए और उन्हें मार्क्स के सिद्धांतों में पर्याप्त सच्चाई दिखी मार्ग मानता है कि समाज में केवल दो वर्ग है पहला साधन संपन्न तथा दूसरा साधनहीन बुर्जुआ तथा सर्वहारा। शोषक और शोषित साधन-संपन्न साधनहीन वर्ग की व्यवस्था तथा और सहायता का लाभ उठाकर उसका शोषण करता है और सर्वहारा वर्ग जीवन भर कड़ी मेहनत तथा रात-दिन कोल्हू के बैल की तरह चूसता रहता है। दो वक़्त भरपेट भोजन नहीं कर पाता अतः सारी मुसीबतों की जड़ वैमनस्य है। गोदान में शोषण करने वालों की भीड़ जमा है जमींदार किसानों का शोषण करता है महाजन ऋण लेने वालों का तथा उद्योगपति मिल मालिक मिलकर काम करने वाले मजदूरों का। गोदान में राय साहब किसानों से बेगार लेते हैं लगान वसूलते हैं रियायत नहीं करते समय पर लगान चुकाने वाले को बेदखली की धमकी देते हैं इतना ही नहीं अपने को स्वरूप करने सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने स्वयं को भारतीय संस्कृति का पुजारी एवं धार्मिक वृत्ति का व्यक्ति दिखाने के लिए रामलीला का आयोजन करते हैं। पर उसके लिए जो धनराशि चाहिए वह किसानों से वसूल करते हैं। प्रति हल चंदा देने की बात कहते हैं गांव में साहूकार एक नहीं अनेक है होरी के गांव में जिन गुरु सिंह पटवारी है नौकेराम का कारिंदा है दुलारी सब भाई भी हैं यहां तक कि धर्म आचार्य पंडित दातादीन भी ब्याज पर ऋण देता है यह सब ऊंची ब्याज दर पर ऋण देते हैं समय पर कागज नहीं लिखाते नतीजा यह होता है कि मूल से तिगुना वसूल करते हैं। ऋण देते समय किसी ना किसी बहाने पूरी रकम भी नहीं देते ₹30 का कागज लिखवाते हैं पर ऋण लेने वाले के हाथ ₹25 ही बढ़ाते हैं। ऋण का भुगतान करने पर या लगान की पूरी रकम चुकाने पर कभी-कभी रसीद भी नहीं देते। ऋण लेने वाले की अशिक्षा भोलेपन तथा विश्वास करने की प्रवृत्ति का लाभ उठाकर चुकाई गई रकम को दुबारा वसूल करने का प्रयास करते हैं। नोखेराम , होरी के साथ यही करता है पर गोबर की वजह से उसकी चाल नहीं चल पाती। 
निष्कर्ष :-
समग्रतः कहा जा सकता है कि गोदान कृषक जीवन का महाकाव्य है। यह उपन्यास शहरी जीवन से अधिक ग्रामीण जीवन को समाहित करता है जिसके कारण इस उपन्यास में कृषक की समस्याओं को अधिक मजबूती से प्रकट किया गया है। गोदान समस्यामूलक उपन्यास है। इस उपन्यास में अनेक समस्याओं को उजागर किया गया है। शहर के लोग जो अभिजात्य वर्ग कहलाते है।वह भी विभिन्न प्रकार की समस्या से ग्रसित है। कृषक वर्ग का चौतरफा शोषण किया जा रहा था उस समस्या को बारीकी से प्रेमचंद ने पकड़ा और प्रस्तुत किया साथ ही उससे मुक्ति का मार्ग भी दिया।


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