Thursday

हिंदी दिवस

                          हिंदी दिवस

 "ध्यान से सुनना,राज ये गहरा मैं धीरे से खोल रहा हूं ,

    कानों से नहीं दिल से सुना मैं हिंदी बोल रहा हूं।" 

                 
यह सर्वकालिक सत्य है कि कोई भी देश अपनी भाषा में ही अपने मूल स्वत्व को प्रकट कर सकता है। निज भाषा देश की उन्नति का मूल होता है। निज भाषा को नकारना अपनी संस्कृति को विस्मरण करना है। जिसे अपनी भाषा पर गौरव का बोध नहीं होता, वह निश्चित ही अपनी जड़ों से कट जाता है और जो जड़ों से कट गया उसका अंत हो जाता है। भारत का परिवेश निसंदेह हिंदी से भी जुड़ा है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि हिंदी भारत का प्राण है, हिंदी भारत का स्वाभिमान है, हिंदी भारत का गौरवगान है। 

                      


महात्मा गांधी ने भी हिंदी के बारे में कहा था कि-हृदय की कोई भाषा नहीं है हृदय हृदय से बातचीत करता है और हिंदी हृदय की भाषा है।

भारत के अस्तित्व का भान कराने वाले प्रमुख बिंदुओं में हिंदी का भी स्थान है। हिंदी भारत का अस्तित्व है। आज हम जाने अनजाने में जिस प्रकार से भाषा के साथ मजाक कर रहे हैं, वह अभी हमें समझ में नहीं आ रहा होगा, लेकिन भविष्य के लिए यह अत्यंत दुखदायी होने वाला है।वर्तमान में प्रायः देखा जा रहा है कि हिंदी की बोलचाल में अंग्रेजी और उर्दू शब्दों का समावेश बेखटके हो रहा है। इसे हम अपने स्वभाव का हिस्सा मान चुके हैं, लेकिन हम विचार करें कि क्या यह हिंदी के शब्दों की हत्या नहीं है। हम विचार करें कि जब भारत में अंग्रेजी नहीं थी, तब हमारा देश किस स्थिति में था। हम अत्यंत समृद्ध थे, इतने समृद्ध कि विश्व के कई देश भारत की इस समृद्धि से जलन रखते थे। इसी कारण विश्व के कई देशों ने भारत की इस समृद्धि को नष्ट करने का उस समय तक षड्यंत्र किया, जब तक वे सफल नहीं हो गए। लेकिन एक बात ध्यान में रखना होगा कि हम अंग्रेजी को केवल एक भाषा के तौर पर स्वीकार करें।

भारत के लिए अंग्रेजी केवल एक भाषा ही है। जब हम हिंदी को मातृभाषा का दर्जा देते हैं तो यह भाव हमारे स्वभाव में प्रकट होना चाहिये। हिंदी हमारा स्वत्व है। भारत का मूल है। इसलिए कहा जा सकता है कि हिंदी हृदय की भाषा है।भाषाओं के मामले में भारत को विश्व का सबसे बड़ा देश निरूपित किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारत दक्षिण के राज्यों में अपनी एक भाषा है, जिसे हम विविधता के रूप में प्रचारित करते है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि भाषा के मामले में हम अत्यंत समृद्ध हैं। लेकिन कभी कभी यह भी देखा जाता है कि राजनीतिक कारणों के प्रभाव में आकर दक्षिण भारत के कुछ लोग हिंदी का विरोध करते हैं। इस विरोध को जन सामान्य का कुछ भी लेना देना नहीं होता, लेकिन ऐसा प्रचारित करने का प्रयास किया जाता है जैसे पूरा समाज ही विरोध कर रहा हो। दक्षिण भारत के राज्यों में जो भाषा बोली जाती है, उसका हिंदी भाषियों ने सदैव सम्मान किया है। भाषा और बोली तौर पर भारत की एक विशेषता यह भी है कि चाहे वह दक्षिण भारत का राज्य हो या फिर उत्तर भारत का, हर प्रदेश का नागरिक अपने शब्दों के उच्चारण मात्र से यह प्रदर्शित कर देता है कि वह किस राज्य का है। प्रायः सुना भी होगा कि भाषा को सुनकर हम उसका राज्य या अंचल तक बता देते हैं। यह भारत की बेहतरीन खूबसूरती ही है।जहां तक राष्ट्रीयता का सवाल आता है तो हर देश की पहचान उसकी भाषा भी होती है। हिन्दी हमारी राष्ट्रीय पहचान है। दक्षिण के राज्यों के नागरिकों की प्रादेशिक पहचान के रूप में उनकी अपनी भाषा हो सकती है, लेकिन राष्ट्रीय पहचान की बात की जाए तो वह केवल हिंदी ही हो सकती है।

                 


हालांकि आज दक्षिण के राज्यों में हिंदी को जानने और बोलने की उत्सुकता बढ़ी है, जो उनके राष्ट्रीय होने को प्रमाणित करता है। आज पूरा भारत राष्ट्रीय भाव की तरफ कदम बढ़ा रहा है। हिन्दी के प्रति प्रेम प्रदर्शित हो रहा है।आज हमें इस बात पर भी मंथन करना चाहिए कि भारत में हिंदी दिवस मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ रही है। भारत में अंग्रेजी दिवस और उर्दू दिवस क्यों नहीं मनाया जाता। इसके पीछे यूं तो कई कारण हैं, लेकिन वर्तमान का अध्ययन किया जाए तो यही परिलक्षित होता है कि आज हम स्वयं ही हिंदी के शब्दों की हत्या करने पर उतारू हो गए है। ध्यान रखना होगा कि आज जिस प्रकार से हिंदी के शब्दों की हत्या हो रही है, कल पूरी हिंदी भाषा की भी हत्या हो सकती है। हम विचार करें कि हिंदी भारत के स्वर्णिम अतीत का हिस्सा है। हमें हमारी संस्कृति का हिस्सा है। ऐसा हम अंग्रेजी के बारे में कदापि नहीं बोल सकते।आज हिंदी को पहले की भांति वैश्विक धरातल प्राप्त हो रहा है। विश्व के कई देशों में हिंदी के प्रति आकर्षण का आत्मीय भाव संचरित हुआ है। वे भारत के बारे में गहराई से अध्ययन करना चाह रहे हैं। विश्व के कई प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में हिंदी के पाठ्यक्रम संचालित किए जाने लगे हैं। इतना ही नहीं आज विश्व के कई देशों में हिंदी के संस्करण प्रकाशित हो रहे हैं। अमेरिका में एक साप्ताहिक समाचार पत्र उल्लेखनीय ख्याति प्राप्त कर चुका है। हिंदी संचेतना नामक पत्रिका भी विदेश से प्रकाशित होने वाली प्रमुख पत्रिका के तौर पर स्थापित हो चुकी है। ऐसे और भी प्रकाशन हैं, जो वैश्विक स्तर पर हिंदी की समृद्धि का प्रकाश फैला रहे है। भारत के साथ ही सूरीनाम फिजी, त्रिनिदाद, गुआना, मॉरीशस, थाईलैंड व सिंगापुर इन 7 देशों में भी हिंदी वहां की राजभाषा या सह राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुकी है। इतना ही नहीं आबूधाबी में पिछले वर्ष हिंदी को तीसरी आधिकारिक भाषा की मान्यता मिल चुकी है। आज विश्व के लगभग 44 ऐसे देश हैं जहां हिंदी बोलने का प्रचलन बढ़ रहा है। सवाल यह है कि जब हिंदी की वैश्विक स्वीकार्यता बढ़ रही है, तब हम अंग्रेजी के पीछे क्यों भाग रहे हैं। हम अपने आपको भुलाने की दिशा में कदम क्यों बढ़ा रहे हैं।

                        


भारतेंदु ने हिंदी भाषा के बारे में कहा है कि-"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल'। मतलब मातृभाषा की उन्नति बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है।


 

Wednesday

समास

 समास दो शब्दों से मिलकर बना है, 'सम+आस' जिसका अर्थ होता है संक्षिप्त कथन अर्थात समास में शब्दों का संक्षिप्तीकरण किया जाता है।

                  


समास किसे कहते हैं?

दो या दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने नवीन एवं सार्थक शब्द को समास कहते हैं।

समस्त पद किसे कहते हैं?

समास की प्रक्रिया से बने शब्दों को समस्त पद कहते हैं।

समास विग्रह किसे कहते हैं?

समास की प्रक्रिया से बने शब्दों को अलग करने की विधि को समास विग्रह कहते हैं।

उदाहरण:- राजपुत्र (समास) राजा का पुत्र(समास विग्रह)

समास की रचना में प्राय दो पद होते हैं पहले को पूर्व पद तथा दूसरे को उत्तर पद कहते हैं।

                        

समास के भेद

समास के निम्नलिखित 6 भेद होते हैं।

1. द्विगु समास

2. द्वंद समास

3. बहुव्रीहि समास 

4.अव्ययीभाव समास 

5.कर्मधारय समास

6. तत्पुरुष समास

                            

1.द्विगु समास :- वह समास जिसका पूर्व पद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा समस्तपद समाहार या समूह का बोध कराए, उसे द्विगु समास कहते हैं।
 जैसे:
दोपहर : दो पहरों का समाहार
शताब्दी : सौ सालों का समूह
पंचतंत्र : पांच तंत्रों का समाहार
सप्ताह : सात दिनों का समूह

2.द्वंद्व समास :- जिस समस्त पद में दोनों पद प्रधान हों एवं दोनों पदों को मिलाते समय ‘और’, ‘अथवा’, या ‘एवं ‘ आदि योजक
लुप्त हो जाएँ, वह समास द्वंद्व समास कहलाता है। जैसे:

अन्न-जल : अन्न और जल

अपना-पराया : अपना और पराया

राजा-रंक : राजा और रंक

देश-विदेश : देश और विदेश आदि।

रुपया-पैसा : रुपया और पैसा

माता-पिता : माता और पिता

दूध-दही : दूध और दही

3.बहुव्रीहि समास :- जिस समास के समस्त पदों में से कोई भी पद प्रधान नहीं हो एवं दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की और संकेत करते हैं वह समास बहुव्रीहि समास कहलाता है। जैसे:

गजानन : गज से आनन वाला

त्रिलोचन : तीन आँखों वाला

दशानन : दस हैं आनन जिसके

चतुर्भुज : चार हैं भुजाएं जिसकी 

मुरलीधर : मुरली धारण करने वाला आदि।

4.अव्ययीभाव समास :- वह समास जिसका पहला पद अव्यय हो एवं उसके संयोग से समस्तपद भी अव्यय बन जाए, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं। अव्ययीभाव समास में पूर्वपद प्रधान होता है।

अव्यय : जिन शब्दों पर लिंग, कारक, काल आदि शब्दों से भी कोई प्रभाव न हो जो अपरिवर्तित रहें वे शब्द अव्यय कहलाते हैं। 

अव्ययीभाव समास के पहले पद में अनु, आ, प्रति, यथा, भर, हर, आदि आते हैं। जैसे:

आजन्म: जन्म से लेकर

यथामति : मति के अनुसार

प्रतिदिन : दिन-दिन

यथाशक्ति : शक्ति के अनुसार आदि।

यथासमय : समय के अनुसार

यथारुचि : रूचि के अनुसार

प्रतिवर्ष : प्रत्येक वर्ष

प्रतिसप्ताह : प्रत्येक सप्ताह

5.कर्मधारय समास :- वह समास जिसका पहला पद विशेषण तथा दूसरा पद विशेष्य होता है, अथवा एक पद उपमान एवं दूसरा उपमेय होता है, उसे कर्मधारय समास कहते हैं।

कर्मधारय समास का विग्रह करने पर दोनों पदों के बीच में ‘है जो’ या ‘के सामान’ आते हैं। जैसे:

महादेव : महान है जो देव

दुरात्मा : बुरी है जो आत्मा

करकमल : कमल के सामान कर

नरसिंह : सिंह रूपी नर

देहलता = देह रूपी लता

नवयुवक = नव है जो युवक

कमलनयन = कमल के समान नयन

नीलकमल = नीला है जो कमल

6.तत्पुरुष समास :- जिस समास में उत्तरपद प्रधान होता है एवं पूर्वपद गौण होता है वह समास तत्पुरुष समास कहलाता है। जैसे:

धर्म का ग्रन्थ : धर्मग्रन्थ

राजा का कुमार : राजकुमार

तुलसीदासकृत : तुलसीदास द्वारा कृत

तत्पुरुष समास के प्रकार :-

1.कर्म तत्पुरुष – को’ के लोप से यह समास बनता है। जैसे: ग्रंथकार : ग्रन्थ को लिखने वाला

2.करण तत्पुरुष – ‘से’ और ‘के द्वारा’ के लोप से यह समास बनता है। जैसे: वाल्मिकिरचित : वाल्मीकि के द्वारा रचित

3.सम्प्रदान तत्पुरुष – ‘के लिए’ का लोप होने से यह समास बनता है। जैसे: सत्याग्रह : सत्य के लिए आग्रह

4.अपादान तत्पुरुष – ‘से’ का लोप होने से यह समास बनता है। जैसे: पथभ्रष्ट: पथ से भ्रष्ट

5.सम्बन्ध तत्पुरुष – ‘का’, ‘के’, ‘की’ आदि का लोप होने से यह समास बनता है। जैसे: राजसभा : राजा की सभा

6.अधिकरण तत्पुरुष – ‘में’ और ‘पर’ का लोप होने से यह समास बनता है। जैसे: जलसमाधि : जल में समाधि

उदाहरण : 

रथचालक : रथ को चलाने वाला।

जेबकतरा : जेब को कतरने वाला।

मनमाना : मन से माना हुआ

शराहत : शर से आहत

देशार्पण : देश के लिए अर्पण

गौशाला : गौओं के लिए शाला

सत्याग्रह : सत्य के लिए आग्रह

Friday

ई-मेल लेखन

                   ई-मेल लेखन किसे कहते हैं?

                
ईमेल या इलॅक्ट्रॉनिक मेल (Email) एक प्रकार का पत्र ही है जिसे डाक द्वारा न भेजकर इंटरनेट के माध्यम से किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण द्वारा भेजा जाता है। यह इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आपका स्मार्ट फ़ोन, लैपटॉप या कम्यूटर हो सकता है।

ई-मेल बिना पता लिखे सही व्यक्ति तक कैसे पहुँच जाता है?

जिस प्रकार पत्र को डाक द्वारा सही पते पर पहुँचाने के लिए उसमें पूरा पता लिखा होना ज़रूरी होता है ठीक उसी तरह ईमेल के लिए भी एक एड्रेस (इलेक्ट्रोनिक पते) की ज़रूरत होती है। इस ईमेल एड्रेस से ही आपका ईमेल सही व्यक्ति तक पहुँच पता है। उदाहरण के लिए myCBSEguide का इलेक्ट्रॉनिक पता है support@mycbseguide.com. अब जब भी आप रिसिपेंट एड्रेस में यह पता लिखकर ईमेल भेजेंगे, यह ईमेल myCBSEguide कंपनी को मिल जाएगी

ईमेल कैसे लिखा जाती है?

ईमेल लिखने और भेजने के लिए आपको एक ईमेल सर्विस प्रोवाइडर की आवश्यकता होती है जैसे जीमेल, याहू, रेडिफ-मेल या किसी कंपनी की ईमेल सर्विस। अब ईमेल लिखने के लिए हम ईमेल क्लाइंट पर लॉगिन करते है और फिर नयी ईमेल कंपोज़ करते हैं।

                   

यहाँ पर आपको निम्नलिखित फ़ील्ड्स दिखाई देंगे।

FROM अपना पता 

फ्रॉम में आपको अपनी ईमेल ID लिखनी होती है। यदि जिसको आपने ईमेल भेजा है वह रिप्लॉय करता है तो वो आप तक पहुँच सके।

TO प्राप्तकर्ता का पता 

टू में आप उस व्यक्ति या संस्था का ईमेल एड्रेस लिखते हैं जिसके पास आप ईमेल भेजना चाहते है। आपको ध्यान रखना है कि ईमेल एड्रेस में कभी भी ख़ाली स्थान नहीं होता है।

CC सीसी

BCC बीसीसी 

सीसी का का मतलब है कॉपी टू या कार्बन कॉपी। इस भाग में आप जिस भी व्यक्ति का ईमेल आईडी लिखेंगे, उसे आपके ईमेल की एक कॉपी मिल जाएगी। आप यहाँ पर एक से अधिक ईमेल आईडी भी लिख सकते हैं।

SUBJECT विषय 

सब्जेक्ट में आप उस विषय को लिखते है जिस बारे में आप इस ईमेल को लिख रहे हैं। विषय स्पष्ट और सटीक होना चाहिए।

TEXT संदेश पूरा विस्तार से

टेक्स्ट एरिया ईमेल का वह भाग है जहाँ पर आप ईमेल का टेक्स्ट लिखते हैं। यह भाग भी लगभग आपके पत्र लेखन के मुख्य भाग जैसा ही है पर इसमें हम कम औपचारिकताएँ पूरी करते हुए सीधे ईमेल लिखते हैं।

                       



                         ई-मेल लेखन के उदाहरण

1.आपके शहर में सभी प्रकार के खाद्य पदार्थों में मिलावट का धंधा लगातार बढ़ता ही जा रहा है। अपने राज्य के खाद्य-मंत्री को dfpd@gov.in पर एक ईमेल लिखकर इस समस्या के प्रति उनका ध्यान आकृष्ट कीजिए।

From: pawan@mycbseguide.com 

To: dfpd@gov.in 

CC … 

BCC … 

विषय – खाद्य पदार्थों में मिलावट की समस्या के सन्दर्भ में महोदय, 

       आप भली-भांति जानते है कि त्योहारों का मौसम आ पहुँचा है जिसमें खाद्य पदार्थों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इस समय बाजार में खाद्य पदार्थों की माँग बहुत बढ़ जाती है और उनकी पूर्ति करने के लिए मिलावट करने वालों का धंधा भी ज़ोर पकड़ने लगता है जिससे ग्राहक बहुत परेशान होते हैं। आप सम्बन्धित विभागीय कर्मचारियों को सचेत करें जिससे वे जगह-जगह छापामार कार्यवाही हो और दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए ताकि जनजीवन विभिन्न बीमारियों से सुरक्षित हो सके।

 2.राज्य के परिवहन सचिव transport @delhi. gov.in को एक ईमेल लिखिए, जिसमें आपकी बस्ती तक नया बस मार्ग आरंभ कराने का अनुरोध हो।

From: suresh@mycbseguide.com 

To: transport@delhi.gov.in 

CC … 

BCC …

विषय – अपनी कॉलोनी तक नए बस मार्ग हेतु। 

महोदय, 

       मैं उत्तर-पश्चिम दिल्ली के विकासपुरी, डी ब्लॉक का निवासी हूँ। हमारे क्षेत्र में बड़ी जनसंख्या निवास करती है, जिसमें अधिकांश लोग दिल्ली के विभिन्न भागों में कार्यरत हैं। हमारी कॉलोनी से कोई बस नहीं चलती। अतः आपसे अनुरोध है कि विकासपुरी डी-ब्लॉक तक एक नया बस मार्ग (बस रूट) आरंभ करने की कृपा करें। मुझे विश्वास है कि आप इसे गंभीरता से लेते हुए संबंधित अधिकारी को इसके लिए उचित निर्देश देंगे।

       सुरेश ।

 3.छात्रों के लिए अधिक खेल-सामग्री उपलब्ध कराने का अनुरोध करते हुए अपने प्रधानाचार्य महोदय को xyzschool@gmail.com पर एक ईमेल लिखिए।

From: mohan@mycbseguide.com

To: xyzschool@gmail.com

CC …

BCC …

विषय – अधिक खेल सामग्री उपलब्ध कराने का अनुरोध

महोदय,

जैसा कि आपको विदित है कि आगामी मास में जिले स्तर पर विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन होने वाला है जिसमें हमारा विद्यालय भी भाग ले रहा है। हालांकि उपलब्ध साधनों से हमने अभ्यास किया है किन्तु वह पर्याप्त नहीं है। यह अनुरोध हम आपसे कर रहे हैं कि कृपया खिलाड़ियों की खेल सुविधाओं एवं सामग्री में कोई कमी न की जाए तथा खेल गतिविधियों हेतु अधिक फंड निधि की व्यवस्था की जाए ताकि आने वाली प्रतियोगिता में हम बेहतर प्रदर्शन कर सकें और विद्यालय का नाम रौशन कर सकें।

आशा है आप हम खिलाड़ियों के इस अनुरोध को स्वीकार करने की कृपा करेंगे 

  मोहन

4.आपको चरित्र प्रमाण-पत्र की आवश्यकता है। चरित्र प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिए अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य abcschool@gmail.com को ईमेल लिखिए।

From: renu@mycbseguide.com

To: abcschool@gmail.com

CC …

BCC …

विषय – चरित्र प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के संबंध में

महोदय,

विनम्र निवेदन यह है कि मैं आपके विद्यालय की नौवीं ‘अ’ की छात्रा हूँ। मैंने फरवरी 2019 में एक छात्रवृत्ति परीक्षा दी थी, जिसमें मुझे सफल घोषित किया गया है। इसमें अन्य आवश्यक प्रमाण-पत्रों के साथ चरित्र प्रमाण-पत्र भी माँगा गया है। मैंने गत वर्ष अपनी कक्षा में दूसरा स्थान प्राप्त किया था। मैं गरीब परिवार से हूँ। पिता जी किसी तरह से मेरी पढ़ाई का खर्च वहन कर रहे हैं। यह छात्रवृत्ति मिलने से मेरी पढ़ाई का खर्च सुगमता से पूरा हो जाएगा। आपसे प्रार्थना है कि मेरे भविष्य को ध्यान में रखते हुए मुझे चरित्र प्रमाण-पत्र प्रदान करने की कृपा करें। मैं आपकी आभारी रहूंगी।

रेणु 

5.आप ग्रीन वेल अपार्टमेंट, द्वारका में रहते हैं। आपके इलाक़े में एक सीवर टूट गया है जिसके कारण नाले का गंदा पानी सड़क पर आ गया है। ज्यादा गंदा फैल रहा है। सीवर की मरम्मत करवाने हेतु निगम अधिकारी को cdaf@eafg.com पर ईमेल लिखिये।

From: pawan@mycbseguide.com

To: cdaf@eafg.com

CC …

BCC …

विषय – सीवर मरम्मत के लिए अनुरोध

श्रीमान,

ग्रीन वेल अपार्टमेंट के सामने के नाले का सीवर टूट गया है जिसके कारण नाले का गंदा पानी सड़क पर आ गया है। ज्यादा गंदा फैल रहा है। आस पास के इलाक़े में काफ़ी बदबू फैल रही है और यातायात भी बाधित हो रहा है। इसलिए मैं ग्रीन वेल अपार्टमेंट को ओर से आपसे अनुरोध करता हूँ कि कृपया इस नाले की मरम्मत करवाएँ।

मुझे आशा है कि आप इस मरम्मत को जल्द से जल्द पूरा कर लेंगे।

पवन।

Wednesday

विज्ञापन लेखन

                     विज्ञापन किसे कहते है?

                 
विज्ञापन – किसी वस्तु के गुणों की जानकारी या सरकारी-अर्धसरकारी संस्था द्वारा अपनी बात को अधिकाधिक लोगों तक पहुँचाने के लिए जिस माध्यम की सहायता ली जाती है, उसे विज्ञापन कहते हैं।

ज्ञापन’ शब्द में ‘वि’ उपसर्ग लगाने से ‘विज्ञापन’ बना है। इसका अर्थ है-जानकारी देना। वर्तमान समय में उत्पादकों द्वारा अपनी वस्तुओं को बेचने के लिए विज्ञापनों का जमकर प्रयोग किया जाता है। इन विज्ञापनों की भाषा आकर्षक और अतिशयोक्तिपूर्ण होती है जो कि लोगों पर जादू-सा असर करती है। किशोर और बच्चे उन्हीं वस्तुओं का प्रयोग करना चाहते हैं जिनका वे विज्ञापन देखते हैं। अब तो विज्ञापन हमारे खान-पान और रहन-सहन को बुरी तरह प्रभावित करता है।

उद्देश्य – विज्ञापन का उद्देश्य है-जानकारी पहुँचाना। इससे लोगों का ज्ञान बढ़ता है। उनके सामने चुनाव के विकल्प, गुण, मूल्य परखने की सुविधा सरलता से उपलब्ध हो जाती है। इससे विक्रेता भी लाभ कमाते हैं। विज्ञापन की सहायता से कम से कम खर्च में अधिकाधिक लोगों तक अपनी बात पहुँचाई जाती है। यही कारण है कि आज समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, दूरदर्शन के विभिन्न कार्यक्रम पोस्टर, बनैर यहाँ तक कि दीवारें भी रंगी नज़र आती हैं।

विज्ञापन लेखन में ध्यान देने योग्य बातें –

विज्ञापन की भाषा आकर्षक और तुकबंदी युक्त होनी चाहिए।

1.शब्द ऐसे होने चाहिए जो कम से कम होने पर अधिकाधिक अर्थ की अभिव्यक्ति करें।

2.विज्ञापित वस्तु का चित्र साफ़ और स्पष्ट होना चाहिए।

3.विज्ञापन में छूट, स्टॉक सीमित, जल्दी करें जैसे शब्द अवश्य होने चाहिए।

4.विज्ञापन बड़े शब्दों में लिखा जाना चाहिए ताकि दूर से पढ़ा जा सके।

4.विज्ञापन में चित्र रंगीन होने चाहिए।

                        


                         विज्ञापन का महत्व 

विज्ञापन हमेशा से ही बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं, विज्ञापनों के द्वारा ही कंपनियां अपने प्रोडक्ट की जानकारी को लोगों तक पहुंचाने में सफल हो पाते हैं. अगर विज्ञापन नहीं होते तो शायद ही लोगों को मार्केट में आने वाले प्रोडक्ट की खबर होती. विज्ञापन के महत्व को हमने नीचे कुछ बिंदुओं द्वारा आपको समझाने की कोशिस की है –

1.नए प्रोडक्ट की जानकारी देना – विज्ञापन कंपनियों के नए प्रोडक्ट की जानकारी लोगों तक पहुंचाते हैं, तथा उस प्रोडक्ट से होने वाले लाभ और हानियों को भी विज्ञापन उजागर करते हैं।

2.ग्राहक की सुविधा – विज्ञापनों से ग्राहक को काफी सुविधा मिलती हैं, इससे ग्राहकों को पता रहता है कि मार्केट में क्या – क्या प्रोडक्ट आ रहे हैं और उनका इस्तेमाल किस काम के लिए किया जाता है।

3.विक्रेता को लाभ – विज्ञापन से ना केवल ग्राहकों को लाभ मिलता है बल्कि विक्रेताओं को भी बहुत अधिक लाभ होता है. विक्रेताओं की बिक्री में इजाफा तो होता ही है लेकिन इसके साथ उनको प्रोडक्ट के बारे में बार – बार ग्राहकों को नहीं समझाना पड़ता है।

4.देश की अर्थव्यवस्था में योगदान – देश की अर्थव्यवस्था में भी विज्ञापन काफी महत्वपूर्ण होते हैं. विज्ञापन प्रोडक्ट के बारे में लोगों को जागरूक करके बिक्री को बढ़ाते हैं जिससे देश की अर्थव्यवस्था विकास में सहयोग मिलता है।

5.बाजार का निर्माण – विज्ञापन बाजार का निर्माण करते हैं. विज्ञापन के द्वारा लोगों को किसी वस्तु की उपयोगिता के बारे में बताया जाता है जिससे लोग उसके प्रति आकर्षित होते है और उसे खरीदते हैं. इससे बाजार में उस वस्तु की मांग बढती है और बाजार का निर्माण होता है।

6.ग्राहकों के संदेहों को दूर करना – विज्ञापन प्रोडक्ट के संबंध में चल रही भ्रांतियों का निवारण करके ग्राहकों के संदेहों को दूर करते है।

7.समाज को शिक्षित करता है – कई सारे विज्ञापन समाज को शिक्षित करने के उद्देश्य से बनाये जाते हैं, इस प्रकार के विज्ञापन आमतौर पर सरकार या संस्थाओं के द्वारा बनाये जाते हैं. जैसे कन्या भ्रूण हत्या, धुम्रपान, बेटी पढाओ, शराब, स्वच्छता आदि के बारे में लोगों को शिक्षित करना।

                       


             विज्ञापन को लोगों तक पहुंचाने के माध्यम

विज्ञापनों को ऐसे माध्यमों से लोगों तक पहुंचाया जाता है जहाँ पर अधिक से अधिक लोग विज्ञापनों को देख सकें जैसे -

1.समाचार पत्र – समाचार पत्रों या अखबारों के द्वारा वस्तुओं और सेवाओं का प्रचार आसानी से किया जाता है, अधिकांश बिज़नस विज्ञापन के लिए समाचार पत्रों का बहुत अधिक इस्तेमाल करते हैं।

2.मैगजीन – मैगजीन को एकक निश्चित टाइम पर प्रकाशित किया जाता है, जैसे मंथली, वीकली. मैगजीन को पढने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक होती है इसलिए विज्ञापन के लिए मैगजीन एक अच्छा माध्यम माना जाता है।

3.रेडिओ – रेडिओ पहले के समय में विज्ञापन के लिए बहुत ही लोकप्रिय माध्यम था, लेकिन आज इन्टरनेट के बढ़ते उपयोग से रेडिओ सुनने वाले लोगों की संख्या में कमी जरुर हुई है, जिससे अब इस विज्ञापन का इस्तेमाल बहुत कम किया जाता है।

4.टेलीविज़न – टेलीविज़न के चलने वाले सीरियल, मूवी, लाइव स्पोर्ट्स, समाचार आदि के बीच में विज्ञापन प्रदर्शित होते हैं. टेलीविज़न के द्वारा कम समय में बड़ी रेंज में दर्शकों तक पहुंचा जा सकता है।

5.सर्च इंजन – सर्च इंजन जैसे गूगल, बिंग, याहू, YouTube आदि विज्ञापनों के द्वारा कंपनियां अपने लक्षित ऑडियंस तक पहुँच सकती है. यह विज्ञापन काफी प्रभावशाली होते हैं, जिनसे कम लागत में अच्छे रिजल्ट हासिल किये जा सकते हैं।

6.सोशल मीडिया – सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म जैसे फेसबुक, इन्स्टाग्राम, ट्विटर आदि के द्वारा बहुत कम बजट में अधिक लोगों तक पहुंचा जा सकता है. आजकल सोशल मीडिया विज्ञापनों का इस्तेमाल बहुत अधिक होता है।

7.डायरेक्ट मार्केटिंग – डायरेक्ट मार्केटिंग में कंपनियां ईमेल, WhatsApp, मैसेज, फोन कॉल आदि के माध्यम से अपने प्रोडक्ट और सर्विस की जानकारी लोगों तक पहुंचाती है।

8.सिनेमा घर – सिनेमा घरों में मूवी के पहले, बीच में और अंत में कई सारे विज्ञापन दिखाये जाते हैं।

9.बाजार – मार्केट में भीड़ होने के कारण कई कंपनियां बैनर के द्वारा अपने प्रोडक्ट और सर्विस को प्रमोट करती है. आपको मार्केट में कई सारी कंपनियों के बैनर देखने को मिल जायेंगें।

10.पोस्टर – इस प्रकार के विज्ञापन को प्रिंटिंग मशीन से प्रिंट करवाकर गली, मोहल्ले या चौराहों पर लगा दिया जाता है जिससे लोग रूककर पोस्टर में दिए गए सन्देश को पढ़ सकते हैं।

11.वाहन – आमतौर पर ट्रेन, हवाई जहाज या बसों के अन्दर बाहर कई सारे कंपनियों के विज्ञापन होते हैं. जिन्हें कि वाहन को आते – जाते हुए और उस वाहन में सवार हुए लोग देख सकते हैं।

12.लाउडस्पीकर – शहरों में कंपनियां रिक्शे, ऑटो, कार या तांगे में लाउडस्पीकर के द्वारा मौखिक रूप में अपने प्रोडक्ट के लिए विज्ञापन करती हैं।


Tuesday

सूचना लेखन

                       लेखन कौशल सूचना लेखन



मनुष्य जिज्ञासु प्राणी है। वह तरह-तरह की जानकारियों से अवगत होना चाहता है। वह सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है। इसी तरह सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएँ भी कुछ आवश्यक सूचनाएँ लोगों तक पहुँचाना चाहती हैं। जन साधारण की भलाई हेतु वे समय-समय पर ऐसा करती रहती हैं। इन सूचनाओं को जनता तक लिखित रूप में पहुँचाना सूचना-लेखन कहलाता है। सूचना-लेखन के माध्यम से जन साधारण से सीधे संवाद स्थापित किया जाता है। इसके माध्यम से कम खर्च और अल्प परिश्रम से अधिकाधिक लोगों तक सूचनाएँ पहुँचाई जाती हैं। छात्रों को भी तरह-तरह की सूचनाएँ विद्यालय के सूचनापट्ट पर लिखी मिलती हैं। सूचनाएँ प्रायः ऐसे स्थान पर लिखी जाती हैं, जहाँ लोगों द्वारा वे आसानी से देखी और पढ़ी जा सकें। इन्हें कॉलोनियों और रिहायशी इलाकों के मुख्य द्वार पर या प्रायः कॉलोनी के सूचनापट्टों पर लिखी मिल जाती हैं।

सूचना-लेखन में ध्यान देने योग्य बातें-

1.सूचना प्रायः तीन या चार वाक्यों में लिखी जानी चाहिए।

2.सूचना पूर्ण और आसानी से समझ में आने वाली होनी चाहिए।

3.सूचना सरल शब्दों में लिखी जानी चाहिए।

4.सूचना की भाषा प्रभावपूर्ण और मर्यादित शब्दों में लिखी जानी चाहिए।

5.सूचना की लिखावट पठनीय होनी चाहिए।

6.सूचना देने वाले का नाम या स्थान विशेष की जानकारी अवश्य होनी चाहिए।

7.सूचना देने वाले के हस्ताक्षर और दिनांक अवश्य लिखा जाना चाहिए।

सूचना-लेखन की विधि

सूचना लेखन में सबसे ऊपर विद्यालय या संस्था का नाम लिखा जाता है। इससे ज्ञात होता है कि सूचना किस कार्यालय द्वारा दी जा रही है; जैसे-

विद्या भारती सेकेंड्री स्कूल, ज्योति नगर, दिल्ली

खेल परिषद

अगली पंक्ति में मोटे अक्षरों में लिखना चाहिए

सूचना

इसके बाद शीर्षक और उसके नीचे अगले एक अनुच्छेद में इस तरह लिखनी चाहिए –

हमारे विद्यालय की खेल परिषद दवारा आगामी सोमवार को प्रात: 9 बजे एक टायल कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है जिसके माध्यम से विभिन्न खेलों-क्रिकेट, टेबल-टेनिस, लंबी दौड़, फुटबॉल, वॉलीबाल, कबड्डी आदि की टीम बनाने हेतु संभावित खिलाड़ियों का चयन किया जाएगा। जो छात्र-छात्राएँ इसमें अपनी खेल प्रतिभा दिखाना चाहते हैं वे अधोहस्ताक्षरी के पास तीन दिनों के भीतर अपना नामांकन अवश्य करा दें।

करतार सिंह

(खेल शिक्षक)

सचिव, खेल परिषद्


इस तरह हमने देखा कि –

सूचना की भाषा की अपनी अलग विशेषता होती है।

इसे अन्य पुरुष में लिखा जाता है, जैसे सभी छात्रों को सूचित किया जाता है कि।

सूचना लेखन में कम शब्दों के माध्यम से गागर में सागर भरने का प्रयास किया जाता है।

शीर्षक बीच में दो-तीन शब्दों का होता है; जैसे

रक्तदान शिविर का आयोजन

कवि सम्मेलन का आयोजन

दिल्ली दर्शन का कार्यक्रम

अंत में बाएँ कोने में सूचना लेखक का नाम, पद आदि का उल्लेख होता है।


                  

सूचना लेखन के उदाहरण

आइए सूचना-लेखन के कुछ नमूने देखें

1. छात्र-परिषद की बैठक के लिए सूचना-पत्र

सूचना

दिल्ली पब्लिक स्कूल

बुलंदशहर

विद्यालय में अनुशासन एवं सफ़ाई की समस्याओं पर छात्र-परिषद की बैठक आज मध्यावकाश में प्रधानाचार्या के कार्यालय में होगी।

छात्र-परिषद के सभी सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य है।

प्रधानाचार्य।

25 जुलाई, 2023


2.आगामी माह में होने वाले वार्षिकोत्सव से संबंधित तैयारी के लिए विद्यार्थी परिषद की बैठक (Meeting) के लिए सूचना-पत्र

सचना

विद्यार्थी परिषद

सरदार बल्लभभाई पटेल विद्यालय, दिल्ली

1 नवंबर, 20xx

प्रिय मित्रो,

आगामी 25 नवंबर, 20Xx को ‘वार्षिकोत्सव’ का आयोजन किया जा रहा है। इसी से संबंधित व्यवस्था को लेकर कुछ आवश्यक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए छात्र-परिषद की बैठक दिनांक 2 नवंबर, 20XX को ‘सभागार’ में मध्यावकाश के समय होनी निश्चित हुई है।

छात्र परिषद के सभी सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य है।

राहुल शर्मा

सचिव

विद्यार्थी परिषद

Monday

समीक्षा

                       कहानी की समीक्षा के तत्व 

 

                      समीक्षा का क्या अर्थ है?

समीक्षा का अर्थ है-परीक्षण,गुण,दोष,विवेचन,समालोचना,विश्लेषण करना,छानबीन या जांच पड़ताल की क्रिया समालोचना आदि।

समीक्षा किसे कहते हैं?

किसी भी लेखन को पढ़कर उसके बारे में बताना समीक्षा कहलाता है।

समीक्षा की परिभाषा

किसी भी लेखन को पढ़ कर उसके बारें में बताना समीक्षा कहलाता है। समीक्षक द्वारा की गई टिप्पणी पाठकों को पुस्तक पढ़ने या ना पढ़ने के लिए प्रेरित करती है। किसी किताब, लेख, कहानी पर आपकी प्रतिक्रिया होती है जो अच्छी या बुरी हो सकती है। समीक्षा से पाठकों को लेखन के विभिन्न पहलुओं की जानकारी मिलती है। समीक्षा मतलब समालोचना, किसी भी लेखन की समीक्षा व्यवहारिक आलोचना का एक सशक्त रूप होती है। लेकिन लगता है कि आज यह काम कुछ व्यवहारिक बन है, आजकल रचना और लेखों की समीक्षा निजी संबंधों को निभाने के तौर पर की जाती है, मतलब लेखक को खुश करने का ज़रिया। समीक्षा की स्थिति आज दायित्वहीनता की परकाष्ठा तक पहुंच चुकी है। समीक्षाएं आज विशुद्ध लेन-देन का जरिया बन चुकी है।

कहानी की समीक्षा करते समय हम उसके कथानक पत्र भाषा शैली उद्देश्य संवाद आदि तथ्यों पर प्रकाश डालते हैं किसी भी कहानी की समीक्षा करते समय आवश्यक नहीं है कि हम उसके सकारात्मक तथ्यों का ही प्रगठन करें बल्कि हम किसी भी ऐसी बात के विषय में जो हमें पसंद नहीं आए लिख सकते हैं।

                   

                हिंदी कहानी के मूलत 6 तत्व होते हैं।

1.विषय वस्तु अथवा कथानक 

2. चरित्र चित्रण

3. संवाद

4. भाषा शैली 

5. वातावरण 

6. उद्देश्य

इन तत्वों के आधार पर हिंदी कहानी की समीक्षा की जा सकती है।

1. विषय वस्तु अथवा कथानक-प्रत्येक कहानी में कोई ना कोई घटनाक्रम आवश्यक होता है कहानी में वर्णित घटनाओं के समूह को कथा न कहते हैं कथानक किसी भी कहानी की आत्मा है इसलिए कथा ना की योजना इस प्रकार होनी चाहिए कि सभी घटनाएं और प्रसंग परस्पर संबंध हो उनमें बिखराव या परस्पर विरोध नहीं होना चाहिए।

मौलिकता रोचक ता जिज्ञासा कोतवाल की सृष्टि अच्छे कथानक के गुण है। साधारण से साधारण कथानक को भी कहानीकार कल्पना एवं मर्मस्पर्शीय अनुभूतियों के सहारे एक विचित्र और आकर्षण प्रदान कर सकता है।

2. चरित्र चित्रण-प्रत्येक कहानी में कुछ पात्र होते हैं जो कथानक के संजीव संचालक होते हैं इनमें एक और कथानक का आरंभ विकास और अंत होता है तो दूसरी ओर हम कहानी से इनमें आत्मीयता प्राप्त करते हैं। कहानी में मुख्य रूप से दो पात्र होते हैं पहले वर्ग्गत अर्थात जो अपनी वर्ग की विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है दूसरा व्यक्तित्व वे पात्र जिनकी निजी विशेषताएं होती है।

3. संवाद-कहानी का आवश्यक अंग है कहानी में पात्रों के बीच वार्तालाप को संवाद कहते हैं यह संवाद कहानी को सजीव और प्रभावशाली बनाते हैं कहानी में संवाद कथानक को गति प्रदान करते हैं पत्रों का चरित्र चित्रण करते हैं कहानी के स्वाभाविकता प्रदान करते हैं इसका उद्देश्य स्पष्ट करते हैं संवाद का सबसे बड़ा गुण है जिज्ञासा और कुतूहल उत्पन्न करना। इन सब कार्यों का संपादन तभी हो सकता है जब कहानी के संवाद पत्र स्थिति एवं घटना के अनुकूल हो चित्रों को उभारने वाले सरल एवं स्पष्ट हो।

4. भाषा शैली-कहानी की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि उसमें मूल संवेदना को व्यक्त करने की पूरी क्षमता हो कहानीकार का दायित्व और उसकी रचना शक्ति का सच्चा परिचय उसकी भाषा से ही मिलता है भाषा की सृष्टि से सफल कहानी वही मानी जाती है जिसकी भाषा सरल स्पष्ट प्रभाव में और विषय एवं पात्र अनुकूल हो वह ओज माधुर्य गुणों से युक्त हो।

जहां तक शैली का संबंध है उसमें सजीवता रोचकता संवेदात्मकता तथा प्रभावात्मकता आदि का होना आवश्यक है शैली का संबंध कहानी के पूर्ण तत्वों से रहता है कहानीकार इन शैलियों में कहानी लिख सकता है वर्णन प्रधान शैली आत्मकथात्मक शैली पत्रक शैली नाथ की असीली भावात्मक शैली आदि कहानी के लिए सरस संवादात्मक शैली अधिक उपयुक्त होती है।

5. वातावरण-वातावरण का अर्थ है उन सभी परिस्थितियों का चित्रण करना जिम कहानी के पात्र सांस ले रहे हैं सफल कहानी में देशकाल प्रकृति परिवेश आदि का प्रभाव सृष्टि के लिए अनिवार्य तत्व के रूप में स्वीकार किया जाता है वातावरण की सृष्टि से कहानी हृदय पर मार्मिक प्रभाव की अभिव्यंजना करती है कहानीकार पूरे संदर्भ में सामाजिक परिवेश को देखा है उसका यथार्थ वर्णन करता है वातावरण के माध्यम से वह कहानी में एकांतिक प्रभाव लाने की स्थिति उत्पन्न करता है सही वातावरण किसी भी कहानी को विश्वसनीय बनता है।

6. उद्देश्य-कहानी की रचना का उद्देश्य मनोरंजन माना जाता है किंतु मनोरंजन ही कहानी का एकमात्र उद्देश्य नहीं होता कहानी में जीवन के किसी एक पक्ष के प्रति दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जाता है।आज की कहानी मानव जीवन के किसी मनोवैज्ञानिक सत्य को उजागर करती है कहानी द्वारा जीवन सत्य की व्याख्या एवं मानवीय आदर्शों की स्थापना भी की जाती है आकर में लघु होने के उपरांत भी कहानी महान विचारों का वहन करती है।

उदाहरण-भारतेंदु युग की कहानियों का मुख्य स्वर सामाजिक सुधारवादी एवं धार्मिक दृष्टिकोण से प्रेरित था प्रेमचंद की कहानी मध्यम वर्ग के सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण है।

अतः स्पष्ट है की कहानी का उद्देश्य कहानीकार के दृष्टिकोण एवं विषय वस्तु के अनुकूल होता है।

Sunday

अलंकार

                          अलंकार किसे कहते हैं?                 


अलंकार की परिभाषा-जिस प्रकार शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए आभूषण धारण किए जाते हैं उसी प्रकार काव्य की शोभा वृद्धि के लिए प्रयुक्त तत्व ही अलंकार कहे जाते हैं।

आचार्य दंडी ने भी कहा है-"काव्य शोभाकारान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते।"अर्थात काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्द ही अलंकार हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल भी अलंकारों को काव्य में प्रस्तुत भाव को उत्कर्ष देने वाला मानते हैं।

अलंकार के भेद-

अलंकार द्वारा काव्य में चमत्कार का प्रदर्शन शब्द पर अथवा अर्थ पर आधारित होता है अतः अलंकारों के दो प्रमुख भेद हैं।

1. शब्दालंकार

2. अर्थालंकार 

1. जहां चमत्कार कविता में प्रयुक्त शब्द पर आधारित होता है।वहां शब्द अलंकार होता है।यदि प्रयुक्त शब्दों को हटाकर उनका कोई पर्यायवाची रख दिया जाए तो चमत्कार समाप्त हो जाता है।इस प्रकार शब्द विशेष पर आधारित होने के कारण यह शब्दालंकार कहे जाते हैं।

जैसे-

"कनक -कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।"

        या खा बौराए जग, वा पाए बौराए।"

इस पंक्ति में कनक शब्द का दो बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग करके चमत्कार उत्पन्न किया गया है।पहला कनक धतूरे के लिए तथा दूसरा स्वर्ण के लिए प्रयुक्त हुआ है।यदि यहां कनक-कनक की जगह धतूरा और स्वर्ण रख दिया जाए तो चमत्कार समाप्त हो जाएगा अतः चमत्कार शब्द कनक पर आधारित होने के कारण यह शब्दालंकार कहे जाते हैं।

2. अर्थालंकार अर्थालंकार

जहां कविता का चमत्कार या शोभा उसके अर्थ पर आधारित होता है वहां अर्थालंकार होता। वहां यदि प्रयुक्त शब्दों के स्थान पर उनके पर्यायवाची भी रख दिए जाए तो भी चमत्कार यथावत रहता है।

जैसे-

"झर रही मुख-चंद्र से, मुस्कान की है चांदनी।"इस पंक्ति को यदि इस प्रकार कहें-छिटक रही आनन मयंक से स्मिति की विधूलेखा।"तो भी चमत्कार या स्वभाव वैसे ही रहती है अतः यहां अर्थालंकार है।

           

1.अर्थालंकार 

1.अनुप्रास अलंकार

अनुप्रास अलंकार की परिभाषा

जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है। किसी विशेष वर्ण की आवृति से वाक्य सुनने में सुंदर लगता है।

इस अलंकार में किसी वर्ण या व्यंजन की एक बार या अनेक वणों या व्यंजनों की अनेक धार आवृत्ति होती है।

जैसे: मुदित महापति मंदिर आये। 

जैसा की आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं की ‘म’ वर्ण की आवृति हो रही है। यह आवृति वाक्य का सौंदर्य बढ़ा रही है। 

"रघुपति राघव राजा राम।"

ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते है हर शब्द में ‘र’ वर्ण की बार बार आवृति हुई है जिससे इस वाक्य की शोभा बढ़ती है। 

2.यमक अलंकार

यमक अलंकार की परिभाषा

जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है।

प्रयोग किए गए शब्द का अर्थ हर बार अलग होता है। शब्द की दो बार आवृति होना वाक्य का यमक अलंकार के अंतर्गत आने के लिए आवश्यक है। जैसे :

यमक अलंकार के उदाहरण :

कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय। या खाए बौरात नर या पा बौराय।।

इस पद्य में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। प्रथम कनक का अर्थ ‘सोना’ और दुसरे कनक का अर्थ ‘धतूरा’ है। अतः ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है।

3.श्लेष अलंकार

श्लेष अलंकार की परिभाषा

श्लेष का अर्थ होता है चिपका हुआ या मिला हुआ। जब एक ही शब्द से हमें विभिन्न अर्थ मिलते हों तो उस समय श्लेष अलंकार होता है।

यानी जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है लेकिन उससे अर्थ कई निकलते हैं तो वह श्लेष अलंकार कहलाता है। जैसे: श्लेष अलंकार के उदाहरण...

1.रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।

पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।

इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है :

पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए।

2.पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है. रहीम कहते हैं कि चमक के बिना मोती का कोई मूल्य नहीं ।

3.पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है। अतः यह उदाहरण श्लेष केअंतर्गत आएगा।

               

2.अर्थालंकार 
 1.उपमा अलंकार                                                   
  उपमा अलंकार की परिभाषा

जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है।

उपमा अलंकार में एक वस्तु या प्राणी कि तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु के साथ कि जाती है। जैसे :

उपमा अलंकार के उदाहरण

हरि पद कोमल कमल। 

ऊपर दिए गए उदाहरण में हरि के पैरों कि तुलना कमल के फूल से की गयी है। यहाँ पर हरि के चरणों को कमल के फूल के सामान कोमल बताया गया है। यहाँ उपमान एवं उपमेय में कोई साधारण धर्म होने की वजह से तुलना की जा रही है अतः यह उदाहरण उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा।

उपमा अलंकार के अंग

उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं :

उपमेय

उपमान

साधारण धर्म, और

वाचक शब्द

उदाहरण : सागर-सा गंभीर हृदय हो, गिरी-सा ऊंचा हो जिसका मन 

उपमेय : जिस वस्तु या व्यक्ति के बारे में बात की जा रही है या जो वर्णन का विषय है वो उपमेय कहलाता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में हृदय एवं मन उपमेय हैं।

उपमान : वाक्य या काव्य में उपमेय की जिस प्रसिद्ध वस्तु से तुलना कि जा रही हो वह उपमान कहलाता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में सागर एवं गिरी उपमान हैं।

साधारण धर्म : साधारण धर्म उपमान ओर उपमेय में समानता का धर्म होता है। अर्थात जो गुण उपमान ओर उपमेय दोनों में हो जिससे उन दोनों कि तुलना कि जा रही है वही साधारण धर्म कहलाता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है।

वाचक शब्द : वाचक शब्द वह शब्द होता है जिसके द्वारा उपमान और उपमेय में समानता दिखाई जाती है। जैसे : सा।ऊपर दिए गए उदाहरण में ‘सा'वाचक शब्द है। 

 2.रूपक अलंकार की परिभाषा

जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।

रूपक अलंकार अर्थालंकारों में से एक है। रूपक अलंकार में उपमान और उपमेय में कोई अंतर नहीं दिखायी पड़ता है। जैसे: रूपक अलंकार के उदाहरण :

वन शारदी चन्द्रिका-चादर ओढ़े। 

दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं चाँद की रोशनी को चादर के समान ना बताकर चादर ही बता दिया गया है। इस वाक्य में उपमेय – ‘चन्द्रिका’ है एवं उपमान – ‘चादर’ है। यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।

अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो। 

ऊपर दिए गए उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ – उपमान का आरोप है एवं दोनों में अभिन्नता है।यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।

3.उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा :

जब समानता होने के कारण उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना की जाए या संभावना हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यदि पंक्ति में -मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों आदि आता है वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जैसे : उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण :

ले चला साथ मैं तुझे कनक। ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण।।

ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं कनक का अर्थ धतुरा है। कवि कहता है कि वह धतूरे को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षु सोना ले जा रहा हो।

काव्यांश में ‘ज्यों’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है एवं कनक – उपमेय में स्वर्ण – उपमान के होने कि कल्पना हो रही है। अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा।

सिर फट गया उसका वहीं। मानो अरुण रंग का घड़ा हो। 

दिए गए उदाहरण में सिर कि लाल रंग का घड़ा होने कि कल्पना की जा रही है। यहाँ सिर – उपमेय है एवं लाल रंग का घड़ा – उपमान है। उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना कि जा रही है। अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा।

4.मानवीकरण अलंकार की परिभाषा

जब प्राकृतिक वस्तुओं कैसे पेड़,पौधे बादल आदि में मानवीय भावनाओं का वर्णन हो यानी निर्जीव चीज़ों में सजीव होना दर्शाया जाए तब वहां मानवीकरण अलंकार आता है। जैसे: मानवीकरण अलंकार के उदाहरण : फूल हँसे कलियाँ मुसकाई।

जैसा कि ऊपर दिए गए उदाहरण में दिया गया है की फूल हंस रहे हैं एवं कलियाँ मुस्कुरा रही हैं। जैसा की हम जानते हैं की हंसने एवं मुस्कुराने की क्रियाएं केवल मनुष्य ही कर सकते हैं प्राकृतिक चीज़ें नहीं। ये असलियत में संभव नहीं है एवं हम यह भी जानते हैं की जब सजीव भावनाओं का वर्णन चीज़ों में किया जाता है तब यह मानवीकरण अलंकार होता है।

अतः यह उदाहरण मानवीकरण अलंकार के अंतर्गत आएगा।

मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के। 

ऊपर के उदाहरण में दिया गया है कि बादल बड़े सज कर आये लेकिन ये सब क्रियाएं तो मनुष्य कि होती हैं न कि बादलों की। अतएव यह उदाहरण मानवीकरण अलंकार के अंतर्गत आएगा।ये असलियत में संभव नहीं है एवं हम यह भी जानते हैं की जब सजीव भावनाओं का वर्णन चीज़ों में किया जाता है तब यह मानवीकरण अलंकार होता है।अतः यह उदाहरण मानवीकरण अलंकार के अंतर्गत आएगा।

5.अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा

जब किसी वस्तु, व्यक्ति आदि का वर्णन बहुत बाधा चढ़ा कर किया जाए तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। इस अलंकार में नामुमकिन तथ्य बोले जाते हैं। जैसे :

अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण :

हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग, लंका सिगरी जल गई गए निशाचर भाग। 

ऊपर दिए गए उदाहरण में कहा गया है कि अभी हनुमान की पूंछ में आग लगने से पहले ही पूरी लंका जलकर राख हो गयी और सारे राक्षस भाग खड़े हुए।

यह बात बिलकुल असंभव है एवं लोक सीमा से बढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।

आगे नदियां पड़ी अपार घोडा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार।।

ऊपर दी गयी पंक्तियों में बताया गया है कि महाराणा प्रताप के सोचने की क्रिया ख़त्म होने से पहले ही चेतक ने नदियाँ पार कर दी।

यह महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की अतिशयोक्ति है एवं इस तथ्य को लोक सीमा से बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।

धनुष उठाया ज्यों ही उसने, और चढ़ाया उस पर बाण |धरा–सिन्धु नभ काँपे सहसा, विकल हुए जीवों के प्राण।

ऊपर दिए गए वाक्यों में बताया गया है कि जैसे ही अर्जुन ने धनुष उठाया और उस पर बाण चढ़ाया तभी धरती, आसमान एवं नदियाँ कांपने लगी ओर सभी जीवों के प्राण निकलने को हो गए।


परीक्षा के एक दिन पूर्व दो मित्रों की बातचीत का संवाद लेखन कीजिए-

संवाद लेखन किसे कहते हैं  संवाद लेखन -  वह लेखनी है जिसमें दो या अधिक व्यक्तियों के बीच होने वाली बातचीत को लिखित रूप में व्यक्त किया जाता ह...