अलंकार किसे कहते हैं?
अलंकार की परिभाषा-जिस प्रकार शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए आभूषण धारण किए जाते हैं उसी प्रकार काव्य की शोभा वृद्धि के लिए प्रयुक्त तत्व ही अलंकार कहे जाते हैं।
आचार्य दंडी ने भी कहा है-"काव्य शोभाकारान धर्मान अलंकारान प्रचक्षते।"अर्थात काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्द ही अलंकार हैं।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल भी अलंकारों को काव्य में प्रस्तुत भाव को उत्कर्ष देने वाला मानते हैं।
अलंकार के भेद-
अलंकार द्वारा काव्य में चमत्कार का प्रदर्शन शब्द पर अथवा अर्थ पर आधारित होता है अतः अलंकारों के दो प्रमुख भेद हैं।
1. शब्दालंकार
2. अर्थालंकार
1. जहां चमत्कार कविता में प्रयुक्त शब्द पर आधारित होता है।वहां शब्द अलंकार होता है।यदि प्रयुक्त शब्दों को हटाकर उनका कोई पर्यायवाची रख दिया जाए तो चमत्कार समाप्त हो जाता है।इस प्रकार शब्द विशेष पर आधारित होने के कारण यह शब्दालंकार कहे जाते हैं।
जैसे-
"कनक -कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।"
या खा बौराए जग, वा पाए बौराए।"
इस पंक्ति में कनक शब्द का दो बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग करके चमत्कार उत्पन्न किया गया है।पहला कनक धतूरे के लिए तथा दूसरा स्वर्ण के लिए प्रयुक्त हुआ है।यदि यहां कनक-कनक की जगह धतूरा और स्वर्ण रख दिया जाए तो चमत्कार समाप्त हो जाएगा अतः चमत्कार शब्द कनक पर आधारित होने के कारण यह शब्दालंकार कहे जाते हैं।
2. अर्थालंकार अर्थालंकार
जहां कविता का चमत्कार या शोभा उसके अर्थ पर आधारित होता है वहां अर्थालंकार होता। वहां यदि प्रयुक्त शब्दों के स्थान पर उनके पर्यायवाची भी रख दिए जाए तो भी चमत्कार यथावत रहता है।
जैसे-
"झर रही मुख-चंद्र से, मुस्कान की है चांदनी।"इस पंक्ति को यदि इस प्रकार कहें-छिटक रही आनन मयंक से स्मिति की विधूलेखा।"तो भी चमत्कार या स्वभाव वैसे ही रहती है अतः यहां अर्थालंकार है।
1.अर्थालंकार
1.अनुप्रास अलंकार
अनुप्रास अलंकार की परिभाषा
जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है। किसी विशेष वर्ण की आवृति से वाक्य सुनने में सुंदर लगता है।
इस अलंकार में किसी वर्ण या व्यंजन की एक बार या अनेक वणों या व्यंजनों की अनेक धार आवृत्ति होती है।
जैसे: मुदित महापति मंदिर आये।
जैसा की आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं की ‘म’ वर्ण की आवृति हो रही है। यह आवृति वाक्य का सौंदर्य बढ़ा रही है।
"रघुपति राघव राजा राम।"
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा की आप देख सकते है हर शब्द में ‘र’ वर्ण की बार बार आवृति हुई है जिससे इस वाक्य की शोभा बढ़ती है।
2.यमक अलंकार
यमक अलंकार की परिभाषा
जिस प्रकार अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की आवृति होती है उसी प्रकार यमक अलंकार में किसी काव्य का सौन्दर्य बढ़ाने के लिए एक शब्द की बार-बार आवृति होती है।
प्रयोग किए गए शब्द का अर्थ हर बार अलग होता है। शब्द की दो बार आवृति होना वाक्य का यमक अलंकार के अंतर्गत आने के लिए आवश्यक है। जैसे :
यमक अलंकार के उदाहरण :
कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय। या खाए बौरात नर या पा बौराय।।
इस पद्य में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। प्रथम कनक का अर्थ ‘सोना’ और दुसरे कनक का अर्थ ‘धतूरा’ है। अतः ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है।
3.श्लेष अलंकार
श्लेष अलंकार की परिभाषा
श्लेष का अर्थ होता है चिपका हुआ या मिला हुआ। जब एक ही शब्द से हमें विभिन्न अर्थ मिलते हों तो उस समय श्लेष अलंकार होता है।
यानी जब किसी शब्द का प्रयोग एक बार ही किया जाता है लेकिन उससे अर्थ कई निकलते हैं तो वह श्लेष अलंकार कहलाता है। जैसे: श्लेष अलंकार के उदाहरण...
1.रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है :
पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए।
2.पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है. रहीम कहते हैं कि चमक के बिना मोती का कोई मूल्य नहीं ।
3.पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है। अतः यह उदाहरण श्लेष केअंतर्गत आएगा।
2.अर्थालंकार
1.उपमा अलंकार
उपमा अलंकार की परिभाषा
जब किन्ही दो वस्तुओं के गुण, आकृति, स्वभाव आदि में समानता दिखाई जाए या दो भिन्न वस्तुओं कि तुलना कि जाए, तब वहां उपमा अलंकर होता है।
उपमा अलंकार में एक वस्तु या प्राणी कि तुलना दूसरी प्रसिद्ध वस्तु के साथ कि जाती है। जैसे :
उपमा अलंकार के उदाहरण
हरि पद कोमल कमल।
ऊपर दिए गए उदाहरण में हरि के पैरों कि तुलना कमल के फूल से की गयी है। यहाँ पर हरि के चरणों को कमल के फूल के सामान कोमल बताया गया है। यहाँ उपमान एवं उपमेय में कोई साधारण धर्म होने की वजह से तुलना की जा रही है अतः यह उदाहरण उपमा अलंकार के अंतर्गत आएगा।
उपमा अलंकार के अंग
उपमा अलंकार के चार अंग होते हैं :
उपमेय
उपमान
साधारण धर्म, और
वाचक शब्द
उदाहरण : सागर-सा गंभीर हृदय हो, गिरी-सा ऊंचा हो जिसका मन
उपमेय : जिस वस्तु या व्यक्ति के बारे में बात की जा रही है या जो वर्णन का विषय है वो उपमेय कहलाता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में हृदय एवं मन उपमेय हैं।
उपमान : वाक्य या काव्य में उपमेय की जिस प्रसिद्ध वस्तु से तुलना कि जा रही हो वह उपमान कहलाता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में सागर एवं गिरी उपमान हैं।
साधारण धर्म : साधारण धर्म उपमान ओर उपमेय में समानता का धर्म होता है। अर्थात जो गुण उपमान ओर उपमेय दोनों में हो जिससे उन दोनों कि तुलना कि जा रही है वही साधारण धर्म कहलाता है। ऊपर दिए गए उदाहरण में गंभीर एवं ऊँचा साधारण धर्म है।
वाचक शब्द : वाचक शब्द वह शब्द होता है जिसके द्वारा उपमान और उपमेय में समानता दिखाई जाती है। जैसे : सा।ऊपर दिए गए उदाहरण में ‘सा'वाचक शब्द है।
2.रूपक अलंकार की परिभाषा
जब गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय को ही उपमान बता दिया जाए यानी उपमेय ओर उपमान में अभिन्नता दर्शायी जाए तब वह रूपक अलंकार कहलाता है।
रूपक अलंकार अर्थालंकारों में से एक है। रूपक अलंकार में उपमान और उपमेय में कोई अंतर नहीं दिखायी पड़ता है। जैसे: रूपक अलंकार के उदाहरण :
वन शारदी चन्द्रिका-चादर ओढ़े।
दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं चाँद की रोशनी को चादर के समान ना बताकर चादर ही बता दिया गया है। इस वाक्य में उपमेय – ‘चन्द्रिका’ है एवं उपमान – ‘चादर’ है। यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।
अतः यह उदाहरण रूपक अलंकार के अंतर्गत आएगा।
पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
ऊपर दिए गए उदाहरण में राम रतन को ही धन बता दिया गया है। ‘राम रतन’ – उपमेय पर ‘धन’ – उपमान का आरोप है एवं दोनों में अभिन्नता है।यहां आप देख सकते हैं की उपमान एवं उपमेय में अभिन्नता दर्शायी जा रही है। हम जानते हैं की जब अभिन्नता दर्शायी जाती ही तब वहां रूपक अलंकार होता है।
3.उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा :
जब समानता होने के कारण उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना की जाए या संभावना हो तब वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यदि पंक्ति में -मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों आदि आता है वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जैसे : उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण :
ले चला साथ मैं तुझे कनक। ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण।।
ऊपर दिए गए उदाहरण में जैसा कि आप देख सकते हैं कनक का अर्थ धतुरा है। कवि कहता है कि वह धतूरे को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षु सोना ले जा रहा हो।
काव्यांश में ‘ज्यों’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है एवं कनक – उपमेय में स्वर्ण – उपमान के होने कि कल्पना हो रही है। अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा।
सिर फट गया उसका वहीं। मानो अरुण रंग का घड़ा हो।
दिए गए उदाहरण में सिर कि लाल रंग का घड़ा होने कि कल्पना की जा रही है। यहाँ सिर – उपमेय है एवं लाल रंग का घड़ा – उपमान है। उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना कि जा रही है। अतएव यह उदाहरण उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा।
4.मानवीकरण अलंकार की परिभाषा
जब प्राकृतिक वस्तुओं कैसे पेड़,पौधे बादल आदि में मानवीय भावनाओं का वर्णन हो यानी निर्जीव चीज़ों में सजीव होना दर्शाया जाए तब वहां मानवीकरण अलंकार आता है। जैसे: मानवीकरण अलंकार के उदाहरण : फूल हँसे कलियाँ मुसकाई।
जैसा कि ऊपर दिए गए उदाहरण में दिया गया है की फूल हंस रहे हैं एवं कलियाँ मुस्कुरा रही हैं। जैसा की हम जानते हैं की हंसने एवं मुस्कुराने की क्रियाएं केवल मनुष्य ही कर सकते हैं प्राकृतिक चीज़ें नहीं। ये असलियत में संभव नहीं है एवं हम यह भी जानते हैं की जब सजीव भावनाओं का वर्णन चीज़ों में किया जाता है तब यह मानवीकरण अलंकार होता है।
अतः यह उदाहरण मानवीकरण अलंकार के अंतर्गत आएगा।
मेघ आये बड़े बन-ठन के संवर के।
ऊपर के उदाहरण में दिया गया है कि बादल बड़े सज कर आये लेकिन ये सब क्रियाएं तो मनुष्य कि होती हैं न कि बादलों की। अतएव यह उदाहरण मानवीकरण अलंकार के अंतर्गत आएगा।ये असलियत में संभव नहीं है एवं हम यह भी जानते हैं की जब सजीव भावनाओं का वर्णन चीज़ों में किया जाता है तब यह मानवीकरण अलंकार होता है।अतः यह उदाहरण मानवीकरण अलंकार के अंतर्गत आएगा।
5.अतिशयोक्ति अलंकार की परिभाषा
जब किसी वस्तु, व्यक्ति आदि का वर्णन बहुत बाधा चढ़ा कर किया जाए तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। इस अलंकार में नामुमकिन तथ्य बोले जाते हैं। जैसे :
अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण :
हनुमान की पूंछ में लगन न पाई आग, लंका सिगरी जल गई गए निशाचर भाग।
ऊपर दिए गए उदाहरण में कहा गया है कि अभी हनुमान की पूंछ में आग लगने से पहले ही पूरी लंका जलकर राख हो गयी और सारे राक्षस भाग खड़े हुए।
यह बात बिलकुल असंभव है एवं लोक सीमा से बढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।
आगे नदियां पड़ी अपार घोडा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार।।
ऊपर दी गयी पंक्तियों में बताया गया है कि महाराणा प्रताप के सोचने की क्रिया ख़त्म होने से पहले ही चेतक ने नदियाँ पार कर दी।
यह महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की अतिशयोक्ति है एवं इस तथ्य को लोक सीमा से बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है। अतः यह उदाहरण अतिशयोक्ति अलंकार के अंतर्गत आएगा।
धनुष उठाया ज्यों ही उसने, और चढ़ाया उस पर बाण |धरा–सिन्धु नभ काँपे सहसा, विकल हुए जीवों के प्राण।
ऊपर दिए गए वाक्यों में बताया गया है कि जैसे ही अर्जुन ने धनुष उठाया और उस पर बाण चढ़ाया तभी धरती, आसमान एवं नदियाँ कांपने लगी ओर सभी जीवों के प्राण निकलने को हो गए।