Tuesday

कबीरदास और उनके पद

 

कबीर का जीवन परिचय-
कबीरदास जी का जन्म 1398 ई. में काशी में हुआ। एक किंवदन्ती के अनुसार कबीर का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था। लोकलाज के भय से वह स्त्री इन्हें वाराणसी के लहरतारा नामक स्थान पर एक तालाब के पास छोड़ आयी। वहाँ से नीरू व नीमा नामक एक मुस्लिम जुलाहा दम्पत्ति ने इन्हें उठा लिया और इनका पालनपोषण किया। इनका बचपन मगहर में बीता। इन्हें शिक्षा प्राप्ति का अवसर नहीं मिला। यह सत्य है कि इन्होने अपनी रचनाओं को स्वयं लिपिबद्ध नहीं किया। बाद में ये काशी में जाकर बस गए। इनका विवाह लोई नामक स्त्री से हुआ। जिससे इनकी कमाल और कमाली नामक दो संतान उत्पन्न हुईं। जीवन के अंतिम दिनों ये बापस मगहर में आकर रहने लगे। इनकी मृत्यु के संदर्भ में विद्वानों में मतभेद है। अधिकांश विद्वानों के अनुसार कबीर दास की मृत्यु 1518 ई. में मगहर में हुई।
धार्मिक आडम्बरों के प्रबल विरोधी होने के बाद भी इनकी मृत्यु के बाद दोनों धर्मों के लोग इनके मृत शरीर का अपने धर्मानुसार संस्कार करना चाहते थे। हिन्दू इनका अंतिम संस्कार चिता पर दाह कर्म द्वारा करना चाहते थे। वहीं दूसरी ओर मुस्लिम लोग इन्हें इस्लामिक परम्परानुसार दफनाना चाहते थे।
इनके गुरु रामानन्द थे। इनकी काव्य प्रतिभा इनके गुरु रामदास जी की कृपा से ही जागृत हुई। कबीरदास मूल रूप से एक सन्त कवि थे। वस्तुतः कबीर सन्त कवियों में सर्वाधिक प्रतिभाशाली थे। परंतु धर्म के बाहरी आचार-व्यवहार और कर्मकाण्डों में इन्हें जरा भी रुचि व आस्था नहीं थी। उस वक्त के समाज में व्याप्त कर्मकाण्डों व संकीर्णताओं को देख उनका मन व्याकुल हो उठता। फलस्वरूप उनकी व्यंग्यात्मक वाणी से विद्रोहपूर्ण स्वर से भावनाएं जाहिर हो जातीं। कबीर दास जी ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने रुढ़िवादी मानसिकता और परम्परा की जर्जर दीवारों को धराशायी कर दिया।
अशिक्षित होते हुए भी इनका काव्य क्षेत्र में योगदान विस्मयकारी है। ये भावना की प्रबल अनुभूति से युक्त, उत्कृष्ट रहस्यवादी, समाज सुधारक, पाखण्ड के आलोचक तथा मानवता की भावना से ओत प्रोत कवि थे। ये पढ़े लिखे नहीं थे यह इन्होंने स्वयं व्यक्त किया ‘मसि कागज छूयौ नहीं, कलम गही नहिं हाथ’। इन्होंने अपना ज्ञान सन्तों की संगति और देशाटन के माध्यम से अर्जित किया। इसी ज्ञान को इन्होंने अपने अनुभवों की कसोटी पर कसकर साधारण जनता के समक्ष उपदेशात्मक रूप में व्यक्त किया।
कबीर और उनके काव्य के विषय में डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना ने कहा कि वे एक उच्च कोटि के साधक, सत्य के उपासक और ज्ञान के अन्वेषक थे। उनका समस्त साहित्य एक जीवनमुक्त सन्त के गूढ़ और गम्भीर अनुभवों का भंडार है।

                     हम तौ एक एक करि जाना।

          दोइ कहैं तिनहीं कौ दोजग जिन नाहिंन पहिचाना ।।

         एकै पवन एक ही पानीं एकै जोति समाना। 

        एकै खाक गढ़े सब भांडै़ एकै कोंहरा साना।।

        जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।

        सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई।।

        माया देखि के जगत लुभांनां काहे रे नर गरबाना।

        निरभै भया कछू नहिं ब्यापै कहै कबीर दिवाना।।

प्रसंग

प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित निर्गुण परंपरा के सर्वश्रेष्ठ कवि कबीर के पदों से उद्धृत है। इस पद में, कबीर ने एक ही परम तत्व की सत्ता को स्वीकार किया है, जिसकी पुष्टि वे कई उदाहरणों से करते हैं।

व्याख्या

कबीरदास कहते हैं कि हमने तो जान लिया है कि ईश्वर एक ही है। इस तरह से मैंने ईश्वर के अद्वैत रूप को पहचान लिया है। हालाँकि कुछ लोग ईश्वर को अलग-अलग बताते हैं; उनके लिए नरक की स्थिति है, क्योंकि वे वास्तविकता को नहीं पहचान पाते। वे आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग मानते हैं। कवि ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहता है कि संसार में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है तथा एक ही प्रकाश सबमें समाया हुआ है। कुम्हार भी एक ही तरह की मिट्टी से सब बर्तन बनाता है, भले ही बर्तनों का आकार-प्रकार अलग-अलग हो। बढ़ई लकड़ी को तो काट सकता है, परंतु आग को नहीं काट सकता। इसी प्रकार शरीर नष्ट हो जाता है, परंतु उसमें व्याप्त आत्मा सदैव रहती है। परमात्मा हरेक के हृदय में समाया हुआ है भले ही उसने कोई भी रूप धारण किया हो। यह संसार माया के जाल में फैसा हुआ है। और वही संसार को लुभाता है। इसलिए मनुष्य को किसी भी बात को लेकर घमंड नहीं करना चाहिए। प्रस्तुत पद के अंत में कबीर दास कहते हैं कि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो उसे कुछ नहीं सताता। कबीर भी अब निर्भय हो गया है तथा ईश्वर का दीवाना हो गया है।

विशेष

1. कबीर ने आत्मा और परमात्मा को एक बताया है।

2. उन्होंने माया-मोह व गर्व की व्यर्थता पर प्रकाश डाला है।

3. ‘एक-एक’ में यमक अलंकार है।

4. ‘खाक’ और ‘कोहरा’ में रूपकातिशयोक्ति अलंकार है।

5. अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।

6. सधुक्कड़ी भाषा है।

7. उदाहरण अलंकार है।

8. पद में गेयता व संगीतात्मकता है।


2.पद

संतो देखत जग बौराना।

साँच कहौं तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना।।

नेमी देखा धरमी देखा, प्रात करै असनाना।

आतम मारि पखानहि पूजै, उनमें कछु नहिं ज्ञाना।।

बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़ै कितेब कुराना।

कै मुरीद तदबीर बतावैं, उनमें उहै जो ज्ञाना।।

आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।

पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।।

टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।


साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।

हिन्दू कहै मोहि राम पियारा, तुर्क कहै रहिमाना।

आपस में दोउ लरि लरि मूए, मर्म न काहू जाना।।

घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।

गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अंत काल पछिताना।

कहै कबीर सुनो हो संतो, ई सब भर्म भुलाना।

केतिक कहौं कहा नहिं मानै, सहजै सहज समाना ।।


व्याख्या

जो सत्य आचरण करता है, सत्य में मार्ग पर चलता है, उसे लोग पागल समझते हैं और सत्य बोलने पर मारने के लिए दौड़ते हैं। जो मायाजिनित झूठ का आचरण करता है, उससे लोग बातें करके खुश होते हैं। नियमों पर चलने वाले लोग, नेमी धर्मी लोग बहुत हैं जो सभी नियमों का पालन करते हैं, सुबह उठ कर स्नानकरते हैं लेकिन वे अपनी आत्मा की नहीं सुनते हैं। ऐसे लोग अपनी आत्मा को मार चुके होते हैं, आत्मा की नहीं सुनते हैं, वे पत्थर में ईश्वर को ढूंढते हैं और प्रतीकात्मक पूजा करते हैं, जबकि मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं है, मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है, सत्य की राह पर चलना और इंसान को इंसान समझना ना की वह किस धर्म का है, किस जाती का है। 

वस्तुत यहाँ पर साहेब ने हिन्दू धर्म पर कटाक्ष किया है। हिन्दू धर्म को मानने वाले अपने नियमों का पालन करते हैं लेकिन उनके आचरण में मिथ्या और झूठा आचरण, दिखावे की भक्ति ही होती है। कण कण में ईश्वर का वास है उसे प्राप्त किया जा सकता है सत्य से। सत्य यही है की सभी लोगों को समान समझे, किसी पर धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक अत्याचार ना किया जाय, यही सच्ची भक्ति है।


वहीँ दूसरी तरफ मुसलमान भी आडम्बर और पाखंड से परे नहीं है। मुस्लिक धर्म के उपदेशक और ओलिया आदि बड़ी बड़ी किताबों को तो पढ़ लेते हैं लेकिन उन्हें अपने जीवन और आचरण में नहीं उतारते हैं। ईश्वर की प्राप्ति के वे बहुत से मार्ग और माध्यम बताते हैं लेकिन उन्हें स्वंय ही आत्म ज्ञान नहीं है तो वे लोगों को क्या बताएँगे ? भाव है की वे मात्र आडम्बर ही कर रहें हैं। वहीँ दूसरी और मानवता को भूल कर योग करने वालों पर भी साहेब व्यंग्य कसते हैं और कहते हैं की ऐसे लोग अहंकार करके एक स्थान पर बैठे रहते हैं लेकिन उन्होंने भी सच्चे रहस्य को प्राप्त नहीं किया है। मानवता को भूलकर हिन्दू धर्म के लोग पीपल को पूजते हैं, पत्थर को पूजते हैं लेकिन क्या इनसे ईश्वर की प्राप्ति संभव है ? नहीं, जब तक व्यक्ति छद्म आचरण का त्याग नहीं करता है तब तक ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। मुस्लिम लोग टोपी पहन लेते हैं, हिन्दू धर्म के अनुयायी माथे पर तिलक लगा लेते हैं, माला फेरते हैं जो साहेब के अनुसार और कुछ नहीं छद्म आचरण ही है और ऐसे लोग सखी (साक्षी) शब्द आदि को भूल गए हैं क्योंकि इन्होने आत्म ज्ञान की प्राप्ति नहीं की है।

हिन्दू धर्म के लोगों को राम प्यारा है और मुस्लिम धर्म के लोगों को रहमान प्यारा है। इसी बात को लेकर दोनों आपस में ही लड़ रहे हैं, लेकिन दोनों ने ही रहस्य को नहीं जाना है। रहस्य क्या है, रहस्य है की सभी का मालिक एक ही है उसे प्रथक प्रथक कर दिया है और उसके नाम भी कई रख दिए हैं, लेकिन है एक ही। पाखंडी लोग घर घर घूम कर लोगों को मन्त्र देते फिर रहे हैं लेकिन वे स्वंय भी अज्ञान में ही डूबे हुए हैं। अन्तकाल में ऐसे लोगों के हाथ सिर्फ पछतावे ही लगना है और कुछ भी नहीं। 

अंत में साहेब की वाणी है की ईश्वर की प्राप्ति के लिए कोई विशेष प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं है, वह तो सहज भाव से ही प्राप्त किया जा सकता है। सहज भाव क्या है ? सहज भाव है की मानवता के धर्म का पालन करें, जीव के प्रति दया भाव रखें, मानव को मानव समझे और सभी के प्रति सम भाव रखें। सभी के धर्मों का आदर करें, मोह और माया से दूर रहें, मिथ्या और आडम्बर से दूर रहें यही सहज भाव है।

कबीर साहेब ने जीवन पर्यंत धार्मिक और सामजिक आडम्बरों का ना केवल विरोध किया बल्कि लोगों का सत्य आचरण की और मार्ग भी प्रशस्त किया। अपने जीवन की परवाह ना करते हुए धार्मिक और सामंती ठेकेदारों के कारनामों से लोगों को बताकर उन्हें भी सत्य मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। साहेब की आवाज सदा ही समाज के दबे कुचले लोगों की आवाज बनी रही। धार्मिक पाखंड हो या सामाजिक सभी का खंडन कबीर साहेब ने किया है। साहेब का जो मूल सन्देश है वह यह है की आडम्बर और मिथ्या आचरण का त्याग करो और जो सत्य की राह है उस पर चलो, मानव जीवन तभी सार्थक होगा। मनुष्य को मनुष्य समझना ही सबसे बड़ा धर्म है और कल्याण का मार्ग है।


कबीरदास की भाषा, शैली 

कबीर की भाषा एक सन्त की भाषा थी। क्योंकि संतों की संगति से ही इन्हें सब कुछ सीखने का मौका मिला। ये फक्कड़ प्रकृति के सन्त थे। इन्होंने समाज में फैले आडम्बरों का खुलकर प्रबल विरोध किया और अज्ञान में डूबी मानवता को एक प्रकाश की ओर ले जाने का जीतोड़ प्रयोस किया। इसी कारण इनकी भाषा साहित्यिक न हो सकी। इनकी रचनाओं में खड़ीबोली, ब्रज, अरबी, फारसी, पंजाबी, भोजपुरी, बुन्देखण्डी आदि भाषाओं के शब्द देखने को मिलते हैं। इसी कारण इनकी भाषा को आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने सधुक्कड़ी भाषा कहा है। तो हजारीप्रसाद द्विवेदी हैं - “भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वे वाणी के डिक्टेटर थे। जिस बात को उन्होंने जिस रूप में प्रकट करना चाहा है, उसे उसी रूप में भाषा से कहलवा लिया - बन गया है तो सीधे-सीधे, नहीं तो दरेरा देकर।भाव प्रकट करने के लिए इनकी भाषा पूर्णतः सक्षम है।

इन्होंने सरल, सहज व सरल शैली में अपने उपदेश दिये। इसी कारण इनकी उपदेशात्मक शैली क्लिष्ट व बोझिल प्रतीत नहीं होती। इसमें स्पष्टता, स्वाभाविकता, सजीवता, एवं प्रवाहमयता के दर्शन होते हैं। इन्होंने चौपाई, दोहा व पदों की शैली अपनाई व उनका सफलतापूर्वक प्रयोग किया।

 






Monday

गुरु पूर्णिमा

 



               गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।

              गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥

अर्थात् गुरु ही ब्रह्मा हैं,जो अपने शिष्यों को नया जन्म देता है, गुरु ही विष्णु हैं जो अपने शिष्यों की रक्षा करता है, गुरु ही शंकर है; गुरु ही साक्षात परमब्रह्म हैं; क्योंकि वह अपने शिष्य के सभी बुराईयों और दोषों को दूर करता है।ऐसे गुरु को मैं बार-बार नमन करता हूँ।अपनी संस्कृति और विरासत के लिए पहचाने जाने वाले भारत देश में गुरु पूर्णिमा का पर्व बेहद महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व गुरुओं को समर्पित एक आदर्श पर्व है।

आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को कई पुराणों, शास्त्रों, चारों वेदों को विभाजित करने वाले एवं हिन्दू धर्म के महाग्रंथ श्री महा भगवतगीता की रचना करने वाले महर्षि वेदव्यास जी का भी जन्म हुआ था।उनकी जयंती के उपलक्ष्य में गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जाता है और इस पर्व को व्यास पूर्णिमा और व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है। महार्षि वेद व्यास जी को गुरु-शिष्य परंपरा का प्रथम गुरु माना गया है।

गुरु हर किसी के जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण है गुरु के महत्व और इसके मूल्यों को सिर्फ शब्दों में नहीं पिरोया जा सकता है। गुरु हमारे जीवन में सभी अंधकारों को मिटाकर हमें प्रकाश की तरफ आगे बढ़ाता है और सही मार्गदर्शन कर हमें सफलता के पथ पर आगे बढ़ाता है।इसलिए हिन्दू धर्म के शास्त्रों में गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है। गुरु के बिना कोई भी व्यक्ति ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता है और न ही अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकता है।

गुरु के बिना किसी भी व्यक्ति का जीवन बिना नाविक के नाव की तरह होता है। जिस तरह बिना नाविक के नाव दिशाहीन होकर चलती है या फिर बेसहारा भंवर में फंस जाती है,ठीक उसी तरह बिना गुरु के मनुष्य जीवन रूपी भंवर में फंसा रहता है और दिशाहीन हो जाता है, उसे यह कभी ज्ञात नहीं होता है कि उसे जाना किस तरफ है।गुरु अपनी पूरी जिंदगी अपने शिष्य को योग्य और सफल बनाने के लिए समर्पित कर देते हैं। इसलिए हमारे हिन्दू धर्म और शास्त्रों में गुरुओं को विशिष्ट स्थान दिया गया है और गुरु को भगवान का रुप मानकर गुरु पूर्णिमा के दिन उनका पूजन किया जाता है और उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है।

वहीं गुरु की अद्भुत महिमा का बखान तो हिन्दी साहित्य के कई महान कवियों ने भी अपने लेखों, दोहों आदि के माध्यम से भी किया है।महान कवि कबीर दास जी ने अपने इस दोहे के माध्यम से गुरु को भगवान से बढ़कर दर्जा देते हुए कहा है कि –

गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागूं पाँय।

बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥”

संत कबीर दास जी ने अपने इस दोहे में यह कहा है कि अगर गुरू और गोबिंद अर्थात भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो हमें किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? उन्होंने बताया कि ऐसी स्थिति में हमें अपने गुरू के चरणों में अपना शीश झुकाना चाहिए क्योंकि गुरु ने ही भगवान तक जाने का रास्ता बताया है, अर्थात मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाया है और गुरु की कृपा से ही भगवान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।गुरु, सभ्य समाज का निर्माण करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं एवं राष्ट्र के विकास में मद्द करते हैं। गुरु, परमात्मा और संसार के बीच एवं शिष्य और ईश्वर के बीच एक सेतु की तरह काम करते हैं।

गुरु के बिना किसी भी व्यक्ति को ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती है, और बिना ज्ञान का कोई भी व्यक्ति आत्मसात नहीं कर सकता है। गुरु ही मनुष्य को उसके कर्तव्यों का बोध करवाता है एवं हमारे अंदर धैर्य अथवा धीरज पैदा करता है,ज्ञान का बोध करवाता है,और मोक्ष का मार्ग बताता है। इसलिए किसी विद्धान ने कहा भी है कि –

गुरु बिना ज्ञान नहीं और ज्ञान बिना आत्मा नहीं,

कर्म, धैर्य, ज्ञान और ध्यान सब गुरु की ही देन है।।”

गुरु की महिमा का तो जितना भी बखान किया जाए उतना कम है। “गुरू बिन ज्ञान न उपजै, गुरू बिन मिलै न मोष।गु

रू बिन लखै न सत्य को गुरू बिन मिटै न दोष।। 

Saturday

चीफ की दावत समीक्षा


                          चीफ की दावत समीक्षा 

चीफ की दावत कला की दृष्टि से भीष्म साहनी की प्रसिद्ध कहानी है। ‘चीफ की दावत’ एक ऐसी ही कहानी है, जिसमें स्वार्थी बेटे शामनाथ को अपनी विधवा बूढ़ी माँ का बलिदान फर्ज ही नजर आता है। भीष्म साहनी ने शामनाथ के माध्यम से शिक्षित युवा पीढ़ी पर करारा व्यंग्य किया है। आज के शिक्षित युवा वर्ग अपने माता पिता को बोझ समझते हैं। व्यक्ति अपनी सुख सुविधा के लिए अपने माता पिता को छोड़ देते हैं।

वे यह तक भूल जाते हैं कि आज जिस समाज मे तुम रह रहे हो उनकी बदौलत है। अपने बच्चो को काबिल बनाने के लिए माता पिता अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं। उनका पूरा जीवन अपने बच्चों की खुशी के लिए बलिदान में व्यतीत हो जाता है।

चीफ की दावत समीक्षा – 

कथानक

कहानी के नायक सामनाथ अपने मध्यवर्गीय परिवार को आधुनिक बोध से जकड़े हुए है। नए पन का ढोंग उन्हें मां और पत्नी के मध्य चमकीले पर्दे की भांति लटकाए हुए हैं या आधुनिकता की गंध सामान्य माध्यम परिवारों में देखी जा सकती है। पुरानी मान्यताओं और परंपराओं के ढांचे से निकले माता-पिता जब अपनी संतानों को नए रंग में पाते हैं तो उन्हें आशय मिश्रित असंतोष के कारण भीतर ही भीतर गोटन का अनुभव होता है।

शामनाथ नौकरी पेशा व्यक्ति है- इनकी पदोन्नति की संभावनाएं संबंधित चीफ साहब पर निर्भर करती है चीफ साहब है कि बड़े ही फैशनेबल और संपन्न व्यक्ति व अमेरिकन है। सामनाथ अपनी हैसियत और परिस्थिति को ध्यान में रखकर जीना कबूल नहीं करते। वे चीफ साहब को दावत देते हैं की खुशामद करने से हमारी पदोन्नति मैं उनका सहयोग मिलेगा अपनी आय के हिसाब से ना रहकर दिखावे की जिंदगी जीना शामनाथ को बेहतर लगने लगा था। परिणामत: हर प्रकार की भौतिकसुख सुविधाएं जुटाने में आर्थिक टूटन आ जाती है। किंतु शामनाथ अपनी उन्नति के लिए सब कुछ करने को तैयार है।

शामनाथ ने घर को खूब सजाया-संवारा है कमरे की सफाई घर के सामान की यथा स्थान व्यवस्था, भोजन-सामग्री की समय से तैयारी आज सब कुछ कर ली है। अब समस्या यह है कि मकान में सब नया आधुनिकता से ओतप्रोत होते हुए भी मां पुरानी है। इस पुराने पन से छुटकारा पाने का सामना को कोई उपाय नहीं सुजाता कभी वह सोचते हैं। आप चीफ की दावत समीक्षा पढ़ रहे हैं।

कि पड़ोसी के घर भेज दिया जाए और कभी कमरे में बंद कर दिया जाए। वरना कहीं चीफ साहब के सामने ना पड़ जाए और उसकी शान में धब्बा लग जाए अथवा उनके व्यवहार से चीफ साहब पर्सन हो जाए। अंत में उन्होंने या निर्णय लिया कि मां को अच्छे ढंग से पहना उड़ा कर रखा जाए कि संयोगवश चीफ साहब की नजर पड़ ही जाए तो उनकी स्थिति बिगड़ने ना पावे मां को बताया गया। कि उनके आने पर वह कैसी रहेंगी और कैसे बोलेंगे मां असमंजस में एक नई दुनिया के घेरे में स्वयं को बंधा अनुभव करने लगी है।

किंतु इस स्थिति में भी वह अपने पुत्र को पदोन्नति के लिए सब कुछ करने को तैयार हैं। साहब के आने पर मां को अंधेरे में बैठाया गया है किंतु पार्टी का पहला दौर समाप्त होता है और लोग भोजन पर जाने लगते हैं। तो चीफ साहब के दस्त सामनाथ की मां पर जाती है। कि बड़े प्रेम से मिलकर मां का आदर करते हैं और उन्हें भारतीय संस्कृति की प्रतीक रूप मानते हैं।

उन्होंने मां से लोक कला के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की और फिर एक गीत सुनाने का प्रस्ताव रखा वह मासी लोक कला का प्रतीक फुलकारी मांगते थे। और उससे लोकगीत सुनकरबहुत प्रसन्न होते हैं। जबकि पुत्र के संतुष्ट होने पर मां हरिद्वार जाने की इच्छा प्रकट करती है। पुत्र का पूजा व्यवहार होने पर भी आजमा उनके लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं। नई पीढ़ी की व अनैतिक और अब व्यावहारिक मान्यताएं व महत्वकांक्षी आएं हमारे पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन के लिए घातक दिखाई देती है।प्रेम के मूल्य को ही नैतिक आधार मिलना चाहिए। आप चीफ की दावत समीक्षा पढ़ रहे हैं।

चीफ की दावत समीक्षा – कथोपकथन

कहानी के संवाद छुट्टी ले और व्यंग्यात्मक है। कहानीकार के नई कहानी के संवाद शैली को मानव मनोविश्लेषण के समायोजन में प्रयुक्त किया है।मन की गहरी चाल मनुष्य की छवि को धूमिल भी कर लेती है।पात्रों की संभावित विकास व मुख भावना आधुनिकता की चौखट से टकराकर चोट खा जाती है।संवादों के द्वारा कथानक को खींचने का प्रयास नहीं तो सार्थक है और कहीं महंगा साबित होने लगता है। छोटे-छोटे वाक्यों द्वारा कथन तो पैन आपन सिद्ध होता है।शब्दों और वाक्यों विन्यास की ध्वनियों में अर्थ की व्यंजना होती है।

मुहावरे आदि के प्रयोगों में कहानीकार की कोई विशेष रूचि नहीं है।तथ्य के विकास और चरित्रों के उद्देश्य पर निर्माण में संवाद योजना उपयुक्त है तथा तो इन्हें कह देंगे कि अंदर से दरवाजा बंद कर ले मैं बाहर से ताला लगा दूंगा और जो सो गई। तो डिनर का क्या मालूम कब तक चले 11:11 बजे तक तो तुम लोग ड्रिंक ही करते रहते हो। अच्छी वाली या भाई के पास जा रही थी। तुमने यूं ही कुछ अच्छा बनने के लिए बीच में टांग अड़ा दी। आप चीफ की दावत समीक्षा पढ़ रहे हैं।

चीफ की दावत कहानी का चरित्र चित्रण

कहानी के पात्र वर्तमान परिस्थितियों के है। आज का परिवारिक जीवन इन्हीं यथा स्थितियों में स्थित है या विसंगति अतिशय स्वार्थपरता और स्थिर बुद्धि का परिणाम है सामना इस कहानी का केंद्र बिंदु है। जो अपनी पदोन्नति और भौतिक जीवन के सुख क्षेत्रों की प्राप्ति से 100 पदों हेतु आर्थिक लाभ देखता है। उसके या नहीं जाना कि मां के निस्वार्थ प्रेम और भारतीय आदर्श को खोदकर हम पश्चिमी सभ्यता की होल फ्रांस में फसने जा रहे हैं। आप चीफ की दावत समीक्षा पढ़ रहे हैं।

शाम नाथ के प्रतिनिधि आज के भारतीय परिवारों में बहुसंख्यक है या दो एकात्मक स्थिति मनुष्य के चरित्र का खंडन करती जा रही है।शामनाथ की पत्नी पति के शौक से गांठ बांधे हुए हैं। उनकी मान्यता भी ऐसी है कि शामनाथ की मां है कि बुढ़ापे में एक युग बिताकर नए युग की धरती को मां जालपा ले बैठी हैं। पुत्र का विवाह मूवी उन्हें यहां तक खींच लाया की घुंघट में जीने वाली भारतीय महिला अमेरिकन जीत के समक्ष लोकप्रिय सुनने को बाध्य हो जाती है। चीफ है कि भारतीय जीवन दर्शन की पहचान करने में तत्पर है।

चीफ की दावत समीक्षा – कहानी का उद्देश्य

मध्यवर्ती आर्थिक टूटन कुंडा ग्रस्त जीवन शैली भोग विलास कि कृष्णा और अंतर्विरोध से उत्पन्न चुनावी कहानी में सामाजिक विषमताओं के परिणाम है।भारतीय संस्कृति और आदर्शों को तोड़कर पाश्चात्य मान्यताओं की ललक व्यक्ति की मानसिक पीड़ा को बढ़ावा ही देगी।मां के अस्तित्व पर खतरे की घंटी बजने ही लगी है और पुत्र के प्रति समर्पण का भाव भी नित्या होने की आशंका है।इन तथ्यों की खोज और समाधान के लिए इस कहानी को हम सफलतम कर सकते हैं।

Sunday

गणतन्त्र दिवस


                सब के अधिकारों का रक्षक 

                अपना यह यह गणतंत्र पर्व है

                लोकतंत्र ही मंत्र हमारा

                हम सबको इस पर गर्व है!"

जैसा कि हम सभी जानते हैं काल तो प्रवाहमय होता है! इसमें कुछ भी स्थिर नहीं होता! यहां पर हमेशा बदलाव तो होता रहता है! परंतु पुरानी यादों को भुलाया नहीं जा सकता! मुझे इतिहास कि वह स्वर्णिम घटनाएं याद आ रही हैं! जब हर भारतीय अपने हाथों में आजादी की मशाल लिए हुए और सब की जबान पर बस एक ही नारा गूंज रहा था कि भारत माता की जय महात्मा गांधी की जय इंकलाब जिंदाबाद तभी गोलियों की आवाज गूंजते हुए आती हैं और सीने पर गोलियां खाते हुए लहूलुहान देशभक्त जमीन पर गिर पड़ते हैं! परंतु कोई आह नहीं कोई पश्चाताप नहीं दिख रहा, दिख रहा है तॊ बस एक अलौकिक देश और उस देश में एक अटल विश्वास कि हमारा भारत अवश्य स्वतंत्र होगा!15 अगस्त 1947 को यह विश्वास प्रतिफलित भी हुआ क्योंकि-

                     "यह देश महापुरुषों का है!

                      यह देश वीर बलवा बलवानो का

                      यह देश साधको संतों का 

                      यह देश गुड़ी विद्वानों का

                      यह देश गुड़ी विद्वानों का"

महापुरुषों की उपस्थिति में हमारे देश की स्वतंत्रता तब तक अधूरी रहती जब तक यहां का संविधान ना रचा जाए!अतः राष्ट्र निर्माताओं की अधीनता में इस देश का संविधान 20 जनवरी 1950 को लागू किया गया! संविधान तो लागू हो गया पर यह बात अब भी जहन में रखनी शेष थी कि-

              "गौरव गाथा बार-बार दोहरानी है

       प्यारा भारत देश हमारा हम सब हिंदुस्तानी हैं!"

परंतु अभी भी भारत के सामने ऐसी विषम परिस्थितियां थी! जो मनुष्य के सपनों को खंडित कर देती है, तब मन में बस यही भाव जगने लगता है कि-

          "सोचा था अपने देश को खुशियों से सजाएंगे

          क्षमता और सद्गुणों से भारत में बहारें लाएंगे!"

 गणतंत्र की स्वतंत्रता के लिए यह अति आवश्यक है कि हम अपनी सभ्यता संस्कृति मौलिक चिंतन और वैचारिक स्वतंत्रता को बनाए रखें! लेकिन आज ऐसा लगता है,कि मिली राजनैतिक स्वतंत्रता पर विचार परतंत्र है-

           "पाश्चात्य चिंतन चरित्र से कहां हुए स्वतंत्र हैं,

           अभी स्वदेशी तंत्र अपेक्षित मिला कहां सम्मान है,

            और किसी कोने में बैठा रो रहा संविधान है,

           और किसी कोने में बैठा रो रहा संविधान है!"

इस रोते हुए संविधान को प्रबल, सशक्त, सफल और प्रभावशाली बनाने का अधिकार अगर किसी को है तो वह सिर्फ हम देशवासियों को है,क्योंकि चुनाव के माध्यम से एक मजबूत नेतृत्व का चयन करके अपने संविधान को और परी परिपुष्ट बनाते हैं!74 वें गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत बधाई देते अंत में बस इतना कहना है कि-

           "इस देश की कीमत जब जब हमने पहचानी है

            हमारे देश का बच्चा-बच्ची बना देश सेनानी है

            जाति-पाती और भाषा का द्वेष पनपने ना देंगे

           अब इन आधारों पर हिंदुस्तान को बटने ना देंगे

            एकता के सतरंगों से सजाएंगे संसार को

            गणतंत्र उपासक बनकर सच्चे 

            उपहार देंगे राष्ट्र को

             उपहार देंगे राष्ट्र को"







आधुनिकता की अवधारणा


 आधुनिकता एक सापेक्षिक अवधारणा है !प्राचीन मूल्यों के सापेक्षता में वर्तमान नवीन मूल्यों का निर्धारण ही आधुनिकता है!

समीक्षक डॉ जगदीश गुप्त के अनुसार आधुनिकता का मूल आधार मानवतावादी दृष्टि है!यह दृष्टि ही आधुनिक दृष्टिकोण है!

आधुनिकता के लक्षण 

1. आधुनिकता एक सापेक्षिक अवधारणा है!

2. आधुनिकता की व्याख्या अतीत की समकक्षता एवं सापेक्षता में ही संभव है!

3. जो भी आज आधुनिक है वह भविष्य में पुरातन है!

4. अनुभूति और संवेदना का नयापन ही आधुनिकता कहलाता है!

5. आधुनिकता अतीत से जुड़कर सुरक्षित रह सकती है! 6.आधुनिकता का मूल आधार मानवतावादी दृष्टि है!

7. साहित्य, धर्म व दर्शन सभी के प्रति दृष्टिकोण का आविर्भाव ही आधुनिकता है!

8. साहित्य की सभी विधाओं में आधुनिकता स्पष्ट दिखाई देती है!

9. आधुनिकता ज्ञान विज्ञान और टेक्नोलॉजी के कारण संभव है!

10. आधुनिक ज्ञान विज्ञान ने मनुष्य को बहुत कुछ बुद्धि सम्मत बना दिया था नीत्शे की इस घोषणा से कि ईश्वर मर गया है भौतिक जगत में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया

Saturday

कम समय में परीक्षा के लिए कैसे पढ़े

 


आने वाले है एक्जाम और आप सभी हो रहे है परेशान तो बिल्कुल भी परेशान होने की जरूरत नहीं हैं, बस पढिए इस ब्लॉग से जानिए कैसे करनी हैं तैयारी । 

दोस्तों एग्जाम पास आते ही हम सभी परेशान होने लगते हैं और परीक्षा का डर मन पर हावी होने लगता हैं, लेकिन मैं आपको बताऊंगा कि आपको कैसे पढ़ना हैं, कैसे तैयारी शुरू करनी हैं. 

1. सोचो कम, करो ज्यादा 

हम सभी जिस उम्र में है उस उम्र में करने से पहले सोचते हद से ज्यादा है जो की सही नहीं हैं। सिर्फ उतना ही सोचे जितने की जरूरत हैं। सोच आते ही उस पर वर्क करना शुरू कर देना चाहिए। ये ट्रिक सिर्फ परीक्षा के समय ही नहीं जिंदगी में भी काम आएगा। इसलिए सोचो कम और पढ़िए ज्यादा। मान लीजिए कि आपने सोचा की मुझे पढ़ना है न तो उसके बाद ज्यादा सोचिए मत बस पढ़ना शुरू कर दीजिए । 

2. पढ़ना कैसे शुरू करें 

सबसे पहले अपने पाठ्यक्रम को देखे और फिर उसके हिसाब से पढ़ना शुरू कर दें ।आप सभी कॉलेज में हैं तो टीचर पढ़ाएगा या नहीं, कैसे पढ़े सब छोड़ कर पाठ्यक्रम देखे और पाठ्यक्रम यूनिट के हिसाब से जहां से वो यूनिट मिलती है वहाँ से उसको पढ़ना शुरू कर दें, सिर्फ पढ़े, रट्टा न मारे। पढ़ने के समय हाथ में एक पेन , एक नोटबुक जरूर रखे और जो जरूरी लगे उसको साथ साथ नोट करते जाएं। आमतौर पर ऐसा होता है कि पढ़ाई के दौरान अपना मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट होता हैं जिससे लगातार ध्यान बंटता है! पढ़ाई के दौरान कभी भी ऐसे उपकरण नहीं रखने चाहिए, इससे आपकी एकाग्रता प्रभावित होती है और आप अपना समय बर्बाद करते हैं। आपको केवल वही चीजें लेनी चाहिए जो आपको वास्तव में पढ़ने के लिए चाहिए जैसे नोटबुक, सिलेबस, प्रश्न पत्र और स्टेशनरी आदि। साथ ही, अपनी जरूरत की चीजें एक जगह पर रखें ताकि आपको उठने या अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ने की जरूरत न पड़े। अगर ऑनलाइन पढ़ रहे हैं तो सोशल मीडिया एप्प की सूचना बंद कर दें या अगर ऑफलाइन पढ़ रहे है तो फोन को उल्टा करके रख दें । 

3. पढ़ाई के दौरान लंबे ब्रेक न लें 

पढ़ने के समय ज्यादा देर का ब्रेक न लें और 45 मिनट से ज्यादा देर न बैठे एक बार में। अगर 45 मिनट लगातार पढ़ रहे हैं तो 15 मिनट का ब्रेक लें और उसके बाद फिर से पढाई शुरू करें। अच्छी नींद लें और अच्छा खाएं ...

4. याद रखने वाली सबसे महत्वपूर्ण बात 

यह है कि पढ़ाई के दौरान खुद को चौकस रखने के लिए आपको स्वस्थ खाना चाहिए और आराम करना चाहिए। इसके लिए, आपको 6-7 घंटे सोना चाहिए। फल, सब्जी, फलों का रस जैसे स्वस्थ खाएं। कुछ शारीरिक व्यायाम और ध्यान करने के लिए समय निकालें, इससे आपको शारीरिक और मानसिक फिटनेस में सुधार करने में मदद मिलती है। इसके अलावा, कृपया जंक फूड, चीनी लेपित उत्पादों और कैफीन से बचें क्योंकि ये चीजें आपके शरीर को अधिक थका देती हैं और आप पढ़ाई के दौरान ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते।

5 . पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों का विश्लेषण करें 

आपके पास प्रत्येक चीज़ का अध्ययन करने के लिए पहले से ही कम समय बचा है, इसलिए परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए, आपको अपने समय का कुशलतापूर्वक उपयोग करने की आवश्यकता है। आपको अपनी आगामी परीक्षाओं के पाठ्यक्रम के अनुसार पिछले वर्षों के प्रश्न पत्र के विश्लेषण के साथ शुरुआत करनी होगी। पिछले वर्षों के 'कम से कम 5-10 वर्षों के प्रश्न पत्र' एकत्र करें। विभिन्न अध्यायों के प्रश्नों के वेटेज को क्रॉस-चेक करें, ताकि अधिक वेटेज और कम महत्वपूर्ण अध्यायों वाले अध्यायों की पहचान की जा सके। आपको कठिन, औसत और आसान स्तर के प्रश्नों और अध्यायों के बारे में पता चल जाएगा। इससे आपको हर अध्याय से महत्वपूर्ण विषयों को समझने में मदद मिलेगी, जिनका आपको परीक्षा के लिए अध्ययन करना चाहिए..

6 . प्राथमिकता के अनुसार अध्ययन करें 

अब आपको प्रश्नों की संख्या, अंक भार और कठिनाई स्तर के अनुसार महत्वपूर्ण अध्यायों के लिए प्राथमिकता निर्धारित करने की आवश्यकता है। प्राथमिकता सूची के अनुसार प्रत्येक अध्याय के लिए समय निर्धारित करें और अधिक वेटेज या आसान अध्यायों वाले अध्यायों से शुरू करें, ताकि आप कठिन अध्यायों की तैयारी के लिए अपना समय और प्रयास बचा सकें। सबसे महत्वपूर्ण बात, अपने टाइम टेबल स्टडी प्लान में बार-बार बदलाव न करें। बस प्राथमिकता सूची के अनुसार एक अध्ययन कार्यक्रम निर्धारित करें और बेहतर परिणामों के लिए उसका पालन करें।।

7. यात्रा के समय का उपयोग करे 

आज कल हम सोशल मीडिया यानि इंस्टाग्राम, स्नैपचैट,फेसबुक के बिना नहीं रह सकते। कई बार हमारे दोस्तों को शिकायत रहती हैं कि आप उनसे आप बात नहीं करते तो अपने यात्रा के समय का उपयोग दोस्तों से बात करने में लगाए या सोशल मीडिया का उपयोग करें। इससे आपका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि आपको अलग से इसके लिए समय नहीं निकालना पड़ेगा।  

सुभाष चन्द्र बोस....


आओ मिलकर याद करें जन-जन ह्रदय विजेता को 


उस सुभाष बलिदानी को नेताओं के नेता को


 था अलग ही बॉस का ओरा, 


माने लोहा दुश्मन भी गोरा


घूमा रूस जर्मनी जापान 


स्वतंत्र हो भारत यही ध्येय प्रधान


 फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया


हिंद फौज का संचालन किया


कहा खून के बदले आजादी दूंगा 


कीमत लेस ना मैं कम लूंगा,


है रोष लहू में तो आ जाओ


 खाकर कसम यह दिखलाओ 


अब सिंहासन दूर नहीं


सुनते ही लहू की नदी वही 


तन-मन-धन समर्पण भारत को किया 


जब तक जिया देशहित जिया


 है अमर सुभाष सदा क्रांतिकारी विचारों में


समय-समय पर आती है 


विभूतियां अलग-अलग किरदारों में 


आओ मिलकर याद करें


करें जन-जन ह्रदय विजेता


उस सुभाष बलिदानी को नेताओं के नेता को.......




परीक्षा के एक दिन पूर्व दो मित्रों की बातचीत का संवाद लेखन कीजिए-

संवाद लेखन किसे कहते हैं  संवाद लेखन -  वह लेखनी है जिसमें दो या अधिक व्यक्तियों के बीच होने वाली बातचीत को लिखित रूप में व्यक्त किया जाता ह...