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राष्ट्रभाषा के रुप में हिन्दी की दशा और दिशा

 राष्ट्रभाषा के रुप में हिन्दी की दशा और दिशा:-



भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। आज के समय भारत में यह लगभग करोड़ों लोगों की मातृभाषा है। इसके बावजूद इसे आज तक राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त नहीं हो सका है। इसे भारत ही नहीं विदेशों में भी अब अपनाया जा रहा है। भारत से बाहर जाकर बसने वाले लोग अपनी मातृभाषा हिंदी में ही बातचीत करना पसंद करते है। आज हिंदी को भारत से बाहर लगभग 12 अन्य देशों के महाविद्यालयों में पढ़ाया जा रहा है।



भारत के अधिकांश लोग तथा भारत के बाहर भारतवंशी लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि बहुत से विदेशियों ने भी हिंदी सीखी और उसका उपयोग किया। इसका मुख्य कारण हम इसके अनोखेपन को कह सकते हैं। अपने अनोखेपन के कारण भारत दुनिया के लोगो के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। इसका ऐतिहासिक महत्त्व और व्यापारिक प्रसार ने विश्व को आकर्षित किया है।
हिंदी को आज हम वैश्विक भाषा का दर्जा देते हैं, यह अंग्रेजी, मंदारिन के बाद विश्व में बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। आज भारत के प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में अपना भाषण जब देते हैं तो वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो जाती है,और हिंदी को विश्व भाषा बनाने की वकालत शुरू हो जाती है। पर वहीं हम इसका दूसरा पहलू भी हम देखते हैं। अपने ही देश में जब बात उच्च शिक्षा की आती है तो लोग हिंदी भाषा से दूरी बनाना शुरू कर देते है। खासकर उत्तर भारत के राज्यों में नव जवानों के अंदर यह धारणा उजागर होती है कि हिंदी ही तो है।
वहीं जब हम हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की करते है, तो अपने ही देश में हमें इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ता है।कुछ राज्यों का मानना है कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाकर हम पर जबरदस्ती थोपा जा रहा है। ऐसे लोग कभी हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते ।



हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए एक अच्छा व उत्तम तरीका यह हो सकता है की अपने ही देश के अंदर हिंदी को लेकर जो विरोध है । पहले उसे खत्म किया जाए। इसके लिए इसका एक उत्तम तरीका यह हो सकता है कि हम सभी भारतीय अपने बच्चो से हिंदी में बात करें और उन्हें हिन्दी बोलने व पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। 

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