Monday

Morning school assembly speech ( script), स्कूल प्रार्थना भाषण

 सुप्रभात,

आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, शिक्षकगण एवम् मेरे प्यारे सहपाठियों,आज की इस सुहानी सुबह में मैं...........आपका स्वागत करता/करती हूं। हम सब जानते हैं कि स्कूल असेंबली हमारे दिन की शुरुआत को सकारात्मक और ऊर्जावान बनाती है। तो चलिए ,आज कि इस विशेष असेंबली की शुरुआत करते है।




प्रार्थना

सबसे पहले, हम भगवान से आशीर्वाद लेने के लिए प्रार्थना करेंगे,प्रार्थना हमारे मन और आत्मा को शांति प्रदान करती है,तो सभी हाथ जोड़कर, आंखे बंद करके प्रार्थना में शामिल हो।




प्रार्थना के बाद भाषण 

धन्यवाद, प्रार्थना हम हमेशा सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।अब हम अपने दिन के  अगले कार्यक्रम की ओर बढ़ते हैं।




राष्ट्रीय गीत

अब समय आ गया है कि हम राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' गाकर अपनी मातृभूमि को गौरवान्वित करें।




प्रतिज्ञा

संकल्प का अर्थ है- अटल रहना अपने कथन पर, अपने सिद्धांतों पर, न्याय पर, और अच्छाइयों के साथ दृढ़तापूर्वक खड़े रहना और अपने जीवन में अटल और दृढ़ निश्चय बने रहने के लिए हम प्रतिज्ञा करते है ओर इसी के साथ मैं प्रतिज्ञा के लिए ................., को आमंत्रित करता/करती हूं ।



सुविचार

हमारे जीवन में अच्छे विचारों का बहुत महत्त्व है। ये हमारे दिन की शुरुआत को सार्थक बनाते है।अब मैं आज के सुविचार के लिए.............. को आमंत्रित करता/करती हूँ।


हिंदी शब्दावली 

आइए अब हम आज की हिंदी शब्दावली की ओर बढ़ते हैं।आज की हिंदी शब्दावली के लिए मैं मंच पर..................को आमंत्रित करता/करती हूं।


समान्य ज्ञान का प्रश्न

सामान्य ज्ञान के प्रश्न के लिए मैं..............को आमंत्रित करता/करती हूं।


हिंदी मुहावरा 

हिंदी मुहावरे के लिए मैं ..................को आमंत्रित करता/करती हूं।


कविता 

कविता हमारे विचारों और भावों को व्यक्त करने का एक सुंदर तरीका है । अब मैं .......................................को आमंत्रित करता /करती हूँ ,जो हमें एक सुंदर कविता सुनाएंगे । 


कहानी 

कहानी हमेशा मजेदार होती है और हमें एक महत्वपूर्ण संदेश भी देती है । तो अब मैं  .................................................   को आमंत्रित करता /करती हूँ ,जो हमे एक रोचक कहानी सुनाएंगे । 


समाचार 

समाचार--समाचार हमे देश विदेश की घटनाओं से रूबरू करवाते है और हमारे ज्ञान का सतत और निरंतर विकास कराते है अतः आज के समाचार के लिए मैं………… आमंत्रित करता हूँ।


मुख्य अतिथि का भाषण 

अब मैं इस मंच पर हमारे आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, को आमंत्रित करना चाहूंगा/ चाहूँगी जो हमें अपने अमूल्य शब्दों से प्रेरणा देंगे। 


Friday

हिंदी मुहावरे (मुहावरा)

मुहावरे किसे कहते हैं?
हिंदी मुहावरे, हिंदी भाषा में प्रयोग होने वाले एक वाक्यांश को कहते हैं जिसका अर्थ उसके शाब्दिक अर्थ से भिन्न होता है। ये अर्थ सहित हिंदी मुहावरे (Muhavare in hindi) वाक्यांशों के माध्यम से दिए गए विशेषता या भाव को अधिक स्पष्ट करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। 
मुहावरे भाषा को रंगीन बनाने में मदद करते हैं और वाक्यों को दिलचस्प बनाते हैं। इन्हें कहावतें भी कहते हैं।



कुछ प्रसिद्ध मुहावरे और उनके अर्थ वाक्य में प्रयोग सहित दिए जा रहे है ।
1.अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना - (स्वयं अपनी प्रशंसा करना ) - अच्छे आदमियों को अपने मुहँ मियाँ मिट्ठू बनना शोभा नहीं देता।
2.अक्ल का चरने जाना - (समझ का अभाव होना) - इतना भी समझ नहीं सके , क्या अक्ल चरने गई है?
3.अपने पैरों पर खड़ा होना - (स्वालंबी होना) - युवकों को अपने पैरों पर खड़े होने पर ही विवाह करना चाहिए।
4.अक्ल का दुश्मन - (मूर्ख) - आजकल तुम अक्ल के दुश्मन हो गए हो।
5.अपना उल्लू सीधा करना -(मतलब निकालना) -आजकल के नेता अपना अपना उल्लू सीधा करने के लिए ही लोगों को भड़काते हैं।
6.आँखे खुलना - (सचेत होना) - ठोकर खाने के बाद ही बहुत से लोगों की आँखें खुलती हैं।
7.आँख का तारा - (बहुत प्यारा) - आज्ञाकारी बच्चा माँ-बाप की आँखों का तारा होता है।
8.आँखे दिखाना - (बहुत क्रोध करना) - राम से मैंने सच बातें कह दी , तो वह मुझे आँख दिखाने लगा।
9.आसमान से बातें करना - (बहुत ऊँचा होना) - आजकल ऐसी ऐसी इमारते बनने लगी है ,जो आसमान से बातें करती है।
10 .ईंट से ईंट बजाना - (पूरी तरह से नष्ट करना) - राम चाहता था कि वह अपने शत्रु के घर की ईंट से ईंट बजा दे।
ईंट का जबाब पत्थर से देना - (जबरदस्त बदला लेना) - भारत अपने दुश्मनों को ईंट का जबाब पत्थर से देगा ।
11.ईद का चाँद होना - (बहुत दिनों बाद दिखाई देना) - तुम तो दिखाई ही नहीं देते, लगता है कि ईद के चाँद हो गए हो।



12.उड़ती चिड़िया पहचानना - (रहस्य की बात दूर से जान लेना) - वह इतना अनुभवी है कि उसे उड़ती चिड़िया पहचानने में देर नहीं लगती।
13.उन्नीस बीस का अंतर होना - (बहुत कम अंतर होना) - राम और श्याम की पहचान कर पाना बहुत कठिन है ,क्योंकि दोनों में उन्नीस- बीस का ही अंतर है।
14.उलटी गंगा बहाना - (अनहोनी हो जाना) - राम इतना गुस्सैल है कि किसी से प्रेम से बात कर ले, तो समझो उलटी गंगा बह जाए।
15. अंगारे उगलना–(क्रोध में लाल–पीला होना)
अभिमन्यु की मृत्यु से आहत अर्जुन कौरवों पर अंगारे उगलने लगा।
16. अंगारों पर पैर रखना–(स्वयं को खतरे में डालना)
व्यवस्था के खिलाफ लड़ना अंगारों पर पैर रखना है।
17. अन्धे के आगे रोना–(व्यर्थ प्रयत्न करना)
अन्धविश्वासी अज्ञानी जनता के मध्य मार्क्सवाद की बात करना अन्धे के आगे रोना है।
18. अंगूर खट्टे होना–(अप्राप्त वस्तु की उपेक्षा करना)
अजय, “सिविल सेवकों को नेताओं की चापलूसी करनी पड़ती है” कहकर, अंगूर खट्टे वाली बात कर रहा है, क्योंकि वह परिश्रम के बावजूद नहीं चुना गया।
19. अंगूठी का नगीना–(सजीला और सुन्दर)
विनय कम्पनी की अंगूठी का नगीना है।
20अल्लाह मियाँ की गाय–(सरल प्रकृति वाला)
रामकुमार तो अल्लाह मियाँ की गाय है।
21. अंतड़ियों में बल पड़ना–(संकट में पड़ना)
अपने दोस्त को चोरों से बचाने के चक्कर में, मैं ही पकड़ा गया और मेरी ही अंतड़ियों में बल पड़ गए।
22. अन्धा बनाना–(मूर्ख बनाकर धोखा देना)
अपने गुरु को अन्धा बनाना सरल कार्य नहीं है, इसलिए मुझसे ऐसी बात मत करो।
23. अंग लगाना–(आलिंगन करना)
प्रेमिका को बहुत समय पश्चात् देखकर रवि ने उसे अंग लगा लिया।
24. अंगारे बरसना–(कड़ी धूप होना)
जून के महीने में अंगारे बरस रहे थे और रिक्शा वाला पसीने से लथपथ था।
25. अक्ल खर्च करना–(समझ को काम में लाना)
इस समस्या को हल करने में थोड़ी अक्ल खर्च करनी पड़ेगी।
26.अड्डे पर चहकना–(अपने घर पर रौब दिखाना)
अड्डे पर चहकते फिरते हो, बाहर निकलो तो तुम्हें देखा जाए।
27.अन्धाधुन्ध लुटाना–(बहुत अपव्यय करना)
उद्योगपतियों और बड़े व्यापारियों की बीवियाँ अन्धाधुन्ध पैसा लुटाती हैं।
28. अपनी खाल में मस्त रहना–(अपनी दशा से सन्तुष्ट रहना)
संजय 4000 रुपए कमाकर अपनी खाल में मस्त रहता है।
29. अन्न न लगना–(खाकर–पीकर भी मोटा न होना)
अभय अच्छे से अच्छा खाता है, लेकिन उसे अन्न नहीं लगता।
30. अधर में लटकना या झूलना–(दुविधा में पड़ा रह जाना)
कल्याण सिंह भाजपा में पुन: शामिल होंगे यह फैसला बहुत दिन तक अधर में लटका रहा।
31.. अठखेलियाँ सूझना–(हँसी दिल्लगी करना)
मेरे चोट लगी हुई है, उसमें दर्द हो रहा है और तुम्हें अठखेलियाँ सूझ रही हैं।
32. अंग न समाना–(अत्यन्त प्रसन्न होना)
सिविल सेवा में चयन से अनुराग अंग नहीं समा रहा है।
33. अंगूठे पर मारना–(परवाह न करना)
तुम अजीब व्यक्ति हो, सभी की सलाह को अंगूठे पर मार देते हो।
34. अंटी मारना–(कम तौलना)
बहुत से पंसारी अंटी मारने से बाज नहीं आते।
35.अंग टूटना–(थकावट से शरीर में दर्द होना)
दिन भर काम करा अब तो अंग टूट रहे हैं।
36. अंधेर नगरी–(जहाँ धांधली हो)
पूँजीवादी व्यवस्था ‘अंधेर नगरी’ बनकर रह गई है।
37. अंकुश न मानना–(न डरना)
युवा पीढ़ी किसी का अंकुश मानने को तैयार नहीं है।
38.अन्न का टन्न करना–(बनी चीज को बिगाड़ देना)
अभी–अभी हुए प्लास्टर पर तुमने पानी डालकर अन्न का टन्न कर दिया।
39.अन्न–जल बदा होना–(कहीं का जाना और रहना अनिवार्य हो जाना)
हमारा अन्न–जल तो मेरठ में बदा है।
40. अधर काटना–(बेबसी का भाव प्रकट करना)
पुलिस द्वारा बेटे की पिटाई करते देख पिता ने अपने अधर काट लिए।
41.अपनी हाँकना–(आत्म श्लाघा करना)
विवेक तुम हमारी भी सुनोगे या अपनी ही हाँकते रहोगे।
42.. अर्श से फर्श तक–(आकाश से भूमि तक)
भ्रष्टाचार में लिप्त बाबूजी बड़ी शेखी बघारते थे, एक मामले में निलंबित होने पर वे अर्श से फर्श पर आ गए।
43. अलबी–तलबी धरी रह जाना–(निष्प्रभावी होना)
बहुत ज्यादा परेशान करोगी तो तुम्हारे घर शिकायत कर दूंगा। सारी अलबी–तलबी धरी रह जाएगी।
44. अस्ति–नास्ति में पड़ना–(दुविधा में पड़ना)
दो लड़कियों द्वारा पसन्द किए जाने पर वह अस्ति–नास्ति में पड़ा हुआ है और कुछ निश्चय नहीं कर पा रहा है।
45.अन्दर होना–(जेल में बन्द होना)
मायावती के राज में शहर के अधिकतर गुण्डे अन्दर हो गए।
46. अरमान निकालना–(इच्छाएँ पूरी करना)।
बेरोज़गार लोग नौकरी मिलने पर अरमान निकालने की सोचते हैं।
47. आग पर तेल छिड़कना–(और भड़काना)
बहुत से लोग सुलह सफ़ाई करने के बजाय आग पर तेल छिड़कने में प्रवीण होते हैं।
48.आग पर पानी डालना–(झगड़ा मिटाना)
भारत व पाक आपसी समझबूझ से आग पर पानी डाल रहे हैं।
49. आग–पानी या आग और फूस का बैर होना–(स्वाभाविक शत्रुता होना)
भाजपा और साम्यवादी पार्टी में आग–पानी या आग और फूस का बैर है।
50.आँख लगना–(झपकी आना)
रात एक बजे तक कार्य किया, फिर आँख लग गई।
51. आँखों से गिरना–(आदर भाव घट जाना)
जनता की निगाहों से अधिकतर नेता गिर गए हैं।
52. आँखों पर चर्बी चढ़ना–(अहंकार से ध्यान तक न देना)
पैसे वाले हो गए हो, अब क्यों पहचानोगे, आँखों पर चर्बी चढ़ गई है ना।
53. आँखें नीची होना–(लज्जित होना)
बच्चों की करतूतों से माँ–बाप की आँखें नीची हो गईं।
54.आँखें मूंदना–(मर जाना)
आजकल तो बाप के आँखें मूंदते ही बेटे जायदाद का बँटवारा कर लेते हैं।
55.. आँखों का पानी ढलना (निर्लज्ज होना)
अब तो तुम किसी की नहीं सुनते, लगता है, तुम्हारी आँखों का पानी ढल गया है।
56. आँख का काँटा–(बुरा होना)
मनोज मुझे अपनी आँख का काँटा समझता है, जबकि मैंने कभी उसका बुरा नहीं किया।
57= आँख में खटकना–(बुरा लगना)
स्पष्टवादी व्यक्ति अधिकतर लोगों की आँखों में खटकता है।
58.आँख का उजाला–(अति प्रिय व्यक्ति)
राज अपने माता–पिता की आँखों का उजाला है।
59.आँख मारना–(इशारा करना)
रमेश ने सुरेश को कल रात वाली बात न बताने के लिए आँख मारी।
60. आँखों पर परदा पड़ना–(धोखा होना)
शर्मा जी ने सच्चाई बताकर, मेरी आँखों से परदा हटा दिया।




61. आँख बिछाना–(स्वागत, सम्मान करना)
रामचन्द्र जी की अयोध्या वापसी पर अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत में आँखें बिछा दीं।
62.आँखों में धूल डालना–(धोखा देना)
सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज़ों की आँखों में धूल डालकर, अपने आवास से निकलकर विदेश पहुँच गए।
63.आँख में घर करना–(हृदय में बसना)
विभा की छवि राज की आँखों में घर कर गई।
64.आँख लगाना– (बुरी अथवा लालचभरी दृष्टि से देखना)
चीन अब भी भारत की सीमाओं पर आँख लगाये हुए हैं।
65. आँखें ठण्डी करना–(प्रिय–वस्तु को देखकर सुख प्राप्त करना)
पोते को वर्षों बाद देखकर बाबा की आँखें ठण्डी हो गईं।
66. आँखें फाड़कर देखना–(आश्चर्य से देखना)
ऐसे आँखें फाड़कर क्या देख रही हो, पहली बार मिली हो क्या?
67.आँखें चार करना–(आमना–सामना करना)
एक दिन अचानक केशव से आँखें चार हुईं और मित्रता हो गई।
68.आँखें फेरना–(उपेक्षा करना)
जैसे ही मेरी उच्च पद प्राप्त करने की सम्भावनाएँ क्षीण हुईं, सबने मुझसे आँखें फेर ली।
69.आंख भरकर देखना–(इच्छा भर देखना)
जी चाहता है तुम्हें आँख भरकर देख लूँ, फिर न जाने कब मिलें।
70. आँख खिल उठना–(प्रसन्न हो जाना)
पिता जी ने जैसे ही अपने छोटे से बच्चे को देखा, वैसे ही उनकी आँख खिल उठी।
71.आँख चुराना–(कतराना)
जब से विजय ने अजय से उधार लिया है, वह आँख चुराने लगा है।
72. आँख का काजल चुराना–(सामने से देखते–देखते माल गायबकर देना) विवेक के देखते ही देखते उसका सामान गायब हो गया; जैसे किसी ने उसकी आँख का काजल चुरा लिया हो।
73. आँख निकलना–(विस्मय होना)
अपने खेत में छिपा खजाना देखकर गोधन की आँख निकल आई।
74. आँख मैली करना–(दिखावे के लिए रोना/बुरी नजर से देखना)
अरुण ने अपने घनिष्ठ मित्र की मृत्यु पर भी केवल अपनी आँखें ही मैली की।
75. आँखों में धूल झोंकना–(धोखा देना)
कुछ डकैत पुलिस की आँखों में धूल झोंककर मुठभेड़ से बचकर निकल गए।
76. आँखें दिखाना–(डराने–धमकाने के लिए रोष भरी दृष्टि से देखना) रामपाल ने अपने ढीठ बेटे को जब तक आँखें न दिखायीं, तब तक उसने उनका कहना नहीं माना।
77. आँखें तरेरना–(क्रोध से देखना)
पैसे न हो तो पत्नी भी आँखें तरेरती है।
78. आँखों का तारा–(अत्यन्त प्रिय)
इकलौता बेटा अपने माँ–बाप की आँखों का तारा होता है।
79. आटा गीला होना–(कठिनाई में पड़ना)
सुबोध को एंक के पश्चात् दूसरी मुसीबत घेर लेती है, आर्थिक तंगी में। उसका आटा गीला हो गया।
80.आँचल में बाँधना–(ध्यान में रखना)
पति–पत्नी को एक–दूसरे पर विश्वास करना चाहिए, यह बात आँचल में बाँध लेनी चाहिए।
81. आकाश में उड़ना–(कल्पना क्षेत्र में घूमना)
बिना धन के कोई व्यापार करना आकाश में उड़ना है।
82. आकाश–पाताल एक करना–(कठिन परिश्रम करना)
मैं व्यवस्था को बदलने के लिए आकाश–पाताल एक कर दूंगा।
83.आकाश–कुसुम होना–(दुर्लभ होना)
किसी सामान्य व्यक्ति के लिए विधायक का पद आकाश–कुसुम हो गया
84. आसमान सिर पर उठाना–(उपद्रव मचाना)
शिक्षक की अनुपस्थिति में छात्रों ने आसमान सिर पर उठा लिया।
85. आगा पीछा करना–(हिचकिचाना)
सेठ जी किसी शुभ कार्य हेतु चन्दा देने के लिए आगा पीछा कर रहे हैं।
86.आकाश से बातें करना–(काफी ऊँचा होना)
दिल्ली में आकाश से बातें करती बहुत–सी इमारतें हैं।
87. आवाज़ उठाना–(विरोध में कहना)
वर्तमान व्यवस्था के विरोध में मीडिया में आवाज़ उठने लगी है।
88. आसमान से तारे तोड़ना–(असम्भव काम करना)
अपनी सामर्थ्य समझे बिना ईश्वर को चुनौती देकर तुम आकाश से तारे तोड़ना चाहते हो?
89. आस्तीन का साँप–(विश्वासघाती मित्र)
राज ने निर्भय की बहुत सहायता की लेकिन वह तो आस्तीन का साँप निकला।
90. आठ–आठ आँसू रोना–(बहुत पश्चात्ताप करना)
दसवीं कक्षा में पुन: अनुत्तीर्ण होकर रमेश ने आठ–आठ आँसू रोये थे।
91.आसन डोलना–(विचलित होना)
विश्वामित्र की तपस्या से इन्द्र का आसन डोल गया।
92. आग–पानी साथ रखना–(असम्भव कार्य करना)
अहिंसा द्वारा भारत में क्रान्ति लाकर गाँधीजी ने आग–पानी साथ रख दिया।
93. आधी जान सूखना–(अत्यन्त भय लगना)
घर में चोरों को देखकर लालाजी की आधी जान सूख गई।
94. आपे से बाहर होना–(क्रोध से अपने वश में न रहना)
फ़िरोज़ खिलजी ने आपे से बाहर होकर फ़कीर को मरवा दिया।
95.आग लगाकर तमाशा देखना–(लड़ाई कराकर प्रसन्न होना)
हमारे मुहल्ले के संजीव का कार्य तो आग लगाकर तमाशा देखना है।
96.आगे का पैर पीछे पड़ना–(विपरीत गति या दशा में पड़ना)
सुरेश के दिन अभी अच्छे नहीं हैं, अब भी आगे का पैर पीछे पड़ रहा है।
97. आटे दाल की फ़िक्र होना–(जीविका की चिन्ता होना)
पढ़ाई समाप्त होते ही तुम्हें आटे दाल की फ़िक्र होने लगी है।
98. आधा तीतर आधा बटेर–(बेमेल चीजों का सम्मिश्रण)
सुधीर अपनी दुकान पर किताबों के साथ साज–शृंगार का सामान बेचना चाहता है। अनिल ने उसे समझाया आधा तीतर आधा बटेर बेचने से बिक्री कम रहेगी।
99.आग लगने पर कुआँ खोदना–(पहले से कोई उपाय न करना) शर्मा जी ने मकान की दीवारें खड़ी करा लीं, लेकिन जब लैन्टर डलने का समय आया, तो उधार लेने की बात करने लगे। इस पर मिस्त्री झल्लाया–शर्मा जी आप तो आग लगने पर कुआँ खोदने वाली बात कर रहे हो।
100आव देखा न ताव–(बिना सोचे–विचारे)
शिक्षक ने आव देखा न ताव और छात्र को पीटना शुरू कर दिया।
101. आँखों में खून उतरना–(अत्यधिक क्रोधित होना)
आतंकवादियों की हरकत देखकर पुलिस आयुक्त की आँखों में खून उतर आया था।
102.आग बबूला होना–(अत्यधिक क्रोधित होना)
कई बार मना करने पर भी जब दिनेश नहीं माना, तो उसके चाचा जी उस पर आग बबूला हो उठे।
103. आसमान से गिरकर खजूर के पेड़ पर अटकना–(उत्तम स्थान को त्यागकर ऐसे स्थान पर जाना जो अपेक्षाकृत अधिक कष्टप्रद हो) बैंक की नौकरी छोड़ने के बाद किराना स्टोर करने पर दयाशंकर को ऐसा लगा कि वह आसमान से गिरकर खजूर के पेड़ पर अटक गया है।
104. आप मरे जग प्रलय–(मृत्यु उपरान्त मनुष्य का सब कुछ छूट जाना) रामदीन मृत्यु–शैय्या पर पड़ा अपने बेटों के कारोबार के बारे में रह–रह पूछं रहा था। उसके पास एकत्र मित्रों में से एक ने दूसरे से कहा, “आप मरे जग प्रलय, रामदीन को बेटों के कारोबार की चिन्ता अब भी सता रही है।”
105.आसमान टूटना–(विपत्ति आना)
भाई और भतीजे की हत्या का समाचार सुनकर, मुख्यमन्त्री जी पर आसमान टूट पड़ा।
106.आटे दाल का भाव मालूम होना–(वास्तविकता का पता चलना)
अभी माँ–बाप की कमाई पर मौज कर लो, खुद कमाओगे तो आटे दाल का भाव मालूम हो जाएगा।
107. आड़े हाथों लेना–(खरी–खोटी सुनाना)
वीरेन्द्र ने सुरेश को आड़े हाथों लिया।
108.इधर–उधर की हाँकना–(अप्रासंगिक बातें करना)
आजकल कुछ नवयुवक इधर–उधर की हाँकते रहते हैं।
109.इज्जत उतारना–(सम्मान को ठेस पहुँचाना)
दीनानाथ से बीच बाज़ार में जब श्यामलाल ने ऊँचे स्वर में कर्ज वसूली की बात की तो दीनानाथ ने श्यामलाल से कहा, “सरेआम इज्जत मत उतारो, आज शाम घर आकर अपने रुपए ले जाना।”
110.इतिश्री करना–(कर्त्तव्य पूरा करना/सुखद अन्त होना)
अपनी दोनों कन्याओं की शादी करके रामसिंह ने अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली।
111.इशारों पर नाचना–(गुलाम बनकर रह जाना)
बहुत से व्यक्ति अपनी पत्नी के इशारों पर नाचते हैं।
112.उँगली उठाना–(इशारा करना, आलोचना करना।)
सच्चे और ईमानदार व्यक्ति पर उँगली उठाना व्यर्थ है।
113.उँगली पर नचाना–(वश में रखना)
श्रीकृष्ण गोपियों को अपनी उँगली पर नचाते थे।।
114. उल्लू बोलना–(उजाड़ होना)
पुराने शानदार महलों के खण्डहरों में आज उल्लू बोलते हैं।
115. उल्टी गंगा बहाना–(नियम के विरुद्ध कार्य करना)
भारत कला और दस्तकारी का सामान निर्यात करता है, फिर भी कुछ लोग विदेशों से कला व दस्तकारी का सामान मँगवाकर उल्टी गंगा बहाते हैं।
116. उन्नीस बीस होना–(दो वस्तुओं में थोड़ा बहुत अन्तर होना)
दुकानदार ने बताया कि दोनों कपड़ों में उन्नीस बीस का अन्तर है।
117. उल्टी पट्टी पढ़ाना–(बहकाना)
तुम मैच खेल रहे थे और मुझे उल्टी पट्टी पढ़ा रहे हो कि स्कूल बन्द था और मैं स्कूल से दोस्त के घर चला गया था।
118. उड़न छू होना–(गायब हो जाना)
रीता अभी तो यहीं थी, मिनटों में कहाँ उड़न छू हो गई।
119. उबल पड़ना–(एकदम गुस्सा हो जाना)
सक्सेना साहब तो थोड़ी–सी बात पर ही उबल पड़ते हैं।
120. एक ही थैली के चट्टे–बट्टे होना–(सभी का एक जैसा होना)
आजकल के सभी नेता एक ही थैली के चट्टे–बट्टे हैं।
121. एक ढेले से दो शिकार–(एक कार्य से दो उद्देश्यों की पूर्ति करना)
पुलिस दल ने बदमाशों को मारकर एक ढेले से दो शिकार किए। उन्हें पदोन्नति मिली और पुरस्कार भी मिला।
122. एक की चार लगाना–(छोटी बातों को बढ़ाकर कहना)
रमेश तुम तो अब हर बात में एक की चार लगाते हो।
123. एक आँख से देखना–(सबको बराबर समझना)
राजा का कर्तव्य है कि वह सभी नागरिकों को एक आँख से देखे।
124. एड़ी–चोटी का पसीना एक करना–(घोर परिश्रम करना)
रिक्शे वाले एड़ी–चोटी पसीना एक कर रोजी कमाते हैं।
125. एक–एक नस पहचानना–(सब कुछ समझना)
मालिक और नौकर एक–दूसरे की एक–एक नस पहचानते हैं।
126. एक घाट पानी पीना–(एकता और सहनशीलता होना)
राजा कृष्णदेवराय के समय शेर और बकरी एक घाट पानी पीते थे।
127. एक पंथ दो काज–(एक कार्य के साथ दूसरा कार्य भी पूरा करना) आगरा में मेरी परीक्षा है, इस बहाने ताजमहल भी देख लेंगे। चलो मेरे तो एक पंथ दो काज हो जाएंगे।
128. एक और एक ग्यारह होते हैं–(संघ में बड़ी शक्ति है)
भाइयों को आपस में लड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि एक और एक ग्यारह होते हैं।
129. ओखली में सिर देना–(जानबूझकर अपने को जोखिम में डालना) “अपने से चार गुना ताकतवर व्यक्ति से उलझने का मतलब है, ओखली में सिर देना, समझे प्यारे।” राजू ने रामू को समझाते हुए कहा।


Thursday

राष्ट्रभाषा के रुप में हिन्दी की दशा और दिशा

 राष्ट्रभाषा के रुप में हिन्दी की दशा और दिशा:-



भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। आज के समय भारत में यह लगभग करोड़ों लोगों की मातृभाषा है। इसके बावजूद इसे आज तक राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त नहीं हो सका है। इसे भारत ही नहीं विदेशों में भी अब अपनाया जा रहा है। भारत से बाहर जाकर बसने वाले लोग अपनी मातृभाषा हिंदी में ही बातचीत करना पसंद करते है। आज हिंदी को भारत से बाहर लगभग 12 अन्य देशों के महाविद्यालयों में पढ़ाया जा रहा है।



भारत के अधिकांश लोग तथा भारत के बाहर भारतवंशी लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि बहुत से विदेशियों ने भी हिंदी सीखी और उसका उपयोग किया। इसका मुख्य कारण हम इसके अनोखेपन को कह सकते हैं। अपने अनोखेपन के कारण भारत दुनिया के लोगो के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। इसका ऐतिहासिक महत्त्व और व्यापारिक प्रसार ने विश्व को आकर्षित किया है।
हिंदी को आज हम वैश्विक भाषा का दर्जा देते हैं, यह अंग्रेजी, मंदारिन के बाद विश्व में बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। आज भारत के प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में अपना भाषण जब देते हैं तो वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो जाती है,और हिंदी को विश्व भाषा बनाने की वकालत शुरू हो जाती है। पर वहीं हम इसका दूसरा पहलू भी हम देखते हैं। अपने ही देश में जब बात उच्च शिक्षा की आती है तो लोग हिंदी भाषा से दूरी बनाना शुरू कर देते है। खासकर उत्तर भारत के राज्यों में नव जवानों के अंदर यह धारणा उजागर होती है कि हिंदी ही तो है।
वहीं जब हम हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की करते है, तो अपने ही देश में हमें इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ता है।कुछ राज्यों का मानना है कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाकर हम पर जबरदस्ती थोपा जा रहा है। ऐसे लोग कभी हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते ।



हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए एक अच्छा व उत्तम तरीका यह हो सकता है की अपने ही देश के अंदर हिंदी को लेकर जो विरोध है । पहले उसे खत्म किया जाए। इसके लिए इसका एक उत्तम तरीका यह हो सकता है कि हम सभी भारतीय अपने बच्चो से हिंदी में बात करें और उन्हें हिन्दी बोलने व पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। 

Monday

इंटरनेट एक दो धारी तलवार है। इस कथन की समीक्षा कीजिए......

 इंटरनेट सूचनाओं का आदान प्रदान करने का एक जरिया है।जो कम से कम समय में अधिक से अधिक लोगों तक आसानी से अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। इसका उपयोग ईमेल भेजने, वीडियो चैटिंग, बिल जमा कराने , विज्ञापन आदि के साथ-साथ सीधे अपने ग्राहकों तक पहुंचने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है आदि। वर्तमान में तो बच्चों की शिक्षा और उनके खेलने के लिए गेम्स भी इंटरनेट पर उपलब्ध है।




रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा:- इंटरनेट

सोशल मीडिया के जरिए हम दूर से बैठे लोगों के साथ बातचीत कर सकते है। इसलिए आज यह हमारे रोजमर्रा की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है। इसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश आदि को आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है। लॉकडाउन के दौरान लोगों तक आसानी से सूचनाओं का आदान- प्रदान, मनोरंजन करना तथा शिक्षण संस्थान बंद होने पर बच्चों को शिक्षा से जोड़ने में भी इंटरनेट का अहम योगदान रहा है। आज यह लोगों के जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है।




इंटरनेट के नकारात्मक पहलू:-

आज इंटरनेट के अनेकों नकरात्मक पहलू है। जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। आज के आधुनिक समय में तकनीक का इतना विकास हुआ है कि इससे लोगों को काफी नुकसान हो रहा है। लोग अपने हित के लिए लोगों के साथ धोखाधड़ी करने से बिलकुल भी नहीं चूकते। यही कारण है कि इंटरनेट पर ऑनलाइन ठगी की वारदातें काफी बढ़ गईं हैं। ठगों ने अब लोगों की फेसबुक आईडी हैक कर दोस्तों से पैसे मांगने शुरू कर दिए है तो कई ऐप ऐसे भी हैं। जिनपर आकर्षक सामान दिखा कर लोगों को खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। लगातार इंटरनेट का इस्तेमाल करने से लोग मेडिकल डिसऑर्डर का शिकार भी हो रहे हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने घर में ही लोगों में दूरी पैदा कर दी है। इसके कारण लोग तनाव के शिकार हो रहे है।


निष्कर्ष:-

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि इंटरनेट एक दो धारी तलवार है। जब हम इसका उपयोग अच्छे कार्यों के लिए करते है तो हम इंटरनेट से कई सकारात्मक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि इसके नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं, जैसे:- समय की बर्बादी और अनुचित सामग्री के संपर्क में आना, खासकर युवा लोगों के लिए।

Saturday

रघुवीर सहाय का जीवन परिचय और उनकी कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कि व्याख्या

रघुवीर सहाय का परिचय
जन्म: 9 दिसंबर 1929 लखनऊ उत्तर प्रदेश।
निधन: 30 दिसंबर 1990
नई दिल्ली


नई कविता के प्रखर स्वर रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसंबर 1929 को लखनऊ में हुआ। आरंभिक शिक्षा-दीक्षा के बाद परास्नातक अँग्रेज़ी साहित्य में लखनऊ विश्वविद्यालय से किया। आकाशवाणी, नवभारत टाइम्स, दिनमान, प्रतीक, कल्पना, वाक् आदि पत्र-पत्रिकाओं के साथ पत्रकारिता, साहित्यिक पत्रकारिता और संपादन से संबंध रहा।

कविताओं में उनका प्रवेश ‘दूसरा सप्तक’ के साथ हुआ। वह समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील ‘नागर’ चेहरा कहे जाते हैं। उनका सौंदर्यशास्त्र ख़बरों का सौंदर्यशास्त्र है। उनकी भाषा ख़बरों की भाषा है और उनकी अधिकांश कविताओं की विषयवस्तु ख़बरधर्मी है। ख़बरों की यह भाषा कविता में उतरकर भी निरावरण और टूक बनी रहती है। इसमें वक्तव्य है, विवरण है, संक्षेप-सार है। उसमें प्रतीकों और बिंबों का उलझाव नहीं है। ख़बर में घटना और पाठक के बीच भाषा जितनी पारदर्शी होगी, ख़बर की संप्रेषणीयता उतनी ही बढ़ेगी। वह इसलिए कविता की एक पारदर्शी भाषा लेकर आते हैं। वह अपनी कविताओं की जड़ों को समकालीन यथार्थ में रखते हैं, जैसा उन्होंने ‘दूसरा सप्तक’ के अपने वक्तव्य में कहा था कि ‘विचारवस्तु का कविता में ख़ून कि तरह दौड़ते रहना कविता को जीवन और शक्ति देता है, और यह तभी संभव है जब हमारी कविता की जड़ें यथार्थ में हों।’ इस यथार्थ के विविध आयाम के अनुसरण में उनकी कविताएँ बहुआयामी बनती जाती हैं और इनकी प्रासंगिकता कभी कम नहीं होती। उन्होंने सड़क, चौराहा, दफ़्तर, अख़बार, संसद, बस, रेल और बाज़ार की बेलौस भाषा में कविताएँ लिखी। रोज़मर्रा की तमाम ख़बरें उनकी कविताओं में उतरकर सनसनीख़ेज़ रपटें नहीं रह जाती, आत्म-अन्वेषण का माध्यम बन जाती हैं।   


कविताओं के अलावे उन्होंने कहानी, निबंध और अनुवाद विधा में महती योगदान किया है। उनकी पत्रकारिता पर अलग से बात करने का चलन बढ़ा है।        

दूसरा सप्तक (1951), सीढ़ियों पर धूप में (1960), आत्महत्या के विरुद्ध (1967), हँसो, हँसो जल्दी हँसो (1975), लोग भूल गए हैं (1982) और कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ (1989), एक समय था (1994) उनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं। सीढ़ियों पर धूप में (1960), रास्ता इधर से है (1972) और जो आदमी हम बना रहे हैं (1983) संग्रहों में उनकी कहानियाँ संकलित हैं। दिल्ली मेरा परदेस (1976), लिखने का कारण (1978), ऊबे हुए सुखी और वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे; भँवर लहरें और तरंग (1983) उनके निबंध-संग्रह हैं। रघुवीर सहाय रचनावली (2000) के छह खंडों में उनकी सभी कृतियों को संकलित किया गया है। 

कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता का सार

कैमरे में बंद अपाहिज” कविता के कवि ‘रघुवीर सहाय जी’ हैं। “कैमरे में बंद अपाहिज” कविता को उनके काव्य संग्रह “लोग भूल गए हैं” से लिया गया है। यह एक व्यंग्यात्मक कविता है। दूरदर्शन के संचालक जिस तरीके से अपाहिज लोगों से बार-बार बेतुके प्रश्न करके उनके दुख का मजाक उड़ाते हैं। यह कविता इन्हीं सब बातों को दर्शाती है। इस कविता के माध्यम से कवि ने यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि एक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए और उससे लाभ कमाने के लिए मीडिया किसी भी हद तक जा सकती हैं। मीडिया वाले दूसरों के दुख को अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतराते, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है और इसी बात पर व्यंग्य कसते हुए कवि ने इस कविता को लिखा है। दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में उस साक्षात्कार में उस अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे “क्या वह अपाहिज हैं?” “यदि हाँ तो वह क्यों अपाहिज हैं?” “उसका अपाहिजपन तो उसे दु:ख देता होगा?”। इन बेतुके सवालों का वह व्यक्ति कोई जवाब नहीं दे पायेगा क्योंकि उसका मन पहले से ही इन सबसे दुखी होगा और इन सवालों को सुनकर वह और अधिक दुखी हो जायेगा। कार्यक्रम का संचालक को उस अपाहिज व्यक्ति के दुःख व् दर्द से कोई मतलब नहीं है वह केवल अपना फायदा देख  रहा है। उस अपंग व्यक्ति के चेहरे व आँखों में पीड़ा को साफ़-साफ़ देखने के बाबजूद भी उससे और बेतुका सवाल पूछा जाएगा कि “वह  कैमर पर बताए कि उसका दु:ख क्या है?” ऐसे प्रश्न विकलांग लोगों को और भी कमजोर बना देते हैं। मीडिया के अधिकारी इतने क्रूर होते हैं कि वह जानबूझकर अपाहिज लोगों से बेतुके सवाल पूछते हैं ताकि वे सवालों का उत्तर ही ना दे पाए। आप सोच कर देखिए कि उस व्यक्ति को कैसा लग रहा होगा जिससे पूछा जा रहा हो कि उसे अपाहिज होकर कैसा लग रहा है। जब वह अपाहिज व्यक्ति नहीं रोता हैं तो संचालक कैमर मैन से कैमर बंद करने को कहता है क्योंकि वह उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में नाकामयाब रहा और कैमरा बंद होने से पहले वह यह घोषणा करता हैं कि आप सभी दर्शक समाज के जिस उद्देश्य के लिए यह कार्यक्रम देख रहे थे वह कार्यक्रम अब समाप्त हो चुका है। लेकिन संचालक को ऐसा लगता हैं कि थोड़ी सी कसर रह गई थी वरना उसने उस व्यक्ति को लगभग रुला ही दिया था। कहने का अभिप्राय यह है कि मीडिया अपना टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता की व्याख्या

 

काव्यांश 1 –

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे

हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपन तो दु:ख देता होगा
देता है?
कैमर दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा)
हाँ तो बताइए आपका दु:ख क्या है
जल्दी बताइए वह दु:ख बताइए
बता नहीं पाएगा।


व्याख्या  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से ली गई हैं। मीडिया वाले दूसरों के दुख को अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतराते, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है और इसी बात पर व्यंग्य कसते हुए कवि ने इस कविता को लिखा है। उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए वह अपने दर्शकों से कहता है कि वह उनके लिए एक व्यक्ति को दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में लाएंगें और उससे प्रश्न पूछेंगे? कहने का तात्पर्य यह है कि दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक असल में अपनी लोकप्रियता और व्यापार को बढ़ाने के लिए एक अपाहिज व्यक्ति का साक्षात्कार दर्शकों को दिखाना चाह रहे हैं।
दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में उस साक्षात्कार में उस अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे “क्या वह अपाहिज हैं?” “यदि हाँ तो वह क्यों अपाहिज हैं?” “उसका अपाहिजपन तो उसे दु:ख देता होगा?”। इन बेतुके सवालों का वह व्यक्ति कोई जवाब नहीं दे पायेगा क्योंकि उसका मन पहले से ही इन सबसे दुखी होगा और इन सवालों को सुनकर वह और अधिक दुखी हो जायेगा। उसके चेहरे पर उसकी लाचारी व दर्द को दर्शकों को दिखाने के लिए कार्यक्रम का संचालक कैमरामैन से कहेगा कि इसे बड़ा कर के दर्शकों को दिखाओ। कहने का अभिप्राय यह है कि कार्यक्रम का संचालक को उस अपाहिज व्यक्ति के दुःख व् दर्द से कोई मतलब नहीं है वह केवल अपना फायदा देख रहा है। उस अपंग व्यक्ति के चेहरे व आँखों में पीड़ा को साफ़-साफ़ देखने के बाबजूद भी उससे और बेतुका सवाल पूछा जाएगा कि “वह कैमर पर बताए कि उसका दु:ख क्या है?” उससे जल्दी कहने के लिए कहा जाएगा कि “वह जल्दी बताए कि उसका दु:ख क्या है?” कहने का अभिप्राय यह है कि टेलीविजन वालों के पास हर कार्यक्रम के लिए एक निश्चित समय होता हैं। उन्हें किसी के दुःख से कोई मतलब नहीं होता। इसी कारण वे उस अपाहिज व्यक्ति से उसका दुःख जल्दी-जल्दी बताने के लिए कहते हैं क्योंकि उनके पास सीमित समय हैं। परन्तु वह अपंग व्यक्ति इन बेतुके प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं बता पाएगा।


काव्यांश 2-

सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
कैसा
यानी कैसा लगता है
(
हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा ? )
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(
यह अवसर खो देंगे ? )
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं ?
(
यह प्रश्न नही पूछा जायेगा )

व्याख्या  उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि कार्यक्रम का संचालक उस अपाहिज व्यक्ति से फिर से सवाल करता हैं कि वह सोचे और बताए कि उसको अपाहिज होकर कैसा महसूस होता है। कहने का आशय यह है कि मीडिया के अधिकारी इतने क्रूर होते हैं कि वह जानबूझकर अपाहिज लोगों से बेतुके सवाल पूछते हैं ताकि वे सवालों का उत्तर ही ना दे पाए। आप सोच कर देखिए कि उस व्यक्ति को कैसा लग रहा होगा जिससे पूछा जा रहा हो कि उसे अपाहिज होकर कैसा लग रहा है। संचालक उस व्यक्ति को और अधिक जोर देकर पूछता है कि वह आखिर कैसा महसूस करता है? मिडिया के अमानवीय व्यवहार का अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि कार्यक्रम का संचालक उस अपाहिज व्यक्ति से कहता है कि वह इशारा करके उसे बताएगा कि उसे अपने आप को दर्शकों के सामने कैसा दिखाना हैं कि वह आखिर कैसा महसूस करता है। संचालक अपाहिज व्यक्ति को उत्तर देने के लिए उकसाते हुए फिर से पूछता है कि वह थोड़ी कोशिश करके सोच कर बताए कि वह कैसा महसूस करता है? कहने का अभिप्राय यह है कि संचालक चाहता है कि वह अपाहिज व्यक्ति कैमर के सामने वैसा ही व्यवहार करके दिखाए जैसा उसने उससे कहा है। ताकि उसके दर्शक अपनी दिलचस्पी उसके साथ बनाए रखें।
आगे संचालक अपाहिज व्यक्ति को उकसाता हुआ कहता है कि इस वक्त वो नही बोलेगा तो अपना दुःख दुनिया के समक्ष रखने का सुनहरा अवसर उसके हाथ से निकल जाएगा। वह उसे समझा रहा है कि अपनी अपंगता व अपने दुख को दुनिया के सामने लाने का इससे बेहतर मौका उसे नहीं मिल सकता है। कवि कहते है कि उस अपाहिज व्यक्ति से उसकी शाररिक दुर्बलता से सम्बंधित प्रश्न पूछ-पूछ कर, उसे बार-बार उसकी अपंगता का एहसास दिलाकर उसे रोने के लिए मजबूर कर दिया जाएगा। और दर्शक भी उसके रोने का ही इंतजार कर रहे होंगे क्योंकि कार्यक्रम का संचालक यही तो चाहता हैं कि वह रोये , अपना दुःख लोगों के सामने प्रदर्शित करे ताकि उसका कार्यक्रम और अधिक रोचक बन सके, सफल हो सके। और दर्शकों से कोई यह प्रश्न नहीं पूछेगा कि वे क्यों उस अपाहिज व्यक्ति के रोने का इन्तजार कर रहे थे।

 

काव्यांश 3 –

फिर हम परदे पर दिखलाएंगे
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी
(
आशा हैं आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे )
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है )
अब मुसकुराएँगे हम
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम
बस थोड़ी ही कसर रह गई। 


व्याख्या  उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि कार्यक्रम के संचालक ने सारी हदे पार करते हुए उस अपाहिज व्यक्ति से तरह-तरह के प्रश्न पूछ कर उसे रुलाने का प्रयास कर रहा था ताकि उस अपाहिज व्यक्ति का दर्द और बैचैनी उसकी आंखों व उसके होठों पर दिखाई पड़े और फिर कार्यक्रम का संचालक उस अपंग व्यक्ति की फूली हुई आंखों व उसके होठों की बैचेनी की बड़ी-बड़ी तस्वीर को टेलीविजन के पर्दे पर बड़ा करके दर्शकों को दिखा सके और फिर दर्शकों से कह सके कि इसी दर्द और बैचैनी को वे उस अपाहिज व्यक्ति की पीड़ा समझें। कहने का आशय यह है कि जब कार्यक्रम का संचालक उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में नाकामयाब हो गया तब उस अपाहिज व्यक्ति की दर्द भरी आँखों और बैचैनी भरे होंठों को ही बड़ा करके पर्दे पर दिखाकर दर्शकों को भावुक करने का प्रयास कर रहा हैं।
कवि आगे कहते हैं कि उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने की एक और कोशिश करते हुए कार्यक्रम का संचालक दर्शकों से कहता हैं कि आप लोग धीरज बनाए रखिए। देखिए उनका कार्यक्रम दोनों को एक साथ रुलाने वाला हैं यानि उस अपाहिज व्यक्ति को और दर्शकों को।
लेकिन कार्यक्रम के संचालक के अनेक प्रयास करने के बाद भी जब वह अपाहिज व्यक्ति नहीं रोता हैं तो संचालक कैमरा मैन से कैमरा बंद करने को कहता है क्योंकि वह उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में नाकामयाब रहा और साथ ही साथ वह उस अपाहिज व्यक्ति को पर्दे पर वक्त की कीमत का एहसास भी करा देते है कि उस व्यक्ति को अपनी पीड़ा एक निर्धारित समय के अंदर ही व्यक्त करनी थी। और कैमरा बंद होने से पहले वह यह घोषणा करता हैं कि आप सभी दर्शक समाज के जिस उद्देश्य के लिए यह कार्यक्रम देख रहे थे वह कार्यक्रम अब समाप्त हो चुका है। लेकिन संचालक को ऐसा लगता हैं कि थोड़ी सी कसर रह गई थी वरना उसने उस व्यक्ति को लगभग रुला ही दिया था। कहने का अभिप्राय यह है कि मीडिया अपना टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

 

 


परीक्षा के एक दिन पूर्व दो मित्रों की बातचीत का संवाद लेखन कीजिए-

संवाद लेखन किसे कहते हैं  संवाद लेखन -  वह लेखनी है जिसमें दो या अधिक व्यक्तियों के बीच होने वाली बातचीत को लिखित रूप में व्यक्त किया जाता ह...