Thursday

राष्ट्रभाषा के रुप में हिन्दी की दशा और दिशा

 राष्ट्रभाषा के रुप में हिन्दी की दशा और दिशा:-



भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया है। आज के समय भारत में यह लगभग करोड़ों लोगों की मातृभाषा है। इसके बावजूद इसे आज तक राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त नहीं हो सका है। इसे भारत ही नहीं विदेशों में भी अब अपनाया जा रहा है। भारत से बाहर जाकर बसने वाले लोग अपनी मातृभाषा हिंदी में ही बातचीत करना पसंद करते है। आज हिंदी को भारत से बाहर लगभग 12 अन्य देशों के महाविद्यालयों में पढ़ाया जा रहा है।



भारत के अधिकांश लोग तथा भारत के बाहर भारतवंशी लोग हिंदी का प्रयोग करते हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि बहुत से विदेशियों ने भी हिंदी सीखी और उसका उपयोग किया। इसका मुख्य कारण हम इसके अनोखेपन को कह सकते हैं। अपने अनोखेपन के कारण भारत दुनिया के लोगो के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। इसका ऐतिहासिक महत्त्व और व्यापारिक प्रसार ने विश्व को आकर्षित किया है।
हिंदी को आज हम वैश्विक भाषा का दर्जा देते हैं, यह अंग्रेजी, मंदारिन के बाद विश्व में बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। आज भारत के प्रधानमंत्री संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी में अपना भाषण जब देते हैं तो वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें नम हो जाती है,और हिंदी को विश्व भाषा बनाने की वकालत शुरू हो जाती है। पर वहीं हम इसका दूसरा पहलू भी हम देखते हैं। अपने ही देश में जब बात उच्च शिक्षा की आती है तो लोग हिंदी भाषा से दूरी बनाना शुरू कर देते है। खासकर उत्तर भारत के राज्यों में नव जवानों के अंदर यह धारणा उजागर होती है कि हिंदी ही तो है।
वहीं जब हम हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की करते है, तो अपने ही देश में हमें इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ता है।कुछ राज्यों का मानना है कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाकर हम पर जबरदस्ती थोपा जा रहा है। ऐसे लोग कभी हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहते ।



हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए एक अच्छा व उत्तम तरीका यह हो सकता है की अपने ही देश के अंदर हिंदी को लेकर जो विरोध है । पहले उसे खत्म किया जाए। इसके लिए इसका एक उत्तम तरीका यह हो सकता है कि हम सभी भारतीय अपने बच्चो से हिंदी में बात करें और उन्हें हिन्दी बोलने व पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। 

Monday

इंटरनेट एक दो धारी तलवार है। इस कथन की समीक्षा कीजिए......

 इंटरनेट सूचनाओं का आदान प्रदान करने का एक जरिया है।जो कम से कम समय में अधिक से अधिक लोगों तक आसानी से अपनी उपस्थिति दर्ज कराता है। इसका उपयोग ईमेल भेजने, वीडियो चैटिंग, बिल जमा कराने , विज्ञापन आदि के साथ-साथ सीधे अपने ग्राहकों तक पहुंचने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है आदि। वर्तमान में तो बच्चों की शिक्षा और उनके खेलने के लिए गेम्स भी इंटरनेट पर उपलब्ध है।




रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा:- इंटरनेट

सोशल मीडिया के जरिए हम दूर से बैठे लोगों के साथ बातचीत कर सकते है। इसलिए आज यह हमारे रोजमर्रा की जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है। इसके माध्यम से किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश आदि को आर्थिक सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है। लॉकडाउन के दौरान लोगों तक आसानी से सूचनाओं का आदान- प्रदान, मनोरंजन करना तथा शिक्षण संस्थान बंद होने पर बच्चों को शिक्षा से जोड़ने में भी इंटरनेट का अहम योगदान रहा है। आज यह लोगों के जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है।




इंटरनेट के नकारात्मक पहलू:-

आज इंटरनेट के अनेकों नकरात्मक पहलू है। जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। आज के आधुनिक समय में तकनीक का इतना विकास हुआ है कि इससे लोगों को काफी नुकसान हो रहा है। लोग अपने हित के लिए लोगों के साथ धोखाधड़ी करने से बिलकुल भी नहीं चूकते। यही कारण है कि इंटरनेट पर ऑनलाइन ठगी की वारदातें काफी बढ़ गईं हैं। ठगों ने अब लोगों की फेसबुक आईडी हैक कर दोस्तों से पैसे मांगने शुरू कर दिए है तो कई ऐप ऐसे भी हैं। जिनपर आकर्षक सामान दिखा कर लोगों को खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। लगातार इंटरनेट का इस्तेमाल करने से लोग मेडिकल डिसऑर्डर का शिकार भी हो रहे हैं। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने घर में ही लोगों में दूरी पैदा कर दी है। इसके कारण लोग तनाव के शिकार हो रहे है।


निष्कर्ष:-

इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि इंटरनेट एक दो धारी तलवार है। जब हम इसका उपयोग अच्छे कार्यों के लिए करते है तो हम इंटरनेट से कई सकारात्मक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि इसके नकारात्मक परिणाम भी हो सकते हैं, जैसे:- समय की बर्बादी और अनुचित सामग्री के संपर्क में आना, खासकर युवा लोगों के लिए।

Saturday

रघुवीर सहाय का जीवन परिचय और उनकी कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कि व्याख्या

रघुवीर सहाय का परिचय
जन्म: 9 दिसंबर 1929 लखनऊ उत्तर प्रदेश।
निधन: 30 दिसंबर 1990
नई दिल्ली


नई कविता के प्रखर स्वर रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसंबर 1929 को लखनऊ में हुआ। आरंभिक शिक्षा-दीक्षा के बाद परास्नातक अँग्रेज़ी साहित्य में लखनऊ विश्वविद्यालय से किया। आकाशवाणी, नवभारत टाइम्स, दिनमान, प्रतीक, कल्पना, वाक् आदि पत्र-पत्रिकाओं के साथ पत्रकारिता, साहित्यिक पत्रकारिता और संपादन से संबंध रहा।

कविताओं में उनका प्रवेश ‘दूसरा सप्तक’ के साथ हुआ। वह समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील ‘नागर’ चेहरा कहे जाते हैं। उनका सौंदर्यशास्त्र ख़बरों का सौंदर्यशास्त्र है। उनकी भाषा ख़बरों की भाषा है और उनकी अधिकांश कविताओं की विषयवस्तु ख़बरधर्मी है। ख़बरों की यह भाषा कविता में उतरकर भी निरावरण और टूक बनी रहती है। इसमें वक्तव्य है, विवरण है, संक्षेप-सार है। उसमें प्रतीकों और बिंबों का उलझाव नहीं है। ख़बर में घटना और पाठक के बीच भाषा जितनी पारदर्शी होगी, ख़बर की संप्रेषणीयता उतनी ही बढ़ेगी। वह इसलिए कविता की एक पारदर्शी भाषा लेकर आते हैं। वह अपनी कविताओं की जड़ों को समकालीन यथार्थ में रखते हैं, जैसा उन्होंने ‘दूसरा सप्तक’ के अपने वक्तव्य में कहा था कि ‘विचारवस्तु का कविता में ख़ून कि तरह दौड़ते रहना कविता को जीवन और शक्ति देता है, और यह तभी संभव है जब हमारी कविता की जड़ें यथार्थ में हों।’ इस यथार्थ के विविध आयाम के अनुसरण में उनकी कविताएँ बहुआयामी बनती जाती हैं और इनकी प्रासंगिकता कभी कम नहीं होती। उन्होंने सड़क, चौराहा, दफ़्तर, अख़बार, संसद, बस, रेल और बाज़ार की बेलौस भाषा में कविताएँ लिखी। रोज़मर्रा की तमाम ख़बरें उनकी कविताओं में उतरकर सनसनीख़ेज़ रपटें नहीं रह जाती, आत्म-अन्वेषण का माध्यम बन जाती हैं।   


कविताओं के अलावे उन्होंने कहानी, निबंध और अनुवाद विधा में महती योगदान किया है। उनकी पत्रकारिता पर अलग से बात करने का चलन बढ़ा है।        

दूसरा सप्तक (1951), सीढ़ियों पर धूप में (1960), आत्महत्या के विरुद्ध (1967), हँसो, हँसो जल्दी हँसो (1975), लोग भूल गए हैं (1982) और कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ (1989), एक समय था (1994) उनके प्रमुख काव्य-संग्रह हैं। सीढ़ियों पर धूप में (1960), रास्ता इधर से है (1972) और जो आदमी हम बना रहे हैं (1983) संग्रहों में उनकी कहानियाँ संकलित हैं। दिल्ली मेरा परदेस (1976), लिखने का कारण (1978), ऊबे हुए सुखी और वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे; भँवर लहरें और तरंग (1983) उनके निबंध-संग्रह हैं। रघुवीर सहाय रचनावली (2000) के छह खंडों में उनकी सभी कृतियों को संकलित किया गया है। 

कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता का सार

कैमरे में बंद अपाहिज” कविता के कवि ‘रघुवीर सहाय जी’ हैं। “कैमरे में बंद अपाहिज” कविता को उनके काव्य संग्रह “लोग भूल गए हैं” से लिया गया है। यह एक व्यंग्यात्मक कविता है। दूरदर्शन के संचालक जिस तरीके से अपाहिज लोगों से बार-बार बेतुके प्रश्न करके उनके दुख का मजाक उड़ाते हैं। यह कविता इन्हीं सब बातों को दर्शाती है। इस कविता के माध्यम से कवि ने यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि एक कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए और उससे लाभ कमाने के लिए मीडिया किसी भी हद तक जा सकती हैं। मीडिया वाले दूसरों के दुख को अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतराते, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है और इसी बात पर व्यंग्य कसते हुए कवि ने इस कविता को लिखा है। दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में उस साक्षात्कार में उस अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे “क्या वह अपाहिज हैं?” “यदि हाँ तो वह क्यों अपाहिज हैं?” “उसका अपाहिजपन तो उसे दु:ख देता होगा?”। इन बेतुके सवालों का वह व्यक्ति कोई जवाब नहीं दे पायेगा क्योंकि उसका मन पहले से ही इन सबसे दुखी होगा और इन सवालों को सुनकर वह और अधिक दुखी हो जायेगा। कार्यक्रम का संचालक को उस अपाहिज व्यक्ति के दुःख व् दर्द से कोई मतलब नहीं है वह केवल अपना फायदा देख  रहा है। उस अपंग व्यक्ति के चेहरे व आँखों में पीड़ा को साफ़-साफ़ देखने के बाबजूद भी उससे और बेतुका सवाल पूछा जाएगा कि “वह  कैमर पर बताए कि उसका दु:ख क्या है?” ऐसे प्रश्न विकलांग लोगों को और भी कमजोर बना देते हैं। मीडिया के अधिकारी इतने क्रूर होते हैं कि वह जानबूझकर अपाहिज लोगों से बेतुके सवाल पूछते हैं ताकि वे सवालों का उत्तर ही ना दे पाए। आप सोच कर देखिए कि उस व्यक्ति को कैसा लग रहा होगा जिससे पूछा जा रहा हो कि उसे अपाहिज होकर कैसा लग रहा है। जब वह अपाहिज व्यक्ति नहीं रोता हैं तो संचालक कैमर मैन से कैमर बंद करने को कहता है क्योंकि वह उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में नाकामयाब रहा और कैमरा बंद होने से पहले वह यह घोषणा करता हैं कि आप सभी दर्शक समाज के जिस उद्देश्य के लिए यह कार्यक्रम देख रहे थे वह कार्यक्रम अब समाप्त हो चुका है। लेकिन संचालक को ऐसा लगता हैं कि थोड़ी सी कसर रह गई थी वरना उसने उस व्यक्ति को लगभग रुला ही दिया था। कहने का अभिप्राय यह है कि मीडिया अपना टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता की व्याख्या

 

काव्यांश 1 –

हम दूरदर्शन पर बोलेंगे

हम समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपन तो दु:ख देता होगा
देता है?
कैमर दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा)
हाँ तो बताइए आपका दु:ख क्या है
जल्दी बताइए वह दु:ख बताइए
बता नहीं पाएगा।


व्याख्या  प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ कविता ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ से ली गई हैं। मीडिया वाले दूसरों के दुख को अपने व्यापार का माध्यम बनाने से बिलकुल नहीं कतराते, उन्हें सिर्फ पैसे कमाने से मतलब होता है और इसी बात पर व्यंग्य कसते हुए कवि ने इस कविता को लिखा है। उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक अपने आप को बहुत सक्षम और शक्तिशाली समझता है। इसीलिए वह अपने दर्शकों से कहता है कि वह उनके लिए एक व्यक्ति को दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में लाएंगें और उससे प्रश्न पूछेंगे? कहने का तात्पर्य यह है कि दूरदर्शन के कार्यक्रम के संचालक असल में अपनी लोकप्रियता और व्यापार को बढ़ाने के लिए एक अपाहिज व्यक्ति का साक्षात्कार दर्शकों को दिखाना चाह रहे हैं।
दूरदर्शन के स्टूडियो के एक बंद कमरे में उस साक्षात्कार में उस अपाहिज व्यक्ति से बहुत ही बेतुके प्रश्न पूछे जाते हैं जैसे “क्या वह अपाहिज हैं?” “यदि हाँ तो वह क्यों अपाहिज हैं?” “उसका अपाहिजपन तो उसे दु:ख देता होगा?”। इन बेतुके सवालों का वह व्यक्ति कोई जवाब नहीं दे पायेगा क्योंकि उसका मन पहले से ही इन सबसे दुखी होगा और इन सवालों को सुनकर वह और अधिक दुखी हो जायेगा। उसके चेहरे पर उसकी लाचारी व दर्द को दर्शकों को दिखाने के लिए कार्यक्रम का संचालक कैमरामैन से कहेगा कि इसे बड़ा कर के दर्शकों को दिखाओ। कहने का अभिप्राय यह है कि कार्यक्रम का संचालक को उस अपाहिज व्यक्ति के दुःख व् दर्द से कोई मतलब नहीं है वह केवल अपना फायदा देख रहा है। उस अपंग व्यक्ति के चेहरे व आँखों में पीड़ा को साफ़-साफ़ देखने के बाबजूद भी उससे और बेतुका सवाल पूछा जाएगा कि “वह कैमर पर बताए कि उसका दु:ख क्या है?” उससे जल्दी कहने के लिए कहा जाएगा कि “वह जल्दी बताए कि उसका दु:ख क्या है?” कहने का अभिप्राय यह है कि टेलीविजन वालों के पास हर कार्यक्रम के लिए एक निश्चित समय होता हैं। उन्हें किसी के दुःख से कोई मतलब नहीं होता। इसी कारण वे उस अपाहिज व्यक्ति से उसका दुःख जल्दी-जल्दी बताने के लिए कहते हैं क्योंकि उनके पास सीमित समय हैं। परन्तु वह अपंग व्यक्ति इन बेतुके प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं बता पाएगा।


काव्यांश 2-

सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है
कैसा
यानी कैसा लगता है
(
हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा ? )
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(
यह अवसर खो देंगे ? )
आप जानते हैं कि कार्यक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं ?
(
यह प्रश्न नही पूछा जायेगा )

व्याख्या  उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि कार्यक्रम का संचालक उस अपाहिज व्यक्ति से फिर से सवाल करता हैं कि वह सोचे और बताए कि उसको अपाहिज होकर कैसा महसूस होता है। कहने का आशय यह है कि मीडिया के अधिकारी इतने क्रूर होते हैं कि वह जानबूझकर अपाहिज लोगों से बेतुके सवाल पूछते हैं ताकि वे सवालों का उत्तर ही ना दे पाए। आप सोच कर देखिए कि उस व्यक्ति को कैसा लग रहा होगा जिससे पूछा जा रहा हो कि उसे अपाहिज होकर कैसा लग रहा है। संचालक उस व्यक्ति को और अधिक जोर देकर पूछता है कि वह आखिर कैसा महसूस करता है? मिडिया के अमानवीय व्यवहार का अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि कार्यक्रम का संचालक उस अपाहिज व्यक्ति से कहता है कि वह इशारा करके उसे बताएगा कि उसे अपने आप को दर्शकों के सामने कैसा दिखाना हैं कि वह आखिर कैसा महसूस करता है। संचालक अपाहिज व्यक्ति को उत्तर देने के लिए उकसाते हुए फिर से पूछता है कि वह थोड़ी कोशिश करके सोच कर बताए कि वह कैसा महसूस करता है? कहने का अभिप्राय यह है कि संचालक चाहता है कि वह अपाहिज व्यक्ति कैमर के सामने वैसा ही व्यवहार करके दिखाए जैसा उसने उससे कहा है। ताकि उसके दर्शक अपनी दिलचस्पी उसके साथ बनाए रखें।
आगे संचालक अपाहिज व्यक्ति को उकसाता हुआ कहता है कि इस वक्त वो नही बोलेगा तो अपना दुःख दुनिया के समक्ष रखने का सुनहरा अवसर उसके हाथ से निकल जाएगा। वह उसे समझा रहा है कि अपनी अपंगता व अपने दुख को दुनिया के सामने लाने का इससे बेहतर मौका उसे नहीं मिल सकता है। कवि कहते है कि उस अपाहिज व्यक्ति से उसकी शाररिक दुर्बलता से सम्बंधित प्रश्न पूछ-पूछ कर, उसे बार-बार उसकी अपंगता का एहसास दिलाकर उसे रोने के लिए मजबूर कर दिया जाएगा। और दर्शक भी उसके रोने का ही इंतजार कर रहे होंगे क्योंकि कार्यक्रम का संचालक यही तो चाहता हैं कि वह रोये , अपना दुःख लोगों के सामने प्रदर्शित करे ताकि उसका कार्यक्रम और अधिक रोचक बन सके, सफल हो सके। और दर्शकों से कोई यह प्रश्न नहीं पूछेगा कि वे क्यों उस अपाहिज व्यक्ति के रोने का इन्तजार कर रहे थे।

 

काव्यांश 3 –

फिर हम परदे पर दिखलाएंगे
फूली हुई आँख की एक बड़ी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी
(
आशा हैं आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे )
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं
आप और वह दोनों
(कैमरा
बस करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है )
अब मुसकुराएँगे हम
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम
बस थोड़ी ही कसर रह गई। 


व्याख्या  उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि कार्यक्रम के संचालक ने सारी हदे पार करते हुए उस अपाहिज व्यक्ति से तरह-तरह के प्रश्न पूछ कर उसे रुलाने का प्रयास कर रहा था ताकि उस अपाहिज व्यक्ति का दर्द और बैचैनी उसकी आंखों व उसके होठों पर दिखाई पड़े और फिर कार्यक्रम का संचालक उस अपंग व्यक्ति की फूली हुई आंखों व उसके होठों की बैचेनी की बड़ी-बड़ी तस्वीर को टेलीविजन के पर्दे पर बड़ा करके दर्शकों को दिखा सके और फिर दर्शकों से कह सके कि इसी दर्द और बैचैनी को वे उस अपाहिज व्यक्ति की पीड़ा समझें। कहने का आशय यह है कि जब कार्यक्रम का संचालक उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में नाकामयाब हो गया तब उस अपाहिज व्यक्ति की दर्द भरी आँखों और बैचैनी भरे होंठों को ही बड़ा करके पर्दे पर दिखाकर दर्शकों को भावुक करने का प्रयास कर रहा हैं।
कवि आगे कहते हैं कि उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने की एक और कोशिश करते हुए कार्यक्रम का संचालक दर्शकों से कहता हैं कि आप लोग धीरज बनाए रखिए। देखिए उनका कार्यक्रम दोनों को एक साथ रुलाने वाला हैं यानि उस अपाहिज व्यक्ति को और दर्शकों को।
लेकिन कार्यक्रम के संचालक के अनेक प्रयास करने के बाद भी जब वह अपाहिज व्यक्ति नहीं रोता हैं तो संचालक कैमरा मैन से कैमरा बंद करने को कहता है क्योंकि वह उस अपाहिज व्यक्ति को रुलाने में नाकामयाब रहा और साथ ही साथ वह उस अपाहिज व्यक्ति को पर्दे पर वक्त की कीमत का एहसास भी करा देते है कि उस व्यक्ति को अपनी पीड़ा एक निर्धारित समय के अंदर ही व्यक्त करनी थी। और कैमरा बंद होने से पहले वह यह घोषणा करता हैं कि आप सभी दर्शक समाज के जिस उद्देश्य के लिए यह कार्यक्रम देख रहे थे वह कार्यक्रम अब समाप्त हो चुका है। लेकिन संचालक को ऐसा लगता हैं कि थोड़ी सी कसर रह गई थी वरना उसने उस व्यक्ति को लगभग रुला ही दिया था। कहने का अभिप्राय यह है कि मीडिया अपना टीआरपी बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

 

 


CBSE Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब

बड़े भाई साहब कहानी का सारांश

लेखक 9 वर्ष का था और उसका बड़ा भाई 14 वर्ष का था। बड़ा भाई 2 साल फेल हो चुका था। इसलिए वह लेखक से केवल तीन कक्षा आगे था। लेखक हमेशा अपने भाई को किताबे खोलकर बैठा देखा करता था परंतु उसका दिमाग कहीं और होता था। वह अपनी कॉपी और किताबों पर चिड़िया कबूतर आदि बनाया करता था। लेखक का मन पढ़ाई में बहुत कम लगता था इसलिए वह मौका पाते ही हॉस्टल से निकलकर खेलने लगता था।

परंतु घर पहुंचते ही उसे बड़े भाई का रूद्र रूप देखना पड़ता था उसके सामने लेखक मौन धारण कर लेता था। वार्षिक परीक्षा हुई तब बड़े भाई साहब फिर से फेल हो गए और लेखक अपनी कक्षा में प्रथम आया। लेखक के मन में आया कि वह बड़े भाई को खूब सुनाएं लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। बड़े भाई का फेल होना देखकर वह निडर हो गया और मैदान में जाकर खेलने लगा। भाई साहब बोले कि मैं देख रहा हूं कि कक्षा में प्रथम आने पर तुम्हें घमंड हो गया है मेरे फेल होने पर ना जाओ मेरी कक्षा में पहुंचेंगे तो पता चलेगा। अगले साल बड़ा भाई फिर से फेल हो गया जबकि लेखक दर्जे में प्रथम आया।

इस साल बड़े भाई ने खूब मेहनत की फिर भी वह फेल हो गया। यह देखकर लेखक को बड़े भाई साहब पर दया आने लगी अब सिर्फ एक ही कक्षा का अंतर दोनों में रह गया था। भाई बोला मैं तुम से 5 साल बड़ा हूं। तुम मेरे तजुर्बे की बराबरी नहीं कर सकते। तुम चाहे कितनी पढ़ाई क्यों ना कर लो समझ किताबें पढ़ने से नहीं आती है। हमारे दादा और अम्मा कोई अधिक पढ़े लिखे नहीं हैं। फिर भी हम पढ़े-लिखे को समझाने का हक उनका है। लेखक को बड़े भाई की यह नई युक्ति बहुत अच्छी लगी वहां उसके सामने झुक गया। उसे सचमुच अनुभव हुआ और वह बोला आपको कहने का पूरा अधिकार है बड़े भाई साहब। या सुनते ही बड़े भाई साहब और लेखक गले लग गए और दोनों हॉस्टल की और चल पड़े।


CBSE Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 10 बड़े भाई साहब

मौखिक

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए-

प्रश्न 1. कथा नायक की रुचि किन कार्यों में थी?  
उत्तर- कथा नायक की रुचि खेल-कूद, मैदानों की सुखद हरियाली, हवा के हलके-हलके झोंके, फुटबॉल की उछल-कूद, बॉलीबॉल की फुरती और पतंगबाजी, कागज़ की तितलियाँ उड़ाना, चारदीवारी पर चढ़कर नीचे कूदना, फाटक पर सवार होकर उसे आगे-पीछे चलाना आदि कार्यों में थी।

प्रश्न 2. बड़े भाई साहब छोटे भाई से हर समय पहला सवाल क्या पूछते थे?
उत्तर- बड़े भाई छोटे भाई से हर समय एक ही सवाल पूछते थे-कहाँ थे? उसके बाद वे उसे उपदेश देने लगते थे।

प्रश्न 3. दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में क्या परिवर्तन आया?

उत्तर- दूसरी बार पास होने पर छोटे भाई के व्यवहार में यह परिवर्तन आया कि वह स्वच्छंद और घमंडी हो गया। वह यह । सोचने लगा कि अब पढ़े या न पढ़े, वह पास तो हो ही जाएगा। वह बड़े भाई की सहनशीलता का अनुचित लाभ उठाकर अपना अधिक समय खेलकूद में लगाने लगा।

प्रश्न 4. बड़े भाई साहब छोटे भाई से उम्र में कितने बड़े थे और वे कौन-सी कक्षा में पढ़ते थे?
उत्तर- बड़े भाई साहब लेखक से उम्र में 5 साल बड़े थे। वे नवीं कक्षा में पढ़ते थे।

प्रश्न 5. बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए क्या करते थे?
उत्तर- बड़े भाई साहब दिमाग को आराम देने के लिए कभी कापी पर वे कभी किताब के हाशियों पर चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों के चित्र बनाते थे। कभी-कभी वे एक शब्द या वाक्य को अनेक बार लिख डालते, कभी एक शेर-शायरी की बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द रचना करते, जो निरर्थक होती, कभी किसी आदमी को चेहरा बनाते।

लिखित-

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ( 25-30 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. छोटे भाई ने अपनी पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय क्या-क्या सोचा और फिर उसका पालन क्यों नहीं कर पाया?
उत्तर- छोटे भाई ने अधिक मन लगाकर पढ़ने का निश्चय कर टाइम-टेबिल बनाया, जिसमें खेलकूद के लिए कोई स्थान नहीं था। पढ़ाई का टाइम-टेबिल बनाते समय उसने यह सोचा कि टाइम-टेबिल बना लेना एक बात है और बनाए गए टाइम-टेबिल पर अमल करना दूसरी बात है। यह टाइम-टेबिल का पालन न कर पाया, क्योंकि मैदान की हरियाली, फुटबॉल की उछल-कूद, बॉलीबॉल की तेज़ी और फुरती उसे अज्ञात और अनिवार्य रूप से खींच ले जाती और वहाँ जाते ही वह सब कुछ भूल जाता।

प्रश्न 2. एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उनकी क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर- छोटा भाई दिनभर गुल्ली-डंडा खेलकर बड़े भाई के सामने पहुँचा तो बड़े भाई ने गुस्से में उसे खूब लताड़ा। उसे घमंडी कहा और सर्वनाश होने का डर दिखाया। उसने उसकी सफलता को भी तुक्का बताया और आगे की पढ़ाई का भय दिखलाया।

प्रश्न 3. बड़े भाई साहब को अपने मन की इच्छाएँ क्यों दबानी पड़ती थीं?
उत्तर- बड़े भाई साहब बड़े होने के नाते यही चाहते और कोशिश करते थे कि वे जो कुछ भी करें, वह छोटे भाई के लिए एक उदाहरण का काम करे। उन्हें अपने नैतिक कर्तव्य का वोध था कि स्वयं अनुशासित रह कर ही वे भाई को अनुशासन में रख पाएँगे। इस आदर्श तथा गरिमामयी स्थिति को बनाए रखने के लिए उन्हें अपने मन की इच्छाएँ दबानी पड़ती थीं।

प्रश्न 4. बड़े भाई साहब छोटे भाई को क्या सलाह देते थे और क्यों ?
उत्तर- बड़े भाई साहब छोटे भाई को दिन-रात पढ़ने तथा खेल-कूद में समय न गॅवाने की सलाह देते थे। वे बड़ा होने के कारण उसे राह पर चलाना अपना कर्तव्य समझते थे।

प्रश्न 5. छोटे भाई ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का क्या फ़ायदा उठाया?
उत्तर- छोटे भाई (लेखक) ने बड़े भाई साहब के नरम व्यवहार का अनुचित फ़ायदा उठाया, जिससे उसकी स्वच्छंदता बढ़ गई और उसने पढ़ना-लिखना बंद कर दिया। उसके मन में यह भावना बलवती हो गई कि वह पढ़े या न पढ़े परीक्षा में पास अवश्य हो जाएगा। इतना ही नहीं, उसने अपना सारा समय पतंगबाज़ी को ही भेंट कर दिया।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर (50-60 शब्दों में) लिखिए-

प्रश्न 1. बड़े भाई की डाँट-फटकार अगर न मिलती, तो क्या छोटा भाई कक्षा में अव्वल आता? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर- मेरे विचार में यह सच है कि अगर बड़े भाई की डाँट-फटकार छोटे भाई को न मिलती, तो वह कक्षा में कभी भी अव्वल नहीं आता। यद्यपि उसने बड़े भाई की नसीहत तथा लताड़ से कभी कोई सीख ग्रहण नहीं की, परंतु उसपर अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव गहरा पड़ता था, क्योंकि छोटा भाई तो खे-प्रवृत्ति का था। बड़े भाई की डाँट-फटकार की ही भूमिका ने उसे कक्षा में प्रथम आने में सहायता की तथा उसकी चंचलता पर नियंत्रण रखा। मेरे विचार से बड़े भाई की डाँट-फटकार के कारण ही छोटा भाई कक्षा में अव्वल अता था अर्थात् बड़े भाई की डाँट-फटकार उसके लिए वरदान सिद्ध हुई।

प्रश्न 2. इस पाठ में लेखक ने समूची शिक्षा के किन तौर-तरीकों पर व्यंग्य किया है? क्या आप उनके विचार से सहमत हैं?
उत्तर- एक दिन जब गुल्ली-डंडा खेलने के बाद छोटा भाई बड़े भाई साहब के सामने पहुँचा तो उन्होंने रौद्र रूप धारण कर पूछा, “कहाँ थे? लेखक को मौन देखकर उन्होंने लताड़ते हुए घमंड पैदा होने तथा आगामी परीक्षा में फेल होने का भय दिखाया।

प्रश्न 3. बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है?

उत्तर- बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ अनुभव रूपी ज्ञान से आती है, जोकि जीवन के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उनके अनुसार पुस्तकीय ज्ञान से हर कक्षा पास करके अगली कक्षा में प्रवेश मिलता है, लेकिन यह पुस्तकीय ज्ञान अनुभव में उतारे बिना अधूरा है। दुनिया को देखने, परखने तथा बुजुर्गों के जीवन से हमें अनुभव रूपी ज्ञान को प्राप्त करना आवश्यक है, क्योंकि यह ज्ञान हर विपरीत परिस्थिति में भी समस्या का समाधान करने से सहायक होता है। इसलिए उनके अनुसार अनुभव पढ़ाई से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है, जिससे जीवन को परखा और सँवारा जाता है तथा जीवन को समझने की समझ आती है।

प्रश्न 4. छोटे भाई के मन में बड़े भाई साहब के प्रति श्रद्धा क्यों उत्पन्न हुई?
उत्तर- बड़े भाई साहब छोटे भाई को-

-खेलकूद में समय न गॅवाकर पढ़ने की सलाह देते थे।

-अभिमान न करने की सीख देते थे।अपनी बात मानने की सलाह देते थे।

-वे बड़ा होने के कारण ऐसा करना अपना कर्तव्य समझते थे।

प्रश्न 5. बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ बताइए?
उत्तर- बड़े भाई की स्वभावगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1.बड़ा भाई बड़ा ही परिश्रमी था। वह दिन-रात पढ़ाई में ही जुटा रहता था इसलिए खेल-कूद, क्रिकेट मैच आदि में उसकी कोई रुचि नहीं थी।

2.वह बार-बार फेल होने के बावजूद पढ़ाई में लीन रहता था।

3.बड़ा भाई उपदेश की कला में बहुत माहिर है इसलिए वह अपने छोटे भाई को उपदेश ही देता रहता है, क्योंकि वह अपने छोटे भाई को एक नेक इंसान बनाना चाहता है।

4.वह अनुशासनप्रिय है, सिद्धांतप्रिय है, आत्मनियंत्रण करना जानता है। वह आदर्शवादी बनकर छोटे भाई के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहता है।

5. बड़ा भाई अपने छोटे भाई से पाँच साल बड़ा है इसलिए वह अपने अनुभव रूपी ज्ञान को छोटे भाई को भी देता है।

प्रश्न 6. बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से किसे और क्यों महत्त्वपूर्ण कहा है?

उत्तर- बड़े भाई साहब ने जिंदगी के अनुभव और किताबी ज्ञान में से जिंदगी के अनुभव को अधिक महत्त्वपूर्ण माना है। उनका मत था कि किताबी ज्ञान तो रट्टा मारने का नाम है। उसमें ऐसी-ऐसी बातें हैं जिनका जीवन से कुछ लेना-देना नहीं। इससे बुधि का विकास और जीवन की सही समझ विकसित नहीं हो पाती है। इसके विपरीत अनुभव से जीवन की सही समझ विकसित होती है। इसी अनुभव से जीवन के सुख-दुख से सरलता से पार पाया जाता है। घर का खर्च चलाना हो घर के प्रबंध करने हो या बीमारी का संकट हो, वहीं उम्र और अनुभव ही इनमें व्यक्ति की मदद करते हैं।

प्रश्न 7. बताइए पाठ के किन अंशों से पता चलता है कि-

1. छोटा भाई अपने भाई साहब का आदर करता है।

2.भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव है।

3. भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है।

4. भाई साहब छोटे भाई का भला चाहते हैं।

उत्तर- 1. छोटे भाई का मानना है कि बड़े भाई को उसे डाँटने-डपटने का पूरा अधिकार है क्योंकि वे उससे बड़े हैं। छोटे भाई की शालीनता व सभ्यता इसी में थी कि वह उनके आदेश को कानून की तरह माने अर्थात् पूरी सावधानी व सर्तकता से उनकी बात का पालन करे।

2. भाई साहब ने छोटे भाई से कहा कि मुझे जीवन का तुमसे अधिक अनुभव है। समझ किताबी ज्ञान से नहीं आती अपितु दुनिया के अनुभव से आती है। जिस प्रकार अम्मा व दादा पढ़े लिखे नहीं है, फिर भी उन्हें संसार का अनुभव हम से अधिक है। बड़े भाई ने कहा कि यदि मैं आज अस्वस्थ हो जाऊँ, तो तुम भली प्रकार मेरी देख-रेख नहीं कर सकते। यदि दादा हों, तो वे स्थिति को सँभाल लेंगे। तुम अपने हेडमास्टर को देखो, उनके पास अनेक डिग्रियाँ हैं। उनके घर का इंतजाम उनकी बूढ़ी माँ करती हैं। इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है कि भाई साहब को जिंदगी का अच्छा अनुभव था।

3. भाई साहब ने छोटे भाई से कहा कि मैं तुमको पतंग उड़ान की मनाहीं नहीं करता। सच तो यह कि पतंग उड़ाने की मेरी भी इच्छा होती है। बड़े भाई साहब बड़े होने के नाते अपनी भावनाओं को दवा जाते हैं। एक दिन भाई साहब के ऊपर से पतंग गुजरी, भाई साहब ने अपनी लंबाई का लाभ उठाया। वे उछलकर पतंग की डोर पकड़कर हॉस्टल की ओर दौड़कर आ रहे थे, छोटा भाई भी उनके पीछे-पीछे दौड़ रहा था। इन सभी बातों से यह सिद्ध होता है कि बड़े भाई साहब के भीतर भी एक बच्चा है, जो अनुकूल वातावरण पाकर उभर उठता है।

4. बड़े भाई साहब द्वारा छोटे भाई को यह समझाना कि किताबी ज्ञान होना एक बात है और जीवन का अनुभव दूसरी बात। तुम पढ़ाई में परीक्षा पास करके मेरे पास आ गए हो, लेकिन यह याद रखो कि मैं तुमसे बड़ा हूँ और तुम मुझसे छोटे हो। मैं तुम्हें गलत रास्ते पर रखने के लिए थप्पड़ का डर दिखा सकता हूँ या थप्पड़ मार भी सकता हूँ अर्थात् तुम्हें डाँटने का हक मुझे है।

(ग) निम्नलिखित के आशय स्पष्ट कीजिए-

प्रश्न 1. इम्तिहान पास कर लेना कोई चीज नहीं, असल चीज़ है बुद्धि का विकास।

उत्तर- इस पंक्ति का आशय है कि इम्तिहान में पास हो जाना कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि इम्तिहान तो रटकर भी पास किया जा सकता है। केवल इम्तिहान पास करने से जीवन का अनुभव प्राप्त नहीं होता और बिना अनुभव के बुधि का विकास नहीं होता। वास्तविक ज्ञान तो बुधि का विकास है, जिससे व्यक्ति जीवन को सार्थक बना सकता है।

प्रश्न 2.फिर भी जैसे मौत और विपत्ति के बीच भी आदमी मोह और माया के बंधन में जकड़ा रहता है, मैं फटकार घुड़कियाँ खाकर भी खेलकूद का तिरस्कार न कर सकता था।

उत्तर- लेखक खेल-कूद, सैर-सपाटे और मटरगश्ती का बड़ा प्रेमी था। उसका बड़ा भाई इन सब बातों के लिए उसे खूब डाँटता-डपटता था। उसे घुड़कियाँ देता था, तिरस्कार करता था। परंतु फिर भी वह खेल-कूद को नहीं छोड़ सकता था। वह खेलों पर जान छिड़कता था। जिस प्रकार विविध संकटों में फँसकर भी मनुष्य मोहमाया में बँधा रहता है, उसी प्रकार लेखक डाँट-फटकार सहकर भी खेल-कूद के आकर्षण से बँधा रहता था।

प्रश्न 3. बुनियाद ही पुख्ता न हो, तो मकान कैसे पायेदार बने ?

उत्तर- इस पंक्ति का आशय है कि जिस प्रकार मकान को मजबूत तथा टिकाऊ बनाने के लिए उसकी नींव को गहरा तथा ठोस बनाया जाता है, ठीक उसी प्रकार से जीवन की नींव को मजबूत बनाने के लिए शिक्षा रूपी भवन की नींव भी बहुत मज़बूत होनी चाहिए, क्योंकि इसके बिना जीवन रूपी मकान पायदार नहीं बन सकता।

प्रश्न 4. आँखें आसमान की ओर थीं और मन उस आकाशगामी पथिक की ओर, जो बंद राति से आ रहा था, मानो कोई आत्मा स्वर्ग से निकलकर विरक्त मन से नए संस्करण ग्रहण करने जा रही हो।

उत्तर- लेखक पतंग लूटने के लिए आकाश की ओर देखता हुआ दौड़ा जा रहा था। उसकी आँखें आकाश में उड़ने वाली पतंग रूपी यात्री की ओर थीं। अर्थात् उसे पतंग आकाश में उड़ने वाली दिव्य आत्मा जैसी मनोरम प्रतीत हो रही थी। वह आत्मा मानो मंद गति से झूमती हुई नीचे की ओर आ रही थी। आशय यह है कि कटी हुई पतंग धीरे-धीरे धरती की ओर गिर रही थी। लेखक को कटी पतंग इतनी अच्छी लग रही थी मानो वह कोई आत्मा हो जो स्वर्ग से मिल कर आई हो और बड़े भारी मन से किसी दूसरे के हाथों में आने के लिए धरती पर उतर रही हो।


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