लिखना पढ़ना मेरा शौक है मौज मस्ती के लिए कभी-.कभी पढ़ लिख लेता हूँ । ................................................
Monday
चंपा काले काले अक्षर नहीं चीन्हती कविता का सारांश
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घर की याद
घर की याद पाठ का सार और व्याख्या
जीवन परिचय-भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 1913 ई. में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के टिगरिया गाँव में हुआ। इन्होंने जबलपुर से उच्च शिक्षा प्राप्त की। इनका हिंदी, अंग्रेजी व संस्कृत भाषाओं पर अधिकार था। इन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य किया। फिर वे कल्पना पत्रिका, आकाशवाणी व गाँधी जी की कई संस्थाओं से जुड़े रहे। इनकी कविताओं में सतपुड़ा-अंचल, मालवा आदि क्षेत्रों का प्राकृतिक वैभव मिलता है। इन्हें साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान, दिल्ली प्रशासन का गालिब पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनकी साहित्य व समाज सेवा के मद्देनजर भारत सरकार ने इन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया। इनका देहावसान 1985 ई. में हुआ।
रचनाएँ-इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं
सतपुड़ा के जंगल, सन्नाटा, गीतफ़रोश, चकित है दुख, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, अनाम तुम आते हो, इदं न मम् आदि। गीतफ़रोश इनका पहला काव्य संकलन है। गाँधी पंचशती की कविताओं में कवि ने गाँधी जी को श्रद्धांजलि अर्पित की है।
काव्यगत विशेषताएँ-सहज लेखन और सहज व्यक्तित्व का नाम है-भवानी प्रसाद मिश्र। ये कविता, साहित्य और राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख कवियों में से एक हैं। गाँधीवाद में इनका अखंड विश्वास था। इन्होंने गाँधी वाडमय के हिंदी खंडों का संपादन कर कविता और गाँधी जी के बीच सेतु का काम किया। इनकी कविता हिंदी की सहज लय की कविता है। इस सहजता का संबंध गाँधी के चरखे की लय से भी जुड़ता है, इसलिए उन्हें कविता का गाँधी भी कहा गया है। इनकी कविताओं में बोलचाल के गद्यात्मक से लगते वाक्य-विन्यास को ही कविता में बदल देने की अद्भुत क्षमता है। इसी कारण इनकी कविता सहज और लोक के करीब है।
कविता का सारांश
इस कविता में घर के मर्म का उद्घघाटन है। कवि को जेल-प्रवास के दौरान घर से विस्थापन की पीड़ा सालती है। कवि के स्मृति-संसार में उसके परिजन एक-एक कर शामिल होते चले जाते हैं। घर की अवधारणा की सार्थक और मार्मिक याद कविता की केंद्रीय संवेदना है। सावन के बादलों को देखकर कवि को घर की याद आती है। वह घर के सभी सदस्यों को याद करता है। उसे अपने भाइयों व बहनों की याद आती है। उसकी बहन भी मायके आई होगी। कवि को अपनी अनपढ़, पुत्र के दुख से व्याकुल, परंतु स्नेहमयी माँ की याद आती है। वह पत्र भी नहीं लिख सकती।
कवि को अपने पिता की याद आती है जो बुढ़ापे से दूर हैं। वे दौड़ सकते हैं, खिलखिलाते हैं। वो मौत या शेर से नहीं डरते। उनकी वाणी में जोश है। आज वे गीता का पाठ करके, दंड लगाकर जब नीचे परिवार के बीच आए होंगे, तो अपने पाँचवें बेटे को न पाकर रो पड़े होंगे। माँ ने उन्हें समझाया होगा। कवि सावन से निवेदन करता है कि तुम खूब बरसो, किंतु मेरे माता-पिता को मेरे लिए दुखी न होने देना। उन्हें मेरा संदेश देना कि मैं जेल में खुश हूँ। मुझे खाने-पीने की दिक्कत नहीं है। मैं स्वस्थ हूँ। उन्हें मेरी सच्चाई मत बताना कि मैं निराश, दुखी व असमंजस में हूँ। हे सावन! तुम मेरा संदेश उन्हें देकर धैर्य बँधाना। इस प्रकार कवि ने घर की अवधारणा का चित्र प्रस्तुत किया है।
बहुत पानी गिर रहा है,
रात भर गिरता रहा है,
प्राण-मन धिरता रहा है,
बहुत पानी गिर रहा हैं,
घर नजर में तिर रहा है,
घर कि मुझसे दूर है जो,
घर खुशी का पूर हैं जो,
व्याख्या-:उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने घर से दूर जेल की एक कालकोठरी में बंद है। सावन के महीने में खूब बारिश हो रही है जिसे देखकर कवि को अपने घर , परिजनों व उनके साथ बिताए सुखद क्षणों की याद आ रही है।
कवि कहते हैं कि आज बरसात हो रही है। और बहुत पानी बरस रहा हैं अर्थात बहुत बारिश हो रही हैं और यह बारिश रात से ही हो रही हैं। और ऐसे मौसम में मेरे मन व प्राण, दोनों ही अपने घर की यादों से घिर गये हैं। अर्थात बारिश के इस पानी को देखकर कवि को अपने घर व् परिजनों की याद आ जाती है। और कवि कहते हैं कि उन्हें अपनी आंखों के सामने अपना वह घर दिखाई दे रहा हैं जो घर इस समय उनसे दूर है। जो खुशियों का भंडार है। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि के घर में खुशियों भरा माहौल था जहाँ सभी लोग मिलजुल कर हंसी-खुशी रहते थे। कैद में होने के कारण कवि इस समय अपने घर से दूर हैं। मगर घर की सुखद स्मृतियां कवि को बेचैन कर रही हैं।
घर कि घर में चार भाई,
मायके में बहिन आई,
बहिन आई बाप के घर,
हाय रे परिताप के घर।
घर कि घर में सब जुड़े हैं,
सब कि इतने कब जुड़े हैं,
चार भाई चार बहिन,
भुजा भाई प्यार बहिने,
व्याख्या:-उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने भाई-बहनों व उनके आपसी संबंधों के बारे में वर्णन कर रहे हैं। कवि कहते हैं कि उनके घर में चार भाई व चार बहनें हैं और उन सभी के बीच अथाह प्रेम है। बहिनें शादीशुदा हैं। और कवि अंदाजा लगाते हैं कि आज वे अपने माता-पिता के घर अर्थात अपने मायके आयी होंगी। (यहाँ पर कवि अपनी बहनों के मायके आने का अंदाजा इसलिए लगा रहे हैं क्योंकि सावन के महीने में रक्षाबंधन का त्यौहार आता है और इस दिन विवाहित बहनें अपने भाई को राखी बांधने अपने मायके आती हैं।) कवि कहते हैं कि लेकिन मायके आकर जब कवि की बहनों को कवि के माता-पिता से कवि के बारे में पता चला होगा तो उन्हें अत्यधिक दुःख पहुंचा होगा। कवि कहते हैं कि मेरे जेल में होने की वजह से घर के सभी लोग दुखी होंगे और मेरा खुशियों से भरा वह घर अब “परिताप का घर अर्थात कष्टों का घर” बन गया होगा। संकट की इस घड़ी में सब एक दूसरे का सहारा बने हुए होंगे। मेरे चार भाई व चार बहनें, सभी में आपस में बहुत गहरा प्रेम संबंध हैं। मेरे चारों भाई भुजाओं के समान एक दूसरे को सहयोग करने वाले अत्यंत बलिष्ठ व कर्मशील हैं अर्थात जिस प्रकार इंसान की भुजाएं उसे हर काम करने में सहयोग करती हैं ठीक उसी प्रकार उनके भाई भी उनके सुख दुःख में उनको सहयोग करते हैं। जबकि मेरी बहनें प्रेम का प्रतीक हैं। यानि वो हम पर अपना अथाह स्नेह व ममता लुटाती रहती हैं।
और माँ बिन-पढ़ी मेरी ,
दुःख में वह गढ़ी मेरी ,
माँ कि जिसकी गोद में सिर ,
रख लिया तो दुख नहीं फिर ,
माँ कि जिसकी स्नेह – धारा ,
का यहाँ तक भी पसारा ,
उसे लिखना नहीं आता ,
जो कि उसका पत्र पाता।
व्याख्याःउपरोक्त पंक्तियों में कवि अपनी माँ के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि मेरी मां अनपढ़ हैं और मेरे जेल में होने की वजह से वह इस वक्त बहुत दुखी होगी। फिर कवि को अपनी मां की ममता भी याद आने लगती है। वो कहते हैं कि अगर मैं अपनी माँ की गोद में सिर भी रख लूँ, तो भी मेरी सारी परेशानियाँ स्वत: ही समाप्त हो जाती हैं। और मेरी मां की स्नेह की धारा अर्थात कवि को उनकी माँ की ममता व प्रेम, जेल की कालकोठरी में भी महसूस हो रहा हैं। कवि कहते हैं कि उनकी मां को लिखना नहीं आता। इसीलिए कवि को उनका कोई भी पत्र हासिल नहीं हुआ।
पिताजी जिनको बुढ़ापा ,
एक क्षण भी नहीं व्यापा ,
जो अभी भी दौड़ जाएँ ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ ,
मौत के आगे न हिचकें ,
शेर के आगे न बिचकें ,
बोल में बादल गरजता ,
काम में झंझा लरजता ,
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने पिता की शाररिक विशेषताओं के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि भले ही उनके पिता की उम्र हो गई हो मगर अभी भी उनके पिता पर बुढ़ापे का कोई असर नहीं दिखाई देता है। अभी भी वो किसी नौजवान की तरह दौड़ सकते हैं, खिलखिला कर हंस सकते हैं। उन्हें मौत से भय नहीं लगता है और अगर उनके सामने शेर भी आ जाय तो वो उसके सामने बिना डरे खड़े रह सकते है। अर्थात वें बहुत ही निर्भीक व साहसी व्यक्ति हैं। उनकी वाणी में बादलों की सी गर्जना है और वो इस उम्र में भी इतनी तेजी से काम करते हैं कि आंधी तूफान भी उनको देख शरमा जाय। अर्थात वें बहुत फुर्तीले (तेज) हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि के पिता बहुत ही कर्मठ व ऊर्जावान व्यक्ति हैं जिनमें आज भी नवयुवकों के जैसा जोश व उत्साह भरा है।
आज गीता पाठ करके ,
दंड दो सौ साठ करके ,
खूब मुगदर हिला लेकर ,
मूठ उनकी मिला लेकर,
जब कि नीचे आए होंगे ,
नैन जल से छाए होंगे ,
हाय, पानी गिर रहा है ,
घर नज़र में तिर रहा है ,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें ,
खेलते या खड़े होंगे ,
नज़र उनकी पड़े होंगे।
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने पिता की दिनचर्या के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि हर रोज की तरह आज भी उन्होंने गीता पाठ किया होगा और दो सौ साठ दंड किये होंगे। अर्थात व्यायाम किया होगा। और फिर मुगदर को पकड़कर खूब हिला-हिलाकर व्यायाम किया होगा।और अंत में व्यायाम समाप्त कर मुगदरों की मूठों अर्थात हत्थों को मिलकर एक जगह रखकर , जब वो घर के ऊपरी हिस्से से नीचे आए होंगे तो , घर में अपने लाडले पुत्र को ना पाकर दुख से उनकी आंखों में आंसू भर आये होंगे। अर्थात उनके पिता ने अपनी रोज की दिनचर्या , व्यायाम व पूजापाठ आदि निपटाने के बाद जब घर में अन्य बच्चों के साथ कवि को नहीं देखा होगा तो वो भाव विभोर होकर रोने लगे होंगे। कवि आगे कहते हैं कि अभी भी वर्षा हो रही हैं और बरसते हुए पानी को देखकर मुझे घर की याद आ रही है। उनके चारों भाई और चारों बहनें अभी घर पर होंगे और शायद इस वक्त वो या तो खेल रहे होंगे या यूं ही खड़े होंगे। और पिता जी की नजरें अपने पाँचवें पुत्र अर्थात कवि को खोज रही होंगी।
पिताजी जिनको बुढ़ापा ,
एक क्षण भी नहीं व्यापा ,
रो पड़े होंगे बराबर ,
पाँचवे का नाम लेकर ,
पाँचवाँ हूँ मैं अभागा ,
जिसे सोने पर सुहागा,
पिता जी कहते रहे है ,
प्यार में बहते रहे हैं ,
आज उनके स्वर्ण बेटे ,
लगे होंगे उन्हें हेटे ,
क्योंकि मैं उन पर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा ,
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि अपने पिता के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि हालाँकि मेरे पिताजी अभी भी पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं। बुढ़ापे का उन पर अभी कोई असर दिखाई नहीं देता हैं। मगर जब खेलते हुए मेरे भाई-बहिनों पर उनकी नजर पड़ी होगी । तो वो अपने पाँचवें बेटे यानी कवि को उनके बीच न पाकर दुखी हुए होंगे और उनका नाम लेकर रो पड़े होंगे। कवि कहते हैं कि मैं अपने माता-पिता का पांचवा पुत्र हूँ। वैसे तो मेरे पिताजी अपने सभी बेटों को प्रेम करते थे पर मुझे अपने अन्य बेटों की तुलना में श्रेष्ठ मानते थे। इसीलिए वो मुझे बहुत अधिक प्रेम करते थे। अर्थात अगर वो अपने चारों बेटों को सोने के समान मानते थे तो मुझे सुहागा अर्थात उन सब में भी सबसे बेहतर मानते थे। कवि कहते हैं कि मैं आज उनसे दूर इस जेल में कैद हूँ। इसीलिए आज उनके पिता को अपने स्वर्ण बेटे अर्थात अन्य चारों बेटे भी अच्छे नहीं लग रहे होंगे। क्योंकि उनका सबसे प्यारा बेटा यानि कवि आज उनकी आँखों के सामने नही है। कवि यहाँ पर अपने आप को भाग्यहीन बता रहे हैं क्योंकि वो जेल में हैं। जिस कारण उनके माता-पिता को कष्ट पहुंच रहा है।
और माँ ने कहा होगा ,
दुःख कितना बहा होगा ,
आँख में किसलिए पानी ,
वहाँ अच्छा है भवानी ,
वह तुम्हारा मन समझकर ,
और अपनापन समझकर ,
गया है सो ठीक ही है ,
यह तुम्हारी लीक ही है ,
पाँव जो पीछे हटाता ,
कोख को मेरी लजाता ,
इस तरह होओ न कच्चे ,
रो पड़ेंगे और बच्चे ,
पिताजी ने कहा होगा ,
हाय , कितना सहा होगा ,
कहाँ , मैं रोता कहाँ हूँ ,
धीर मैं खोता , कहाँ हूँ ,
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि पिता जी को दुखी देखकर माँ अपने मन के दुःख को छिपा कर पिताजी को समझाते हुए कह रही होंगी कि क्यों दुखी हो रहे हो , क्यों आंसू बहा रहे हो। हमारा बेटा भवानी वहां अच्छे से होगा यानि सकुशल होगा। माँ पिताजी को समझाते हुए आगे कहती होंगी कि वह आपके मन की बात को समझकर और आपके बताये मार्ग पर ही तो चल रहा हैं। वह देशसेवा करते हुए ही तो जेल गया हैं। यह तुम्हारी ही परंपरा हैं जिसका उसने पालन किया है। इसीलिए उसने जो किया वो ठीक हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि देशभक्ति का रास्ता पिता ने अपने पुत्र को दिखाया। और बेटा आज उसी राह पर चल पड़ा हैं। आज देश हित ही उसके लिए सर्वोपरि है। माता को अपने पुत्र की देशभक्ति पर नाज है। कवि कहते हैं कि माँ पिताजी को समझाते हुए कह रही होंगी कि उनके बेटा ने देश हित को सर्वोपरि मानकर अपने कर्तव्य का पालन किया हैं। अगर वह ऐसा नही करता और देश सेवा से पीछे हट जाता तो आज मेरी कोख लज्जित होती। मुझे शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता। लेकिन वह अपने देश की आजादी के खातिर जेल गया जिस पर मुझे गर्व है।
कवि आगे कहते हैं कि माँ पिताजी को समझाते हुए कह रही होंगी कि आप अपने मन को इतना कच्चा मत करो। अपने मन व भावनाओं पर काबू रखो। अपने आपको मजबूत करो नहीं तो घर के अन्य बच्चे भी आपको रोता देख रो पड़ेंगे। और फिर पिताजी ने अपने आप को संभालते हुए कहा होगा कि अरे नही , मैं कहां रोता हूँ और कहाँ मैं अपना धैर्य धीरज खोता हूँ अर्थात ना तो मैं रो रहा हूँ और ना ही परेशान हूँ।
हे सजीले हरे सावन ,
हे कि मेरे पुण्य पावन ,
तुम बरस लो वे न बरसें ,
पाँचवे को वे न तरसें ,
मैं मज़े में हूँ सही है ,
घर नहीं हूँ बस यही है ,
किन्तु यह बस बड़ा बस है ,
इसी बस से सब विरस है ,
किन्तु उनसे यह न कहना ,
उन्हें देते धीर रहना ,
उन्हें कहना लिख रहा हूँ ,
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ ,
काम करता हूँ कि कहना ,
नाम करता हूँ कि कहना ,
चाहते है लोग , कहना,
मत करो कुछ शोक कहना ,
और कहना मस्त हूँ मैं ,
कातने में व्यस्त हूँ मैं ,
वज़न सत्तर सेर मेरा ,
और भोजन ढेर मेरा ,
कूदता हूँ , खेलता हूँ ,
दुख डट कर ठेलता हूँ ,
और कहना मस्त हूँ मैं,
यों न कहना अस्त हूँ मैं ,
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने सावन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे ! सुंदर, आकर्षक व सबको खुशियां प्रदान करने वाले सावन, तुम्हें जितना बरसना हैं तुम बरस लो लेकिन मेरे पिताजी की आंखों को मत बरसने देना। और इस बात का भी ध्यान रखना कि वो अपने पाँचवे पुत्र को याद कर दुखी न हों।कवि सावन से कहते हैं कि तुम जाकर मेरा यह संदेश मेरे पिता को देना कि मैं यहां पर बहुत मजे में हूँ और बहुत खुश भी हूं। बस इतना ही है कि मैं घर पर नहीं हूं। यानि मुझे यहां पर किसी प्रकार का कोई कष्ट नही है। लेकिन इसके बाद कवि स्वयं से कहते हैं कि मैंने उन्हें कह तो दिया कि मैं घर पर नहीं हूँ। बस यही एक दुख है परंतु अपने माता-पिता व घर से दूर होकर जीना कितना कठिन है। यह केवल मैं ही जानता हूँ। अपनों से दूर होने के दुख ने मेरे जीवन के सारे सुखों को छीन कर उसे नीरस बना दिया है। कवि अपनी भावनाओं पर संयम रखते हुए कहते हैं कि हे ! सावन तुम उनसे यह सब मत कहना कि मैं दुखी हूँ, अकेला हूँ। तुम उन्हें धैर्य बंधाते रहना और कहना कि मैं यहाँ लिखता हूँ, पढ़ता हूँ, खूब काम करता हूँ और देश सेवा करके अपना नाम रोशन कर रहा हूँ। कवि आगे कहते कि मेरे माता पिता से कहना कि जेल के सभी लोग मुझे चाहते हैं। और मुझे यहाँ कोई कष्ट भी नही है। इसीलिए वो दुखी ना हो। कवि कहते हैं कि सावन तुम मेरे माता पिता से जाकर कहना कि मैं यहाँ पर मस्त हूँ और सूत कातने में व्यस्त हूँ। मैं यहां खूब खाता-पीता हूँ। इसीलिए मेरा मेरा वजन 70 सेर अर्थात 63 किलो हो गया है। मैं यहां पर खूब खेलता-कूदता हूँ। हर विपरीत परिस्थति का सामना आराम से करता हूँ और मस्त रहता हूँ। अर्थात मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूँ। कवि सावन से कहते हैं कि उनको यह बिलकुल भी नही बताना कि मैं यहाँ पर दुखी हूँ, निराश हूँ , उदास हूँ नही तो वो दुखी हो जायेंगे।
हाय रे , ऐसा न कहना ,
है कि जो वैसा न कहना ,
कह न देना जागता हूँ ,
आदमी से भागता हूँ ,
कह न देना मौन हूँ मैं ,
ख़ुद न समझूँ कौन हूँ मैं ,
देखना कुछ बक न देना ,
उन्हें कोई शक न देना ,
हे सजीले हरे सावन ,
हे कि मेरे पुण्य पावन ,
तुम बरस लो वे न बरसे ,
पाँचवें को वे न तरसें ।
व्याख्या:उपरोक्त पंक्तियों में कवि सावन से कहते हैं कि मेरी मन स्थिति व मेरे दुखों के बारे में तुम मेरे माता-पिता को गलती से भी मत बताना। तुम उनको यह मत बताना कि मैं रात भर जागता हूँ यानि मैं रात को सो नहीं पाता। आदमियों को देखकर घबरा जाता हूँ। मैं मौन रहने लगा हूँ यानि अब मुझे किसी से बात करना अच्छा नहीं लगता है। और मुझे खुद नहीं पता कि मैं कौन हूँ। हे ! मेरे सजीले सावन, तुम मेरे पिताजी के आगे कुछ भी ऐसा उल्टा-सीधा मत बोल देना जिससे उनको शक हो जाए कि कहीं उनका बेटा किसी दुख या तकलीफ में तो नही हैं। और अंत में कवि ने सावन को संबोधित करते हुए कहा है कि हे ! सुंदर, आकर्षक व खुशियां प्रदान करने वाले सावन तुम्हें जितना बरसना हैं, तुम बरसो लेकिन अपने पाँचवे पुत्र को याद कर मेरे माता-पिता की आंखों को मत बरसने देना।
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